व्हाट्सऐप: निजता हनन की चिंताएं – सोमेश केलकर

व्हाट्सऐप फिलहाल भारी पलायन का सामना कर रहा है। निजता के प्रति चिंतित उपयोगकर्ता तब से और चिंता में पड़ गए हैं जब से व्हाट्सऐप ने उपयोगकर्ताओं से यह मांग की कि वे 8 फरवरी तक या तो उसकी नई निजता नीति को स्वीकार कर लें या व्हाट्सऐप का उपयोग बंद कर दें। गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है कि व्हाट्सऐप ने अपनी जानकारी को मूल कंपनी फेसबुक के साथ साझा करने के लिए अपनी निजता नीति में परिवर्तन किए हैं। यह समझने के लिए कि चल क्या रहा है, हमें पीछे लौटकर फरवरी 2014 में झांकना होगा जब फेसबुक ने व्हाट्सऐप को 22 अरब डॉलर में खरीदा था।

जब फेसबुक पहली बार व्हाट्सऐप का अधिग्रहण करने पर विचार कर रही थी, उस समय निजता सम्बंधी कार्यकर्ताओं ने इस बात को लेकर चिंता ज़ाहिर की थी कि इस तरह के अधिग्रहण से व्हाट्सऐप और फेसबुक के बीच डैटा साझेदारी की संभावना बढ़ जाएगी। इन चिंताओं को विराम देने के लिए व्हाट्सऐप के अधिकारियों ने यह वचन दिया था कि वे कभी भी फेसबुक के साथ जानकारी साझा नहीं करेंगे। इस तरह के आश्वासन के बाद युरोपीय आयोग, संघीय व्यापार आयोग तथा अन्य नियामक संस्थाओं ने फेसबुक द्वारा व्हाट्सऐप के अधिग्रहण को हरी झंडी दिखा दी थी।

अब हम पहुंचते हैं अगस्त 2016 में। व्हाट्सऐप ने घोषणा की कि वह अपनी कुछ जानकारी फेसबुक के साथ साझा करेगा। इसमें उपयोगकर्ताओं के फोन नंबर तथा अंतिम गतिविधि से सम्बंधित जानकारी शामिल थी। व्हाट्सऐप ने कहा था कि निजता नीति में इन परिवर्तनों के बाद फेसबुक उपयोगकर्ताओं को सर्वोत्तम मित्र सम्बंधी सुझाव दे सकेगी और उनके लिए प्रासंगिक विज्ञापन भी दिखा सकेगी। उपयोगकर्ताओं को इसे स्वीकार करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था और यदि 30 दिनों में इसे अस्वीकार न करते तो उनके पास जानकारी की साझेदारी को मंज़ूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। इसके अलावा, अगस्त 2016 के बाद जुड़ने वाले उपयोगकर्ताओं को तो कोई विकल्प ही नहीं दिया गया था – उन्हें तो फेसबुक के साथ जानकारी साझा करने की बात को स्वीकार करना ही था।

जिन नियामकों ने निजता नीति को बरकरार रखने के व्हाट्सऐप के उपरोक्त आश्वासन के बाद फेसबुक द्वारा अधिग्रहण को स्वीकृति दी थी, उन्हें यह दोगलापन रास नहीं आया। 2017 में युरोपीय आयोग ने अधिग्रहण के समय भ्रामक जानकारी देने के सम्बंध में फेसबुक पर 11 करोड़ यूरो का जुर्माना लगाया था। तब फेसबुक ने कहा था कि उसके पास व्हाट्सऐप और फेसबुक के उपयोगकर्ताओं को आपस में जोड़ने की तकनीकी सामथ्र्य ही नहीं है। 2016 से पहले भी जर्मनी तथा युनाइटेड किंगडम के डैटा सुरक्षा अधिकारियों ने फेसबुक को निर्देश दिए थे कि वह व्हाट्सऐप के उपयोगकर्ताओं का डैटा संग्रह करना बंद कर दे।

