घुड़सवारी ने बनाया बहुजातीय साम्राज्य

ब तक, श्यून्गनू लोगों के बारे में जो भी लिखित जानकारी मिलती है वह उनके शत्रुओं द्वारा किए गए वर्णन से मिलती है। चीन के 2200 साल पुराने रिकॉर्ड बताते हैं कि कैसे मैदानों (वर्तमान के मंगोलिया) से आकर घुड़सवार-तीरंदाज़ श्यून्गनू लोगों ने चीन की उत्तर-पश्चिमी सीमा से प्रवेश कर आक्रमण किया।

श्यून्गनू साम्राज्य ने अपने बारे में कोई लिखित रिकार्ड नहीं छोड़े हैं। लेकिन जीव विज्ञान अब श्यून्गनू साम्राज्य की और अन्य मध्य एशियाई संस्कृति की कहानी बयां कर रहा है।

हाल ही में हुए दो अध्ययनों ने मध्य एशिया में मनुष्यों के फैलाव और इसमें घुड़सवारी की भूमिका की पड़ताल की है। इनमें से एक अध्ययन 6000 साल की अवधि के 200 से अधिक मनुष्यों के डीएनए का व्यापक सर्वेक्षण है। दूसरा अध्ययन श्यून्गनू साम्राज्य के उदय के ठीक पहले के घोड़ों के कंकालों का विश्लेषण है।

ये अध्ययन बताते हैं कि घोड़ों ने मनुष्यों के आवागमन के पैटर्न को नए आयाम दिए और लोगों को कम समय में लंबी दूरी तय करने में सक्षम बनाया।

संभवत: वर्तमान के कज़ाकस्तान के पास बोटाई संस्कृति ने लगभग 3500 ईसा पूर्व घोड़ों को पालतू बनाया था। शुरुआत में इन्हें मुख्यत: मांस और दूध के लिए पाला जाता था, और बाद में इनका इस्तेमाल घोड़ा-गाड़ी में किया जाने लगा।

पहला अध्ययन सेल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। सियोल नेशनल युनिवर्सिटी के चून्गवॉन जिओंग और उनकी टीम ने पूरे मध्य एशिया में मानव प्रवास को समझने के लिए मंगोलिया से प्राप्त मानव अवशेषों के डीएनए नमूनों का अनुक्रमण किया। नमूने 5000 ईसा पूर्व से लेकर चंगेज़ खान के मंगोल साम्राज्य की घुड़सवार संस्कृति के उदय तक यानी 1000 ईस्वीं तक के हैं।

पश्चिमी युरोपीय लोगों के आनुवंशिक अध्ययन से पता चल चुका है कि लगभग 3000 ईसा पूर्व यामन्या संस्कृति के चरवाहों ने मैदानों से आज के रूस और यूक्रेन की ओर प्रवास किया था और युरोप में एक बड़े आनुवंशिक बदलाव की शुरुआत की थी। कांस्य युगीन मंगोलियन कंकालों से मालूम पड़ता है कि यामन्या लोगों ने पूर्व का रुख भी किया था और वहां अपनी पशुपालक जीवनशैली की स्थापना की थी। लेकिन ताज़ा अध्ययन बताता है कि उन्होंने मंगोलिया में अपनी कोई स्थायी आनुवंशिक छाप नहीं छोड़ी।

जबकि इसके लगभग हज़ार साल बाद घास के मैदानों (स्टेपीस) की एक अन्य संस्कृति, सिंतश्ता, ने वहां अपनी स्थायी छाप छोड़ी। पूर्व में किए गए पुरातात्विक अध्ययनों से पता चला था कि वे मंगोलिया में दूरगामी सांस्कृतिक परिवर्तन लाए थे। 1200 ईसा पूर्व में घोड़ों से सम्बंधित कई नवाचार दिखे। जैसे घोड़ों के अच्छे डील-डौल और क्षमता के लिए चयनात्मक प्रजनन, नियंत्रण के लिए लगाम या नकेल, घुड़सवारी की पोशाक और काठी (जीन)।

प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित दूसरा अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि इस समय मंगोलियाई लोग घुड़सवारी करने लगे थे। वर्तमान चीन के शिनजियांग प्रांत के तिआनशान पहाड़ों में मिले लगभग 350 ईसा पूर्व के ज़माने के घोड़े के कंकालों में घुड़सवारी के कारण होने वाले विकार दिखे। घुड़सवार के वज़न के कारण घोड़े की रीढ़ की हड्डी में चोट पहुंचती है और लगाम कसने और नकेल के कारण मुंह की हड्डियों का आकार बदल जाता है।

इसके थोड़े समय बाद ही श्यून्गनू साम्राज्य उभरा। उन्होंने अपने घुड़सवारी के कौशल का युद्ध में उपयोग किया और दूर-दूर तक अपना साम्राज्य फैलाया। लगभग 200 ईसा पूर्व श्यून्गनू लोगों ने युरेशिया की एक घुमंतू जनजाति को दुर्जेय सेना में तब्दील कर दिया, जिसने घास के मैदानों को पड़ोसी चीन का मुख्य प्रतिद्वंदी बना दिया।

श्यून्गनू साम्राज्य की 300 साल की अवधि के 60 मानव कंकालों के डीएनए अध्ययन से पता चलता है कि कैसे यह क्षेत्र एक बहुजातीय साम्राज्य बना। जब मंगोलिया के मैदानों में तीन घुड़सवार संस्कृतियां पास-पास रहती थी तब लगभग 200 ईसा पूर्व तेज़ी से आनुवंशिक विविधता बढ़ी। पश्चिमी और पूर्वी मंगोलियाई लोगों का आपस में मेल हुआ और वे अपने जीन्स दूर-दूर तक ले गए, वर्तमान ईरान और मध्य एशिया तक भी। जिओंग का कहना है कि इसके पहले तक इतने बड़े स्तर पर लोगों में मेल-जोल नहीं हुआ था। श्यून्गनू लोगों में पूरी युरेशियन आनुवंशिक प्रोफाइल दिखती है।

इन परिणामों से पता चलता है कि घोड़ों ने मध्य एशिया के मैदान तक पहुंच संभव बनाई। श्यून्गनू के उच्च वर्ग के लोगों की कब्रों से मिली पुरातात्विक सामग्री – जैसे रोमन ग्लास, फारसी वस्त्र और यूनानी चांदी के सिक्के – बताती हैं कि उनकी पहुंच दूर-दूर तक थी। लेकिन आनुवंशिक साक्ष्य बताते हैं कि बात सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं थी बल्कि इससे अधिक थी। श्यून्गनू काल के ग्यारह कंकालों के अध्ययन से पता चला है कि इनकी आनुवंशिक छाप उन सरमेशियाई घुमंतू योद्धाओं जैसी है जिन्होंने काले सागर के उत्तर में राज किया था।

शोधकर्ता अब जीनोम विश्लेषण की मदद से पता लगाना चाहते हैं कि इस खानाबदोश साम्राज्य ने किस तरह काम किया।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencemag.org/sites/default/files/styles/article_main_image_-1280w__no_aspect/public/ca_1106NID_Xiongnu_Grappling_Horses_online.jpg?itok=nl-Jboxb

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