सामाजिक-आर्थिक बदलाव में दिखी विज्ञान की भूमिका – चक्रेश जैन

साल 2022 की अहम वैज्ञानिक घटनाओं और अनुसंधानों को मिलाकर देखें तो लगता है पूरा साल विज्ञान जगत में अभिनव प्रयोगों, अन्वेषणों और उपलब्धियों का रहा। विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों ने सुर्खियों के लिए अलग-अलग घटनाओं का चयन किया है। अधिकांश विज्ञान पत्र-पत्रिकाओं ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को सुखिर्यों में विशेष स्थान दिया है। विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस ने जहां एक ओर वर्ष की दस प्रमुख उपलब्धियों (ब्रेकथ्रू) में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को प्रथम स्थान पर रखा है, वहीं दूसरी ओर इस वर्ष की विफलताओं (ब्रेकडाउन) की सूची में ‘ज़ीरो कोविड नीति’ को प्रमुखता से शामिल किया है।

बीते वर्ष 12 जुलाई को जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से ली गई ब्रह्मांड की पहली पूर्ण रंगीन तस्वीर जारी की गई। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से लिए गए चित्रों से ब्रह्मांड की उत्त्पत्ति की जड़ों को तलाशने में मदद मिलेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस मौके पर कहा था कि यह टेलीस्कोप मानवता की महान इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक है। दस अरब डॉलर की लागत से तैयार इस टेलीस्कोप को साल 2021 में क्रिसमस उत्सव के मौके पर लॉन्च किया गया था। इसे हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी कहा जा सकता है। इस टेलीस्कोप में लगे विशाल प्रमुख दर्पण की मदद से अंतरिक्ष में किसी भी अन्य टेलीस्कोप की तुलना में अधिक दूरी तक देखा जा सकता है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने ब्रह्मांड में सबसे दूरस्थ और प्राचीनतम निहारिकाओं के चित्र भेजे हैं। इस नए दमदार टेलीस्कोप से पहली बार ब्रह्मांड के शुरुआत की झलक सामने आई, जिसमें निहारिकाओं के नृत्य और तारों की मृत्यु की तस्वीरें शामिल हैं।

विदा हो चुके साल 2022 में चंद्रमा पर पहुंचने की दौड़ जारी रही। निजी क्षेत्र भी मैदान में सक्रिय दिखाई दिया। अमेरिका, रूस, चीन, जापान, भारत और कोरिया ने पिछले वर्ष ही अपना भावी कार्यक्रम घोषित कर दिया था। 1972 में अपोलो-17 मिशन के साथ ही चंद्रमा पर मानव सहित यान भेजने का अभियान थम गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पांच दशकों बाद फिर से चंद्रमा पर मानव अवतरण का अभियान शुरू किया है। इसे ‘आर्टेमिस मिशन’ नाम दिया गया है। इसी वर्ष नवंबर में आर्टेमिस-1 के ज़रिए ओरायन अंतरिक्ष यान भेजा गया, जिसने चंद्रमा की सतह से नब्बे किलोमीटर ऊपर विभिन्न प्रयोग किए। इस अभियान की सफलता ने आर्टेमिस-2 और आर्टेमिस-3 को भेजने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। वैज्ञानिकों ने इस दशक के अंत तक चंद्रमा पर मनुष्य को बसाने का दावा भी किया है।

युरोपीय स्पेस एजेंसी ने अपने भावी अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए 22,500 आवेदकों में से 17 व्यक्तियों का चुनाव किया है। इनमें ब्रिटेन के जॉन मैकफाल भी हैं। उन्होंने 2008 में एक पैर नहीं होने के बावजूद पैरालिंपिक में कांस्य पदक जीता था। यह पहला अवसर है, जब किसी विकलांग को अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुना गया है।

सितंबर में नासा ने एक नए प्रयोग को अंजाम दिया, जिसका उद्देश्य पृथ्वी से टकरा सकने वाले छोटे ग्रहों से बचाव की तैयारी है। इसका नाम है डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट (डार्ट) मिशन। नासा ने नवंबर 2021 में डॉर्ट मिशन अंतरिक्ष में भेजा था। दस महीने के सफर के बाद डार्ट अपने अभीष्ट निशाने के पास तक पहुंचा और अपूर्व कार्य संपन्न किया। इस मिशन के अंतर्गत पृथ्वी के लिए खतरा पैदा करने वाले क्षुद्र ग्रहों अथवा एस्टोरॉयड की दिशा को बदला जा सकेगा। यह प्रक्रिया अंतरिक्ष यान के ज़रिए की जा सकेगी। जानकारों के मुताबिक आने वाले वर्षों में इस दिशा में बहुत से प्रयोग होंगे।

