खाया-पीया पता करने की नई विधि

ल्द ही वैज्ञानिक दांतों में जमा टार्टर का विश्लेषण कर बता सकेंगे कि प्राचीन लोग किन (मादक) पदार्थों का सेवन किया करते थे। नई विकसित विधि से उन्नीसवीं सदी के कंकाल पर किए गए परीक्षण में शोधकर्ताओं को ड्रग्स के अवशेष मिले हैं। इसके अलावा हाल ही में मृत 10 शवों पर मानक रक्त परीक्षण विधि से किए गए ड्रग परीक्षण की तुलना में नई विधि से अधिक ड्रग्स की उपस्थिति का पता चला है।

अब तक, खुदाई में प्राप्त धूम्रपान या मद्यपान के पात्रों में जमा अवशेषों के आधार पर प्राचीन मनुष्यों की औषधियों और मादक पदार्थों के सेवन की आदतों के बारे में पता किया जाता था। लेकिन इस तरह के विश्लेषण में अक्सर उन ड्रग्स का पता नहीं चलता जिनके सेवन के लिए पात्रों की ज़रूरत नहीं पड़ती जैसे भ्रांतिजनक मशरूम। इसके अलावा पात्रों के विश्लेषण से यह भी पता नहीं चलता कि सेवन किसने किया था।

लीडेन युनिवर्सिटी के पुरातत्वविद ब्योर्न पियरे बार्थहोल्डी का अनुमान था कि उन्नीसवीं सदी में, जब डॉक्टर नहीं थे, ग्रामीण अपनी बीमारियों और दर्द का इलाज स्वयं ही करते होंगे। इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने कंकालों के दांतों पर जमा कठोर परत से प्राचीन लोगों के आहार की पड़ताल करने वाली एक तकनीक का सहारा लिया। दांतों पर जमा इस कठोर परत को टार्टर कहते हैं। टार्टर में खाते-पीते वक्त भोजन, पेय या अन्य पदार्थ के कुछ कण फंस जाते हैं, जो जीवाश्मो में लगभग 10 लाख सालों तक बने रह सकते हैं।

लेकिन अफीम, भांग और अन्य औषधियों के फंसे हुए अवशेषों के बारे में पता करने की कोई मानक विधि नहीं थी। इसलिए शोधकर्ताओं ने ऑरहस युनिवर्सिटी के फॉरेंसिक डेंटिस्ट डॉर्थे बाइंडस्लेव की मदद से जीवित या हाल ही में मृत लोगों के रक्त या बालों के नमूनों में ड्रग्स की उपस्थिति का पता लगाने की मानक विधि में बदलाव कर कंकालों में ड्रग्स की उपस्थिति पता लगाने की एक नई विधि विकसित की।

शोधकर्ताओं ने टार्टर का मुख्य खनिज हाइड्रॉक्सीएपैटाइट लिया और उसमें कैफीन, निकोटीन और कैनबिडिओल जैसे वैध ड्रग्स नपी-तुली मात्रा मिलाए और ऑक्सीकोडोन, कोकीन और हेरोइन जैसे कुछ प्रतिबंधित ड्रग्स मिलाए। फिर इन नमूनों की उन्होंने मास स्पेक्ट्रोमेटी की। इस तरह मिश्रण में उन्हें 67 ड्रग्स और ड्रग के पाचन से बने पदार्थ मिले। मास स्पेक्ट्रोमेट्री में पदार्थ के आवेश और भार के अनुपात के आधार पर विभिन्न रसायनों का पता लगाया जाता है।

इसके बाद उन्होंने हाल ही में मृत 10 शवों में नई परीक्षण विधि से ड्रग्स की उपस्थिति जांची और इन परिणामों की तुलना रक्त आधारित मानक ड्रग परीक्षण के नतीजों से की। फॉरेंसिक साइंस इंटरनेशनल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार नई विधि से इन शवों में हेरोइन, हेरोइन मेटाबोलाइट और कोकीन सहित 44 ड्रग्स और मेटाबोलाइट्स मिले, जो मानक रक्त परीक्षण में मिले कुल ड्रग्स से थोड़े अधिक थे।

अब तक परीक्षणों में रक्त से ड्रग्स गायब हो जाने के बाद बालों के नमूनों से ड्रग्स के सेवन या उपस्थिति के बारे में पता किया जाता था। चूंकि टार्टर ड्रग्स सेवन का लंबे समय तक रिकॉर्ड रख सकता है इसलिए अब बालों की जगह टार्टर का उपयोग ड्रग्स की उपस्थिति पता करने के लिए किया जा सकता है। इससे ड्रग्स उपयोग के इतिहास को दोबारा लिखने में मदद मिल सकती है। लेकिन कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि नई विधि अच्छी तो है और इसमें रेत के एक कण से भी छोटे नमूने से काम चल जाता है, लेकिन इसके लिए एक अत्यधिक संवेदनशील मास स्पेक्ट्रोमीटर की ज़रूरत पड़ती है जो सामान्य प्रयोगशालाओं में उपलब्ध नहीं होते। इसके अलावा इस विधि से परीक्षण के बाद नमूने नष्ट हो जाते हैं। कुछ रसायन टार्टर के भीतर भी समय के साथ विघटित हो जाते हैं। इसके अलावा, इस विधि में वे पौधे भी छूट गए हैं जो किसी समय में प्राचीन लोगों द्वारा मादक, उत्तेजक और औषधियों के रूप में उपयोग किए जाते थे, लेकिन आधुनिक समय में उपयोग नहीं किए जाते या इनके बारे में मालूम नहीं है। लेकिन इस काम के आधार पर हम तकनीक को और अच्छी तरह विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencemag.org/sites/default/files/styles/article_main_large/public/Calculus%20Deposits-1280×720.jpg?itok=lnW6HMWK

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