वनों की ग्रीनहाउस गैस सोखने की क्षमता घट सकती है

कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर से बचाव का सबसे अच्छा साधन ऊष्णकटिबंधीय वन हैं। पेड़ वृद्धि के लिए वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड सोखते हैं। एक अनुमान के मुताबिक ऊष्णकटिबंध के जंगलों में इतना कार्बन संचित है जितना इंसानों ने पिछले तीस वर्षों में कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जलाकर वायुमंडल में उंडेला है। लेकिन साइंस पत्रिका में वैज्ञानिकों ने यह चिंता व्यक्त की है कि बढ़ते तापमान और सूखे के कारण एक हद के बाद ऊष्णकटिबंधीय वनों की कार्बन-सिंक भूमिका कमज़ोर हो जाएगी और अंतत: वे बढ़ते वैश्विक तापमान में योगदान देंगे।

ऊष्णकटिबंधीय वन वायुमंडल से कितना कार्बन सोखेंगे यह कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ने से पेड़ों की वृद्धि में तेज़ी और बढ़ते तापमान व सूखे के कारण पेड़ों के तनाव व मृत्यु के संतुलन पर निर्भर करता है। इसी संतुलन को आंकने के लिए लीड्स युनिवर्सिटी के ओलिवर फिलिप्स की अगुवाई में 200 से अधिक शोधकर्ताओं ने 24 देशों के 813 वनों के लगभग 5 लाख से अधिक पेड़ों को मापा। प्रत्येक पेड़ की ऊंचाई, मोटाई और प्रजाति के आधार पर गणना की कि अलग-अलग वन अभी कितना कार्बन संचित किए हुए हैं। भविष्य में कार्बन संचय कैसे बदल सकता है, इसका अनुमान लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने सबसे गर्म वन को भविष्य के वन माना और विभिन्न जलवायु के वनों को विभिन्न काल के वन मानकर उनके कार्बन संचय की तुलना की। तुलना के लिए उनके पास 590 दीर्घकालीन निरीक्षण प्लॉट्स के आंकड़े भी थे। वे यह देखना चाहते थे कि तापमान और बारिश की मात्रा का कार्बन संचय क्षमता पर कैसा प्रभाव होता है।

पूर्व में हुए अध्ययन बताते हैं कि रात का न्यूनतम तापमान वनों की दीर्घकालीन कार्बन संचय क्षमता पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है क्योंकि गर्म रातें पेड़ों की श्वसन दर बढ़ाती हैं। इसके चलते पेड़ अधिक कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। लेकिन इस अध्ययन में पाया गया कि दिन का अधिकतम तापमान पेड़ों की कार्बन संचय क्षमता को सबसे अधिक प्रभावित करता है क्योंकि शायद गर्म दिनों में पत्तियां पानी के उत्सर्जन को कम रखने के लिए अपने छिद्रों को बंद रखती हैं, जिसके चलते कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करने की प्रक्रिया भी धीमी पड़ जाती है।

अध्ययन में पाया गया कि कुल मिलाकर वतर्मान में तो वन जितना कार्बन उत्सर्जित करते हैं उससे अधिक सोख रहे हैं। लेकिन जब साल के सबसे गर्म महीने में दिन का औसत अधिकतम तापमान 32.2 डिग्री सेल्सियस होगा, वनों की दीर्घकालीन कार्बन संचय क्षमता तेज़ी से कम होगी और उनके द्वारा छोड़े गए कार्बन की मात्रा बढ़ जाएगी। सूखे वनों में कार्बन संचय की क्षमता और भी कम होगी क्योंकि पानी की कमी पेड़ों को अधिक तनाव और मृत्यु की ओर धकेलेगी।

टीम की गणना बताती है कि विश्व के अधिकतम तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर ऊष्णकटिबंधीय वनों की कार्बन भंडारण क्षमता में 7 अरब टन की कमी आती है। यदि वैश्विक तापमान, पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है तो 71 प्रतिशत ऊष्णकटिबंधीय वन इस हद को पार कर जाएंगे, जिससे पेड़ों द्वारा कार्बन का उत्सर्जन चार गुना बढ़ जाएगा।

शोधकर्ता इन नतीजों को चेतावनी के रूप में देख रहे हैं। वैश्विक  तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। जल्दी कुछ करना होगा, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencemag.org/sites/default/files/styles/article_main_image_-1280w__no_aspect/public/ca_0522NID_Researchers_Leaves_online.jpg?itok=d0VNJzPi

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