साल 2022 ‘अंतर्राष्ट्रीय मूलभूत विज्ञान वर्ष’ के रूप में मनाया गया। 2017 में माइकल स्पाइरो ने युनेस्को द्वारा आयोजित वैज्ञानिक बोर्ड की बैठक में वर्ष 2022 को अंतर्राष्ट्रीय मूलभूत विज्ञान वर्ष के रूप में मनाने का विचार रखा था। प्राकृतिक और ब्रह्मांडीय घटनाओं की व्याख्या में मूलभूत विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है। कोरोना वायरस की संरचना को समझने और उससे फैले संक्रमण का सामना करने के लिए टीकों के निर्माण में मूलभूत विज्ञान का योगदान रहा है। यही नहीं अंतरिक्ष के क्षेत्र में मिली तमाम उपलब्धियों की पृष्ठभूमि में मूलभूत विज्ञान का बहुत बड़ा हाथ है। सच तो यह है कि पृथ्वी ग्रह का सतत और समावेशी विकास मूलभूत विज्ञान में अनुसंधान की अनदेखी करके नहीं हो सकता।

बीते वर्ष जीव विज्ञान के अनुसंधानकर्ताओं ने कैरेबिया के मैन्ग्रोव वनों में एक नया बैक्टीरिया खोजा जिसे देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी की ज़रूरत नहीं होती। वैज्ञानिकों ने नए बैक्टीरिया को थियोमार्गरिटा मैग्नीफिका नाम दिया है। यह बैक्टीरिया अपने बड़े आकार के कारण कोशिका विज्ञान के अध्ययनकर्ताओं के बीच चर्चा का विषय रहा। इसमें कई विशेषताएं हैं। इसका जीनोम एक झिल्ली में कैद होता है, जबकि सामान्य बैक्टीरिया की जेनेटिक सामग्री झिल्ली में नहीं होती है। इस बैक्टीरिया के बड़े आकार और झिल्लीयुक्त जीनोम को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह जटिल कोशिकाओं के उद्भव को समझने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। साइंस के संपादकों ने दस प्रमुख खोजों की सूची में नए बैक्टीरिया की खोज को स्थान दिया है।

विज्ञान जगत की एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ने इस साल की दस प्रमुख घटनाओं में मंकीपॉक्स वायरस को भी शामिल किया है। मई में युरोप और अमेरिका में इस वायरस के हमले का पता चला। लगभग 100 से अधिक देश इसकी चपेट में आ गए। यह वायरस भी कोरोना वायरस की तरह खतरनाक है, जो जंतुओं से मनुष्यों में फैलता है। इससे संक्रमित व्यक्ति में चेचक जैसे लक्षण दिखते हैं। मंकीपॉक्स वायरस पाक्सविरिडी कुल का सदस्य है। इस वायरस की खोज 1958 में हुई थी। अध्ययनकर्ताओं को बंदरों की कॉलोनी में चेचक जैसा रोग मिला, इसलिए इसका नाम मंकीपॉक्स रख दिया गया। इससे संक्रमित लोग बिना उपचार के अपने आप स्वस्थ हो जाते हैं। वर्तमान में इसके लिए कोई स्वीकृत एंटी वायरस नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका नाम मंकीपॉक्स से बदल कर ‘एमपॉक्स’ कर दिया है। वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि भविष्य में यह वायरस म्युटेशन की चपेट में आ सकता है।

गुज़रे साल वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड में सबसे प्राचीन डीएनए को खोजने में बड़ी सफलता प्राप्त की। प्राचीन डीएनए बीस लाख साल पुराना है। लगभग चालीस अनुसंधानकर्ता सोलह वर्षों तक प्राचीन डीएनए के रहस्य का पता लगाने में जुटे रहे। इस खोज ने उस इतिहास में झांकने का अवसर प्रदान किया, जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। अमेरिकी एसोसिएशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ साइन्स के जर्नल ने इसे ‘टॉप टेन इन साइंस’ की सूची में सम्मिलित किया है।

वर्ष 2022 में पूर्वी और मध्य पनामा के वनों में मेंढक की नई प्रजाति मिली। पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के योगदान को रेखांकित और सम्मानित करने के लिए इसका नाम उन्हीं के नाम पर Pristimantis gretathunbergae रखा गया है।

