टार्डिग्रेड के ‘अमृत तत्व’ का पता चला

न्हें टार्डिग्रेड्स की खासियत है कि वे अति दुर्गम परिस्थितियों – निर्वात से लेकर परम शून्य के तापमान – में जीवित रह सकते हैं। अब वैज्ञानिकों ने टार्डिग्रेड्स में इस खासियत के कारण की पहचान कर ली है – यह एक प्रकार का आणविक स्विच है जो दुर्गम परिस्थितियों में सुप्तावस्था को शुरू करता है।

दरअसल जब मार्शल युनिवर्सिटी के रसायनज्ञ डेरिक कोलिंग ने एक ऐसी मशीन, जो ‘मुक्त मूलकों’ या अयुग्मित इलेक्ट्रॉन से लैस परमाणुओं का पता लगाती है, में टार्डिग्रेड को डाला तो उन्होंने टार्डिग्रेड में मुक्त मूलक उत्पन्न होते देखे। हालांकि टार्डिग्रेड में मुक्त मूलक दिखना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि जीवों की सामान्य चयापचय प्रक्रिया और धुआं व अन्य प्रदूषक जैसे पर्यावरणीय तनाव के कारण कोशिकाओं में मुक्त मूलक बनते ही हैं।

जब बहुत सारे मुक्त मूलक जमा हो जाते हैं तो स्थिरता प्राप्त करने के लिए वे अपने आसपास से इलेक्ट्रॉनों को हड़प लेते हैं। इस प्रक्रिया में, ये मुक्त मूलक कोशिकाओं और डीएनए एवं प्रोटीन जैसे यौगिकों को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन यदि यही मुक्त मूलक कम मात्रा में मौजूद हो तो ये संकेतक की तरह काम कर सकते हैं।

दूसरी ओर, रसायनशास्त्री लेसली हिक्स अपने अध्ययन में देख रही थीं कि जब इन मूलकों को विभिन्न प्रकार के प्रोटीन के साथ जोड़ा और हटाया जाता है तो ये कोशिका के व्यवहार को किस तरह प्रभावित करते हैं।

टार्डिग्रेड में मुक्त मूलक के कोलिंग के अवलोकन ने हिक्स को यह जानने की दिशा में मोड़ा कि क्या दुर्गम परिस्थितियों में ऐसे ही मुक्त मूलक टार्डिग्रेड को जीवित रहने में मदद करते हैं? इसके लिए शोधकर्ताओं ने टार्डिग्रेड के लिए एक अस्थायी दुर्गम, तनावपूर्ण और मुक्त मूलक बनाने वाला वातावरण बनाया। और टार्डिग्रेड पर नज़र रखी कि क्या इन परिस्थितियों में टार्डिग्रेड्स ने सुरक्षात्मक स्थिति में प्रवेश किया, और यदि किया तो क्या जीवन परिस्थितियां बहाल होने पर वे वापस सामान्य स्थिति में लौट सके और अपनी सामान्य गतिविधि शुरू कर सके?

साथ ही देखा कि क्या मुक्त मूलकों और सिस्टीन (प्रोटीन का एक अमीनो अम्ल) के बीच संकेतन तंत्र निष्क्रियता में भूमिका निभाता है? यह देखने के लिए शोधकर्ताओं ने टार्डिग्रेड का ऐसे विभिन्न प्रकार के अणुओं से संपर्क कराया जो सिस्टीन ऑक्सीकरण को अवरुद्ध करते हैं। उन्होंने पाया कि तनावपूर्ण परिस्थितियों में जब मुक्त कणों के लिए सिस्टीन मौजूद नहीं था तब टार्डिग्रेड निष्क्रिय नहीं हो सके।

ये नतीजे पूर्व अध्ययन के नतीजों को समर्थन देते हैं जो बताते हैं कि निर्जलीकरण सहनशील कीट मिज में सिस्टीन ऑक्सीकरण की भूमिका है। इससे लगता है कि दूभर स्थितियों में निष्क्रिय होने या ऐसे ही अन्य अवस्थाओं में जाने के लिए जीवों में एक साझा ट्रिगर हो सकता है।

