गर्भाशय मुख शुक्राणुओं में भेद करता है

संतानोत्पत्ति में बाधा कई कारणों से आ सकती है। कभी-कभी तो डॉक्टर भी इसे समझ नहीं पाते। और अब, प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसाइटी बी में प्रकाशित में एक अध्ययन में शोधकर्ता बताते हैं कि जिन स्त्री-पुरुष जोड़ियों के ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) के जीन्स आपस में कम समानताएं रखते हैं उनमें महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा के म्यूकस (या श्लेष्मा) में शुक्राणु अधिक जीवित रह पाते हैं। और जिन जोड़ियों के जीनोटाइप में अधिक समानता होती है उनमें गर्भाशय ग्रीवा के म्यूकस में शुक्राणु जीवित बचने संभावना कम होती है। (बता दें कि HLA एक तरह का प्रोटीन है जिसकी मदद से प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी चीज़ों की पहचान करती है। और, म्यूकस गर्भाशय ग्रीवा में मौजूद ग्रंथियों द्वारा स्रावित द्रव है।)

पूर्व में हुए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया था कि संभवत: शुक्राणु की सतह पर HLA मौजूद होते हैं और यही HLA महिलाओं के गर्भाशय ग्रीवा के म्यूकस में भी पाए गए थे, जो इस बात की संभावना बढ़ाते हैं कि अंडाणु और शुक्राणु की समानता संतानोत्पत्ति में एक कारक हो सकती है।

कई जीवों में युग्मक (यानी अंडाणु और शुक्राण) स्तर पर, सभी नर-मादा जोड़ियां समान रूप से एक-दूसरे के सुसंगत नहीं होतीं। संतानोत्पत्ति में बाधा का कारण जानने के लिए आम तौर पर डॉक्टर या तो पुरुष के शुक्राणुओं की गुणवत्ता की जांच करते हैं या महिला में समस्या की जांच करते हैं। लेकिन चिकित्सा में युग्मक स्तर पर अनुकूलता पता करने के लिए कोई नियमित परीक्षण नहीं है। और युग्मक अनुकूलता के बारे में हमारा ज्ञान भी सीमित है।

इसे विस्तार से समझने के लिए युनिवर्सिटी ऑफ ईस्टर्न फिनलैंड के जीव विज्ञानी केकैलाइनन और उनके सहयोगियों ने नौ महिलाओं के ग्रीवा म्यूकस के और आठ पुरुषों के शुक्राणु के नमूने लिए। फिर हरेक नमूने के HLA का क्षार-अनुक्रम पता किया। और फिर ग्रीवा म्यूकस के नमूनों और शुक्राणु के नमूनों की सारी संभव जोड़ियां बनाईं और इसमें शुक्राणु की दशा का अवलोकन किया। उन्होंने पाया कि जिन पुरुष-महिला में आनुवंशिक समानता कम थी उन जोड़ियों में शुक्राणु के जीवित रहने की संभावना अधिक थी। इससे लगता है कि प्रतिरक्षा अनुकूलता प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

बहरहाल इस बारे में व्यापक स्तर पर अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है कि क्या HLA की आनुवंशिक संरचना निषेचन को प्रभावित करती है। इसमें शुक्राणु के उन लक्षणों की भी पड़ताल की जा सकती है जिससे निषेचन की सफलता प्रभावित होती है। फिलहाल शोधकर्ता पता कर रहे हैं कि शुक्राणु की जीवन क्षमता HLA की आनुवंशिक संरचना से किस प्रकार प्रभावित होती है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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