साल की शुरुआत में 15 जनवरी को दक्षिणी प्रशांत महासागर में टोंगा ज्वालामुखी फट पड़ा। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि पिछले 100 सालों में यह सबसे भयानक ज्वालामुखी विस्फोट था, जिसने धरती को दो बार हिला दिया।

गुज़रे साल वैज्ञानिकों ने मनुष्य द्वारा मोबाइल फोन, लेपटॉप और अन्य उपकरणों का अधिक और लगातार उपयोग करने से शारीरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों का एक मॉडल तैयार किया है। इस मॉडल से 800 वर्षों में मनुष्य की शारीरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों की झलक मिलती है। वैज्ञानिकों ने थ्री डिज़ायनर से तैयार मॉडल के आधार पर बताया कि वर्ष 3000 तक पीठ में कुबड़ निकल आएगी, गर्दन मोटी हो जाएगी, हाथ के पंजे मुड़े हुए होंगे और आंखों में एक और झिल्ली उग आयेगी।

खगोल विज्ञान के अध्ययनकर्ताओं की टीम ने जीजे-1002 तारे के आसपास पृथ्वी जैसे दो ग्रहों की खोज की। लाल रंग का यह बौना तारा सौर मंडल से अधिक दूर नहीं है (मात्र 16 प्रकाश वर्ष दूर!)। इन दो ग्रहों की खोज के साथ ही अब हम सूर्य के समीप सौर मंडलों में मौजूद सात ऐसे ग्रहों के बारे में जानते हैं, जो पृथ्वी से मिलते-जुलते हैं।

साल 2022 में वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने की वास्तविक स्थिति के आकलन के लिए ‘वर्चुअल अर्थ’ का विकास किया। इस मॉडल के अनुसार इस सदी के अंत तक पृथ्वी से जीव-जंतुओं की 27 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।

वर्ष 2022 में अमेरिका को नाभिकीय संलयन प्रक्रिया से स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने में बड़ी सफलता मिली। कैलिर्फोनिया स्थित लारेंस लीवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के अनुसंधानकर्ताओं ने पहली बार नाभिकीय संलयन से खर्च से अधिक ऊर्जा प्राप्त की। नाभिकीय संलयन में दो परमाणु जुड़कर एक भारी परमाणु बनाते हैं। सूर्य में भी इसी प्रक्रिया से ऊर्जा उत्पन्न होती है। जानकारों का कहना है कि इस उपलब्धि से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी।

विज्ञान जगत की एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने इस साल की 22 अद्भुत अनुसंधानों की चयन सूची में माइक्रोप्लास्टिक को सम्मिलित किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक मनुष्य की प्रजनन क्षमता पर असर डालता है। माइक्रोप्लास्टिक का आकार पांच मिलीमीटर से कम होता है। यह खिलौनों, कार के पुराने टायर आदि में पाया जाता है। यह हमारे पास से होते हुए समुद्र में पहुंच रहा है। प्लास्टिक के कण नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते। यही कारण है कि आम आदमी को इसके बारे में जानकारी नहीं होती। वैज्ञानिकों ने 2021 में माइक्रोप्लास्टिक के असर पर अनुसंधान में पाया कि मनुष्य प्रतिदिन लगभग सात हज़ार माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े सांस के ज़रिए लेता है।

दिसंबर में मॉन्ट्रियल में संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन कॉप-15 में 190 से अधिक देशों ने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए ऐतिहासिक जैव विविधता संधि को मंज़ूरी दे दी। ये देश सन 2030 तक पृथ्वी के तीस प्रतिशत हिस्से के संरक्षण पर सहमत हुए हैं। बायोलॉजिकल कंज़र्वेशन में प्रकाशित शोध के अनुसार पिछले डेढ़ सौ वर्षों में कीटों की पांच से दस प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।

संयुक्त राष्ट्र का दो हफ्ते चला सालाना जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन सीओपी-27 मिस्त्र के शर्म-अल-शेख में आयोजित किया गया, जिसमें दुनिया भर के प्रतिनिधियों ने जलवायु संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए अपने विचार साझा किए। सम्मेलन में मुख्य मुद्दे इस बार भी नहीं सुलझे। सम्मेलन में दुनिया के आठ अरब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए कृषि और अनुकूलन के मुद्दों पर मंथन हुआ। अंत में वार्ताकारों के बीच ‘जलवायु आपदा कोश’ बनाने पर सहमति बनी। इसका उपयोग जलवायु आपदा से प्रभावित देशों के लिए किया जाएगा।