बहरहाल, टार्डिग्रेड्स में मुक्त मूलकों के कार्य को समझने के लिए अधिक अध्ययन की ज़रूरत है। वहीं दूभर स्थिति से निपटने में निष्क्रिय हो जाने के अलावा अन्य रणनीतियों पर भी गहन अध्ययन की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://images.newscientist.com/wp-content/uploads/2020/08/20124550/c0460905-tardigrade_sem_web.jpg?crop=16:9,smart&width=1200&height=675&upscale=true

ऑक्सीमीटर रंगभेद करते हैं

हाल ही में, कैलिफोर्निया की चिकित्सक डॉ. नोहा एबोलेटा के नेतृत्व में एक समूह ने पल्स ऑक्सीमीटर की बिक्री को चुनौती दी है। पाया गया है कि ये उपकरण अश्वेत त्वचा वाले व्यक्तियों में रक्त-ऑक्सीजन का स्तर गलत बताते हैं। डॉ. एबोलेटा के नेतृत्व में रूट्स कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर द्वारा ऑक्सीमीटर की बिक्री को तब तक रोकने की मांग की जा रही है जब तक कि इन उपकरणों में आवश्यक सुधार नहीं कर लिए जाते या उनकी सीमाओं के बारे में चेतावनी लेबल नहीं लगा दिया जाता।

गौरतलब है कि पल्स ऑक्सीमीटर आम तौर पर उंगली के सिरे पर लगाए जाते हैं और ये त्वचा के माध्यम से अंदर प्रकाश चमकाकर रक्त में ऑक्सीजन के स्तर का आकलन करते हैं। लेकिन ये आकलन त्वचा में उपस्थित मेलेनिन नामक रंजक से प्रभावित होते हैं जो अश्वेत त्वचा में अधिक होता है।

दशकों चले अध्ययनों में सामने आया है कि ये उपकरण अश्वेत त्वचा वाले व्यक्तियों में ऑक्सीजन का स्तर अधिक बताते हैं, जो स्वास्थ्य सम्बंधी निर्णयों को प्रभावित करता है। इस मुद्दे को कोविड-19 महामारी के दौरान अधिक प्रमुखता मिली जब सटीक ऑक्सीजन स्तर का आकलन करना अति आवश्यक था। चूंकि यह ऑक्सीमीटर अश्वेत व्यक्तियों के खून में वास्तविकता से अधिक ऑक्सीजन बताता था, इसलिए उन्हें सही चिकित्सा नहीं मिल पाती थी या देर से मिलती थी।

लेकिन चिकित्सा उपकरण उद्योग और अमेरिकी सरकार इस समस्या को लेकर काफी धीमी गति से काम कर रही है। इन उपकरणों को मुख्य रूप से श्वेत आबादी के हिसाब से तैयार किया गया है व परखा गया है। यह अश्वेत लोगों के निदान में अशुद्धियों का प्रमुख कारण है।

कैलिफोर्निया काउंटी अदालत में दायर किया गया मुकदमा काफी महत्वपूर्ण है। यह सभी के लिए इस समस्या से निपटने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है और इस मुद्दे को प्रमुखता से सार्वजनिक मंच पर रखता है।

इस संदर्भ में मेडट्रॉनिक और मासिमो जैसे दिग्गज चिकित्सा-उपकरण निर्माता तो खाद्य व औषधि प्रशासन (एफडीए) के दिशानिर्देशों के पालन का हवाला देते हुए अपनी प्रौद्योगिकियों का बचाव कर रहे हैं। इस मामले में आलोचकों का तर्क है कि इन दावों का समर्थन करने वाले अध्ययन अक्सर प्रयोगशाला में किए गए हैं, जबकि वास्तविक दुनिया के परिदृश्य विभिन्न चुनौतियां पेश करते हैं।

इस मामले में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब 2020 के एक अध्ययन में कोविड-19 से ग्रसित लोगों में पल्स ऑक्सीमीटर की रीडिंग में महत्वपूर्ण विसंगतियां सामने आईं। इन विसंगतियों में विशेष रूप से अश्वेत रोगी सबसे अधिक प्रभावित पाए गए। नतीजतन सीनेटरों से कार्रवाई की मांग के बाद 2022 में एफडीए की बैठक हुई जिसमें इन उपकरणों की सीमाओं को स्वीकार किया गया। फरवरी में एक और बैठक की संभावना है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.nature.com/w400/magazine-assets/d41586-024-00089-6/d41586-024-00089-6_23611476.jpg