डायनासौर को भी जूं होती थी

म में से कई लोगों का पाला सिर में होने वाली जूं से पड़ा होगा, खासकर बचपन में। सिर से जूं निकालना और उनका पूरी तरह सफाया करना ज़रा मुश्किल काम है। हो भी क्यों ना, जूं फुर्ती से बालों में छिपने में माहिर जो है। अब, हाल ही में नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि पृथ्वी पर जूं का अस्तित्व पिछले 10 करोड़ वर्षों से है और उस वक्त उनके मेज़बान पंखों वाले डायनासौर हुआ करते थे।

दरअसल, वर्तमान जूं के जेनेटिक विश्लेषण से तो पता चल गया था कि उनका अस्तित्व पृथ्वी पर पंखों वाले डायनासौर के समय से है, लेकिन उनके जीवाश्म अब तक नहीं मिले थे। क्योंकि एक तो जूं सरीखे छोटे जीवों के अश्मीभूत होने की संभावना बहुत कम होती है, और यदि हो भी गए तो उन्हें खोज निकालना मुश्किल होता है। इस संदर्भ में युनिवर्सिटी ऑफ नेवेडा की वैकासिक जीव विज्ञानी जूली एलन का कहना है कि इतना पुराना और वह भी पंखों पर जूं का जीवाश्म मिलना बहुत ही सनसनीखेज बात है।

कीटों, खासकर जूं जैसे परजीवी के जीवाश्म को ढूंढने में बीजिंग की केपिटल नॉर्मल युनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी ताइपिंग गाओ, दोंग रेन, चुंगकुंग शिह ने काफी वक्त लगाया। और आखिरकार म्यांमार में मिले दो छोटे जीवाश्मों में उन्हें 10 कीट दिखाई दिए, जो नर्म पंखों के भीतर सुरक्षित थे। इन पंखों को देखकर लग रहा था कि उन्हें कुतरा गया था।

कीटों के ये जीवाश्म मात्र 0.2 मिलीमीटर लंबे थे और आजकल की जूं जैसे नहीं दिख रहे थे। उनका मुंह वर्तमान जूं जितना परिष्कृत नहीं था और उनके नाखूनों और एंटीना पर सख्त और लंबे रोम थे। इस परजीवी जूं को शोधकर्ताओं ने नाम दिया है मेसोफ्थिरस एंजेली अर्थात मेसोज़ोइक युग की जूं। इसका नामकरण कीट विज्ञानी माइकल एंजेल के नाम पर किया गया है।

आधुनिक जूं की तरह इन जूं के पंख नहीं थे और आंखें, एंटीना और पैर भी छोटे-छोटे थे। इससे लगता है कि वे बहुत तेज़ और लंबा नहीं चलते होंगे। अलबत्ता, सारे लक्षण जूं के समान हैं। चूंकि प्राप्त जीवाश्म बहुत ही छोटे हैं इसलिए शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वे अवयस्क जूं हैं और वयस्क जूं लगभग आधा मिलीमीटर लंबे रहे होंगे।

अधिकतर वर्तमान जूं किसी एक खास प्रजाति या शरीर के किसी खास अंग पर बसेरा करते हैं जैसे हमारे सिर की जूं। इसके अलावा जूं कई अन्य जानवरों और पक्षियों पर भी डेरा जमाती हैं। मनुष्य के सिर की जूं खून पीती है लेकिन पक्षियों या जानवरों पर पाई जाने वाली जूं या तो पंख खाती है या त्वचा। उपरोक्त दोनों जीवाश्मों में जो पंख हैं वे काफी अलग-अलग प्रकार के हैं और दो भिन्न डायनासौर के लगते हैं; इससे लगता है कि एम. एंजेली जूं का कोई एक खास मेज़बान नहीं था। पंखों पर क्षति के निशान देखकर लगता है कि ये इन जूं द्वारा खाए गए होंगे।

चूंकि ऐसा लगता है कि यह जूं पंख खाती है इसलिए वे अपने मेज़बान को काटती नहीं होगी, और डायनासौर को खुजली तो नहीं होती होगी। लेकिन जिस तरह से जूं ने पंखों को नुकसान पहुंचाया है उसे देखकर लगता है कि डायनासौर अपने पंखों को साफ करते रहे होंगे, जैसे आजकल के पक्षी जूं से छुटकारा पाने के लिए करते हैं। तो पंखदार डायनासौर के न सिर्फ पंख थे बल्कि आजकल के पक्षियों के समान जूं उन्हें तंग भी करती थी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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