रेफ्रिजरेटर एवं अन्य उपकरण: स्वामित्व और उपयोग – आदित्य चुनेकर, श्वेता कुलकर्णी

प्रयास (ऊर्जा समूह) ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 3000घरों में बिजली के अंतिम उपयोग के पैटर्न को समझने के लिए फरवरी-मार्च 2019में एक सर्वेक्षण किया था। यहां उस सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाश व्यवस्था के बदलते परिदृश्य की चर्चा की गई है। इस शृंखला में आगे बिजली के अन्य उपयोगों पर चर्चा की जाएगी।

प्रकाश और वातानुकूलन के बुनियादी उपयोगों के अलावा, लोग परिश्रम से बचने और जीवन शैली में सुधार के लिए बिजली का उपयोग कई अन्य उपकरणों के लिए भी करते हैं। परिवारों की आय बढ़ने के साथ उपकरणों का उपयोग भी बढ़ता है जिससे बिजली की खपत में काफी वृद्धि होती है। यहां हम कुछ सर्वेक्षित घरों में इन उपकरणों के उपयोग के तरीकों पर चर्चा करेंगे।

रसोई उपकरण

रेफ्रिजरेटर रसोई का सबसे आम उपकरण है। रेफ्रिजरेटर दो प्रकार के होते हैं: फ्रॉस्ट-फ्री और डायरेक्ट-कूल। डायरेक्ट-कूल रेफ्रिजरेटरों की तुलना में फ्रॉस्ट-फ्री रेफ्रिजरेटर आम तौर पर आकार में बड़े व महंगे होते हैं तथा बिजली की खपत भी अधिक करते हैं और इनमें मैनुअल डीफ्रॉस्टिंग की आवश्यकता नहीं होती है। भारत में सालाना 1 करोड़ रेफ्रिजरेटर बेचे जाते हैं जिनमें एक बड़ी संख्या डायरेक्ट-कूल रेफ्रिजरेटर की होती है। दोनों प्रकार के रेफ्रिजरेटर के लिए मानक और लेबलिंग (एस-एंड-एल) कार्यक्रम अनिवार्य है। अर्थात कोई भी रेफ्रिजरेटर स्टार लेबल के बिना बाज़ार में बेचा नहीं जा सकता है।

उत्तर प्रदेश के 51 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 55 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में रेफ्रिजरेटर हैं। दोनों राज्यों में उच्च आय वाले घरों में 90 प्रतिशत से अधिक और निम्न आय वाले घरों में लगभग 10 प्रतिशत परिवारों के पास रेफ्रिजरेटर हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश के लगभग 96 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 89 प्रतिशत घरों में रेफ्रिजरेटर डायरेक्ट-कूल किस्म के हैं। इससे पता चलता है कि फ्रॉस्ट-फ्री रेफ्रिजरेटर केवल शहरी और बड़े मेट्रो शहरों तक ही सीमित है।

रेफ्रिजरेटर वाले लगभग 50 प्रतिशत परिवारों को या तो स्टार रेटिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है या वे बिना स्टार रेटेड रेफ्रिजरेटर का उपयोग कर रहे हैं। डायरेक्ट-कूल रेफ्रिजरेटर के लिए एस-एंड-एल कार्यक्रम चार साल पहले, वर्ष 2015 में ही अनिवार्य किया गया था। सर्वेक्षण में पाया गया कि दोनों राज्यों में रेफ्रिजरेटर की औसत आयु लगभग 7 वर्ष है। इससे इस बात की व्याख्या हो जाती है कि इतनी बड़ी संख्या में उपकरण गैर स्टार रेटेड क्यों हैं। ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) एस-एंड-एल कार्यक्रम को शुरू करने के बाद समय-समय पर स्टार रेटिंग का संशोधन करता रहा है लेकिन कंपनियां नए 4-स्टार और 5-स्टार मॉडल पेश करने में काफी धीमी रही हैं। यह बात सर्वेक्षण के नतीजों में भी झलकती है – उत्तर प्रदेश के लगभग 31 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 37 प्रतिशत घरों में ही ऊर्जा-कुशल चार और पांच स्टार मॉडल उपयोग किए जा रहे हैं।

हमने यह भी देखा कि उत्तर प्रदेश में सभी आय श्रेणियों के 80 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में रेफ्रिजरेटर को सर्दियों के मौसम में बंद कर दिया जाता है। यह आंकड़ा महाराष्ट्र में 24 प्रतिशत है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में लगभग 30 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 26 प्रतिशत घरों में हर दिन कुछ घंटों के लिए रेफ्रिजरेटर बंद किए जाते हैं। हो सकता है रेफ्रिजरेटर के उपयोग को सीमित करके परिवार अपना बिजली का बिल कम करने की कोशिश कर रहे हैं। एक अन्य कारण खाना पकाने की सामाजिक प्रथाएं भी हो सकती हैं, जैसे ताज़ा चीज़ें खरीदना और भोजन के समय से ठीक पहले खाना पकाना। यह रेफ्रिजरेटर को निरर्थक बना देता है। उत्तर प्रदेश में कुछ सुनी-सुनाई बातों से पता चलता है कि अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रेफ्रिजरेटर का उपयोग मात्र ग्रीष्मकाल में पानी/पेय पदार्थों को ठंडा करने के लिए किया जाता है। भारत की आवासीय बिजली खपत और एस-एंड-एल कार्यक्रम से बचत का अनुमान लगाते समय इस व्यवहार को भी ध्यान में रखना आवश्यक है अन्यथा यह हो सकता है कि ज़रूरत से अधिक खपत या बचत का अनुमान लगा लिया जाए।