भारत में नीति परिवर्तन

भारत में व्हाट्सऐप के नीतिगत परिवर्तन एक पॉप-अप के रूप में सामने आए जिसमें उपयोगकर्ताओं को सूचित किया गया था कि व्हाट्सऐप की निजता नीति बदल गई है और उन्हें 8 फरवरी तक इन परिवर्तनों को स्वीकार करना होगा अथवा व्हाट्सऐप का उपयोग पूरी तरह बंद कर देना होगा। हालांकि अधिकांश उपयोगकर्ताओं ने ‘एग्री’ यानी सहमति पर क्लिक कर दिया ताकि इस पॉप-अप से छुटकारा मिले और वे संदेश भेजने का काम जारी रख सकें। अलबत्ता कुछ लोगों ने इस पॉप-अप में निजता नीति में किए जा रहे परिवर्तनों पर ध्यान दिया और पाया कि ये परिवर्तन काफी परेशान करने वाले हो सकते हैं क्योंकि ये उपयोगकर्ता की निजता को जोखिम में डाल सकते हैं।

इस संदर्भ में एलोन मस्क ने ट्विटर पर लिखा कि लोगों को एक अन्य मेसेजिंग सॉफ्टवेयर ‘सिग्नल’ पर चले जाना चाहिए क्योंकि वह ज़्यादा सुरक्षित है और जानकारी इकट्ठी नहीं करता। इस ट्वीट के बाद दुनिया भर में लोग व्हाट्सऐप को छोड़कर ‘टेलीग्राम’ तथा ‘सिग्नल’ जैसे ऐप्स पर जाने लगे हैं।

नीतिगत परिवर्तन क्या हैं?

नई नीति में कहा गया है कि अब व्हाट्सऐप नैदानिक व निजी जानकारी एकत्रित करता है जिसे फेसबुक के साथ साझा किया जा सकता है।

नई नीति के अनुसार व्हाट्सऐप का एकीकरण फेसबुक व इंस्टाग्राम के साथ किया जाएगा जिसके अंतर्गत इन तीनों के बीच जानकारी का आदान-प्रदान भी संभव है।

व्हाट्सऐप उपयोगकर्ताओं की जानकारी फेसबुक के स्वामित्व वाली अन्य बिज़नेस कंपनियों के साथ भी साझा कर सकेगा।

पहले निजता सम्बंधी नीति में कहा गया था, “आपके व्हाट्सऐप संदेशों की जानकारी फेसबुक पर साझा नहीं की जाएगी जहां इसे अन्य लोग देख सकें; दरअसल फेसबुक आपके व्हाट्सऐप संदेशों का उपयोग हमें सेवाओं में मदद देने के अलावा किसी अन्य उद्देश्य से नहीं करेगा।” यह हिस्सा वर्तमान नीतिगत संशोधन में विलोपित कर दिया गया है जिसका मतलब है कि व्हाट्सऐप के चैट्स का इस्तेमाल सेवा को बेहतर बनाने के अलावा अन्य कार्यों में भी किया जा सकता है।

नई निजता नीति वैश्विक संचालन तथा डैटा हस्तांतरण को भी विस्तार देती है। इसमें यह भी शामिल है कि कुछ जानकारियों का उपयोग आंतरिक रूप से फेसबुक की कंपनियों के साथ और अन्य पार्टनर्स तथा सेवा प्रदाताओं के साथ किस तरह किया जाएगा।

फेसबुक की कंपनियों और अन्य पार्टनर्स के साथ व्हाट्सऐप जो जानकारी साझा करता है, उसमें निम्नलिखित शामिल है:

1. फोन नंबर

2. डिवाइस की पहचान

3. भौगोलिक स्थिति

4. उपयोगकर्ता के संपर्क

5. उपयोगकर्ता की वित्तीय जानकारी

6. प्रोडक्ट्स सम्बंधी क्रियाकलाप

7. उपयोगकर्ता द्वारा भेजी गई तस्वीरें, संदेश वगैरह

8. उपयोगकर्ता के पहचान के लक्षण

व्हाट्सऐप द्वारा उपयोगकर्ताओं की निजता सम्बंधी नई नीतियों के खिलाफ ऑनलाइन आक्रोश शुरू होने के साथ ही, व्हाट्सऐप इस नई नीति को स्वीकार्य बनाने के लिए ऐसे बयान जारी करने लगा कि यह नई नीति मात्र उन संवादों को प्रभावित करेंगी जो कोई उपयोगकर्ता व्यापारिक प्रतिष्ठानों के साथ करता है। अलबत्ता, ये बयान लीपापोती से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।

व्हाट्सऐप मेसेजिंग प्लेटफॉर्म पर इस समय 5 करोड़ से ज़्यादा व्यापारिक खाते हैं। इसके चलते सारा डैटा इन व्यापार प्रतिष्ठानों के हाथ आ जाएगा। नीति में यह भी कहा गया है कि उपयोगकर्ता जो बातचीत व्यापारिक प्रतिष्ठानों के साथ साझा करेंगे वह कंपनी के अंदर भी और कई अन्य पार्टियों द्वारा देखी जा सकेगी।

तो क्या?