चिकित्सा विज्ञान के अनुसंधानकर्ताओं ने सात जनवरी को जेनेटिक रूप से परिवर्तित सुअर का दिल मनुष्य के शरीर में सफलतापूर्वक लगाया। यह प्रत्यारोपण बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसने भविष्य में ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन की राह खोल दी है। प्रत्यारोपण टीम के मार्दगर्शक सर्जन मोहम्मद मोइउद्दीन हैं, जिन्हें पत्रिका नेचर ने वर्ष 2022 के टॉप टेन व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित किया है।

यह वही साल था, जब रोबोट की भूमिका का एक और नया आयाम सामने आया। एआई-डीए नाम के इस रोबोट ने पहली बार ब्रिटेन की संसद को संबोधित किया। ब्रिटिश सांसदों ने रोबोट से कलात्मक कृतियां बनाने के बारे में सवाल भी किए। इस रोबोट का विकास ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है।

साल के उत्तरार्द्ध में चीन ने तिब्बती पठार पर दुनिया की सबसे बड़ी सौर दूरबीन स्थापित की। डीएसआरटी नाम की इस दूरबीन से सौर विस्फोटों को समझने में मदद मिलेगी। इससे प्राप्त जानकारियां अन्य देशों के अनुसंधानकर्ताओं को भी उपलब्ध कराई जाएंगी।

विदा हो चुके साल में दस करोड़ साल पुराना बड़ी आंखों वाला कॉकरोच जीवाश्म मिला। अब यह प्रजाति पृथ्वी पर नहीं है। इसका वैज्ञानिक नाम हुआब्लाटुला हुई (Huablattula hui) है। यह करोड़ों वर्षों से अंबर में कैद है। अंबर में कोई भी वस्तु जीवाश्म के तौर पर करोड़ों साल तक सुरक्षित रहती है।

नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने शिशु चूहों में मनुष्य के दिमाग की कोशिकाओं को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया। इस अनुसंधान से मनुष्य में तंत्रिका सम्बंधी विकारों को समझने और इलाज का मार्ग प्रशस्त हो गया है। कुछ विज्ञान पत्रिकाओं ने इस प्रयोग को साल के दस प्रमुख अनुसंधानों में स्थान दिया है।

वैज्ञानिकों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने कॉकरोच और मशीनों को मिलाकर साइबोर्ग कॉकरोच बनाया है। ये कॉकरोच सौर पैनल से जुड़ी बैटरी से लैस हैं। साइबोर्ग कॉकरोच पर्यावरण की निगरानी और प्राकृतिक आपदा के बाद बचाव मिशन में सहायता करेंगे। इससे पहले वैज्ञानिक रोबोटिक चूहे बना चुके हैं।

इसी वर्ष हिग्ज़ बोसान की खोज के दस साल पूरे हुए। 4 जुलाई 2012 को वैज्ञानिकों ने नए उप-परमाणविक कण के अस्तित्व की विधिवत घोषणा की थी। इस कण को ‘गॉड पार्टिकल’ भी कहा गया है, परंतु सच पूछा जाए तो इस कण का ‘गॉड’ अथवा ‘ईश्वर’ से कोई लेना-देना नहीं है। बीते एक दशक में इस महाप्रयोग के परिणामों ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधी हमारी समझ का विस्तार किया है और इसमें कण भौतिकी की अहम भूमिका सामने आई है। वैज्ञानिकों का विचार है कि हिग्ज़ बोसॉन अनुसंधान से आने वाले दिनों में कम्प्यूटिंग और मेडिकल साइंस के क्षेत्र में नई संभावनाओं की राह खुलेगी।