मिक्सर-ब्लेंडर एक और रसोई उपकरण है जो, खासकर महाराष्ट्र में, काफी अधिक घरों में होता है। महाराष्ट्र के लगभग 60 प्रतिशत परिवार सप्ताह में कम से कम एक बार मिक्सर ब्लेंडर का उपयोग करते हैं जबकि उत्तर प्रदेश में मात्र 20 प्रतिशत परिवार सप्ताह में एक बार इसका उपयोग करते हैं। हालांकि घर की कुल बिजली खपत में इसका योगदान काफी कम है, क्योंकि इसका उपयोग प्रति दिन केवल कुछ मिनटों के लिए किया जाता है, लेकिन यह हाथ से पीसने के कठोर परिश्रम को कम करता है। मिक्सर-ब्लेंडर का स्वामित्व और उपयोग रेफ्रिजरेटर के समान पकाने की प्रथाओं पर निर्भर कर सकता है।

टेलीविज़न व अन्य उपकरण

भारत एक बड़ा टेलीविज़न बाज़ार है जहां वर्ष 2018 में लगभग 1 करोड़ टीवी की बिक्री हुई। इसमें एक बड़ा हिस्सा एलसीडी/एलईडी टीवी का था। उत्तर प्रदेश में लगभग 82 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 95 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों के पास टीवी है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों राज्यों में लगभग 65 प्रतिशत टेलीविज़न कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी) प्रकार के हैं। इससे पता चलता है कि या तो ये टीवी पुराने हैं और एलईडी टीवी की कीमतों में गिरावट से पहले खरीदे गए थे या फिर एक ऐसा सेकंड-हैंड बाज़ार मौजूद है जहां सीआरटी टीवी एलईडी की तुलना में काफी कम कीमत पर बेचे जाते हैं। एलईडी टीवी सीआरटी की तुलना में अधिक ऊर्जा-क्षम हैं। इसलिए सीआरटी टीवी की मौजूदगी का असर कुल ऊर्जा-दक्षता पर हो सकता है। टीवी के लिए अनिवार्य एस-एंड-एल कार्यक्रम है। हालांकि, उत्तर प्रदेश के लगभग 86 प्रतिशत और महाराष्ट्र के लगभग 81 प्रतिशत परिवारों को स्टार रेटिंग कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं है। बीईई के अनुसार, अगर रोज़ाना 6 घंटे टीवी देखें तो 5-स्टार रेटिंग वाला 29 इंच का टीवी 1-स्टार रेटिंग टीवी की तुलना में 30 प्रतिशत कम बिजली खर्च करता है। उत्तर प्रदेश में रोज़ 5 घंटे और महाराष्ट्र में 4 घंटे टीवी देखा जाता है।

दोनों राज्यों में स्मार्ट फ़ोन का स्वामित्व काफी अधिक है: उत्तर प्रदेश में 64 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 98 प्रतिशत। दोनों राज्यों में प्रति परिवार लगभग 2 स्मार्टफोन हैं। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 47 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वे विभिन्न किस्म के मीडिया (जैसे टीवी, समाचार या फिल्में) देखने के लिए स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, जबकि महाराष्ट्र में यह संख्या केवल 2 प्रतिशत थी। हालांकि, स्मार्ट फोन का परिवार की बिजली खपत पर सीधा प्रभाव तो कम है लेकिन यह बिजली और ऊर्जा के उपयोग को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है। मीडिया के लिए स्मार्ट फोन का बढ़ता उपयोग भविष्य में टीवी के उपयोग को प्रभावित कर सकता है। स्मार्टफोन का उच्च स्वामित्व वितरण कंपनियों, उपकरण निर्माताओं और अन्य प्रौद्योगिकी प्रदाताओं को सेवाएं मुहैया कराने में मदद कर सकता है जो घरों में ऊर्जा उपयोग के तरीकों को बदल सकता है।

परिवार के स्तर का पानी का पंप भी काफी अधिक उपयोग किया जाने वाला उपकरण है, खासकर उत्तर प्रदेश में। उत्तर प्रदेश में 28 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 6 प्रतिशत परिवार सप्ताह में कम से कम एक बार पानी के पंप का उपयोग करते हैं – औसतन आधे या एक घंटे प्रतिदिन। आम तौर पर ये पंप 1 हॉर्सपावर (746 वॉट) की खपत करते हैं। पानी के पंप का दैनिक उपयोग, बिजली की खपत में काफी इज़ाफा कर सकता है। बीईई के एस-एंड-एल कार्यक्रम में पंप शामिल नहीं हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://ichef.bbci.co.uk/news/624/media/images/80531000/jpg/_80531285_sanjoyimg_1527.jpg

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