इस सबका मतलब यह है कि व्हाट्सऐप कंपनी न सिर्फ उपयोगकर्ता की बातचीत को किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा कर सकती है, बल्कि वह तीसरा पक्ष यह भी जांच कर सकता है कि उपयोगकर्ता क्या-क्या खरीदता है वगैरह। इस जानकारी के आधार पर फेसबुक, इंस्टाग्राम तथा अन्य विज्ञापन बनाए जा सकेंगे।

यह भी हो सकता है कि उपयोगकर्ता को इस तरह के लक्षित विज्ञापन अन्य वेबसाइट्स पर भी दिखने लगें, जो शायद फेसबुक से सम्बंधित न हों। ऐसे अधिकांश लक्षित विज्ञापन निशुल्क सोशल मीडिया के विश्लेषण से उभरते हैं। ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अपनी जानकारी व्यापारिक प्रतिष्ठानों को बेचते हैं। इसका मतलब यह भी है कि उपयोगकर्ता की किसी व्यापारिक प्रतिष्ठान से बातचीत सुरक्षित नहीं होगी और यदि उस व्यापारिक प्रतिष्ठान का डैटा लीक हुआ तो उपयोगकर्ता का खाता क्रमांक, मेडिकल जानकारी वगैरह अन्य प्रतिष्ठानों के हाथ लग सकती है।

इसके बाद है मेटा-डैटा के उपयोग का सवाल। व्हाट्सऐप काफी समय से मेटा-डैटा एकत्रित करता आ रहा है। मेटा-डैटा वह डैटा होता है जो वास्तविक डैटा के बारे में जानकारी प्रदान करता है। जैसे, यदि कोई उपयोगकर्ता व्हाट्सऐप पर बार-बार किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ से संपर्क करे, तो चाहे आपको संदेशों की विषयवस्तु न मालूम हो, पर आप अंदाज़ तो लगा ही सकते हैं कि उसे किस तरह की चिकित्सा समस्या है। इस तरह के मेटा-डैटा को साझा करना भी उपयोगकर्ता की निजता का उल्लंघन है।

क्या किया जाए?

व्हाट्सऐप की वर्तमान नीति-परिवर्तन अधिसूचना के मुताबिक 8 फरवरी के बाद व्हाट्सऐप का उपयोग जारी रखने के लिए उपयोगकर्ता को उक्त नीतिगत परिवर्तनों को स्वीकार करना होगा। लगता तो है कि इस मामले में कुछ नहीं किया जा सकता। उपयोगकर्ता को दो में से एक विकल्प चुनना होगा – या तो इन परिवर्तनों को माने या व्हाट्सऐप का उपयोग बंद कर दे।

व्हाट्सऐप या फेसबुक खाते की एक विशेषता यह भी है कि इन्होंने जो जानकारी एकत्रित कर ली है वह अपने आप मिट नहीं जाती। अर्थात यदि आप निजता की चिंता करते हैं, तो एकमात्र विकल्प यही होगा कि आप इन खातों का उपय़ोग करना बंद कर दें। यही होने भी लगा है।

निजता सम्बंधी इन परिवर्तनों की घोषणा के बाद देखा गया है कि अन्य ऐप्स बढ़ती संख्या में डाउनलोड किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए टेलीग्राम के मासिक डाउनलोड में 15 प्रतिशत और सिग्नल के डाउनलोड में 9000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शायद व्हाट्सऐप द्वारा निजता में लगाई जा रही सेंध का यही सबसे अच्छा समाधान है। ये दोनों ऐप्स (टेलीग्राम और सिग्नल) दोनों सिरों पर कूटबद्ध होते हैं और ऐसी जानकारी एकत्रित नहीं करते जिससे किसी उपयोगकर्ता की पहचान की जा सके।

देखना यह है कि क्या व्हाट्सऐप अखबारों, सोशल मीडिया व अन्यत्र पड़ रहे दबाव के जवाब में अपनी नीति बदलता है और क्या व्हाट्सऐप छोड़कर जा रहे लोगों की संख्या उसे पुनर्विचार को बाध्य कर पाती है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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