इस वर्ष ‘ब्रेकथ्रू’ प्राइज़ फाउंडेशन ने साल 2023 के ‘ब्रेकथ्रू’ पुरस्कारों की घोषणा की। यह विज्ञान का अति प्रतिष्ठित और नोबेल पुरस्कार की टक्कर का पुरस्कार है, जिसकी स्थापना मार्क ज़ुकरबर्ग, सर्गेई ब्रिन और कुछ अति धनाढ्य विज्ञानप्रेमी लोगों ने मिलकर की है। इसकी पहचान ‘आस्कर ऑफ साइंस’ के रूप में है। यह पुरस्कार हर साल गणित, मूलभूत भौतिकी और जीव विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए दिया जाता है। वर्ष 2023 के लिए गणित के क्षेत्र में डेनियल ए. स्पीलमन को सम्मानित किया गया है। मूलभूत भौतिकी के क्षेत्र में इस बार पुरस्कार चार्ल्स एच. बेनेट, गाइल्स ब्रासार्ड, डेविड डॉच और पीटर शोर को दिया गया है। जीव विज्ञान में डेमिस हैसाबिस, जॉन जम्पर, एंथनी ए. हायमन, क्लिफोर्ड ब्रैंगनाइन, इमैनुएल मिग्नाट और मसाशी यानागिसावा को कृत्रिम बुद्धि के उपयोग से प्रोटीन की संरचना की भविष्यवाणी के लिए पुरस्कृत किया गया है।

वर्ष 2022 का गणित का प्रतिष्ठित एबेल पुरस्कार अमेरिकी गणितज्ञ डॉ. डेनस पी. सुलिवान को दिया गया है। एबेल पुरस्कार को गणित का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है। इसकी स्थापना 2002 में की गई थी।

अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई। इस बार विज्ञान के विभिन्न विषयों के नोबेल पुरस्कार सात वैज्ञानिकों को दिए गए। चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार स्वीडन के आनुवंशिकी वैज्ञानिक स्वांते पाबो को दिया गया है। उन्हें विलुप्त पूर्वजों से आधुनिक युग के मानव का विकास विषय पर शोध के लिए पुरस्कृत किया गया। भौतिकशास्त्र का नोबेल पुरस्कार एलेन ऑस्पेक्ट, जॉन क्लाज़र और एंटोन जेलिंगर को संयुक्त रूप से क्वांटम मेकेनिक्स में विशेष योगदान के लिए दिया गया। रसायन विज्ञान का नोबेल सम्मान कैरोलिन बर्टोजी, मोर्टन मेल्डल और बैरी शार्पलेस को प्रदान किया गया। बैरी और मोर्टन ने ‘क्लिक केमिस्ट्री’ की नींव रखी, जबकि कैरोलिन ने ‘बायोआर्थोगोनल केमिस्ट्री’ को नया आयाम दिया।

यह वही वर्ष है जब जीवाणु वैज्ञानिक डॉ. टेड्रोस अधानोम गेब्रेसियस को दूसरी बार विश्व स्वास्थ्य संगठन का महानिदेशक चुना गया। उन्होंने 2017 में यह पद संभाला था। इसके पहले गेब्रेसियस 2005 से 2012 तक इथोपिया के स्वास्थ्य मंत्री और 2012 से 2016 तक विदेश मंत्री रह चुके हैं।

15 मार्च को विख्यात भौतिकशास्त्री यूजिन पार्कर का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने पचास के दशक में सौर पवन के अस्तित्व का विचार रखा था। उन्हें 2003 में क्योटो और 2020 में क्रॉफोर्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3 जुलाई को फुलेरीन अणु के खोजकर्ता राबर्ट एफ. कर्ल जूनियर का 88 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। उन्हें 1996 में कार्बन के नए अपररूप फुलेरीन की खोज के लिए रसायन विज्ञान का नोबेल सम्मान मिला था।

साल के अंत में ओमिक्रॉन वायरस के नए सब वेरिएंट बीएफ.7 की चपेट में चीन और कुछ देश आ गए। दरअसल ओमिक्रॉन वायरस बहुरूपिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ छोटे-मोटे बदलावों को छोड़कर इसकी मुख्य संरचना ओमिक्रॉन वायरस जैसी ही होती है। नया वायरस इम्युनिटी को चकमा देने में माहिर है।

विज्ञान जगत के समीक्षकों और विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि अधिकांश देशों में अंतर्राष्ट्रीय मूलभूत विज्ञान वर्ष एक रस्म अदायगी की तरह संपन्न हुआ, कोई बड़ी पहल नहीं हुई। रूस और यूक्रेन युद्ध का असर वैज्ञानिक रिश्तों और वैज्ञानिक परियोजनाओं पर पड़ा। चीन सहित कई देश ‘ज़ीरो कोविड नीति’ का सख्ती से पालन कराने में विफल रहे। वातानुकूलित सभागारों में जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन और जैव विविधता सम्मेलन में अहम मुद्दों को उठाने के साथ विचारोत्तेजक चर्चाएं हुईं। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आया। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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