घुड़सवारी के प्रथम प्रमाण

नुष्य ने सबसे पहले घुड़सवारी कब की थी? इस सवाल के जवाब कई तरह से खोजने की कोशिश हुई है क्योंकि घोड़े पर सवारी करना मानव इतिहास का एक अहम पड़ाव माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि आजकल के रूस और यूक्रेन के घास के मैदानों (स्टेपीज़) से निकलकर लोग तेज़ी से युरेशिया में फैल गए थे। यह कोई 5300 वर्ष पहले की बात है। जल्दी ही इन यामानाया लोगों के जेनेटिक चिंह मध्य युरोप से लेकर कैस्पियन सागर के लोगों तक में दिखने लगे थे। आजकल के पुरावेत्ता इन लोगों को ‘पूर्वी चरवाहे’ कहते हैं।

लेकिन इनमें घुड़सवारी के कोई लक्षण नज़र नहीं आते थे। इसके अलावा, यामानाया स्थलों पर मवेशियों की हड्डियां भी मिली हैं और मज़बूत गाड़ियों के अवशेष भी। लेकिन घोड़ों की हड्डियां बहुत कम मिली हैं। इस सबके आधार पर पुरावेत्ताओं ने मान लिया था कि लोगों ने घोड़ों पर सवारी 1000 साल से पहले शुरू नहीं की होगी।

अब अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ साइन्सेज़ (AAAS) के सम्मेलन में प्रस्तुत एक अध्ययन में दावा किया गया है कि घुड़सवारी के प्रमाण प्राचीन घोड़ों की हड्डियों में नहीं, बल्कि यामानाया सवारों की हड्डियों में मिले हैं। हेलसिंकी विश्वविद्यालय के वोल्कर हेड का कहना है कि सब लोग घोड़ों को देख रहे थे और हमने मनुष्यों को देखा।

आनुवंशिक व अन्य प्रमाण बताते हैं कि घोड़ों को 3500 ईसा पूर्व में पालतू बना लिया गया था। लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों या चित्रों में घुड़सवारी के प्रमाण इसके लगभग 2000 वर्षों बाद मिलने लगते हैं। तो कई पुरावेत्ता मानने लगे थे कि पूर्वी चरवाहे घोड़ों पर सवारी करने की बजाय अपने पशुधन के साथ पैदल ही चलते रहे होंगे।

अब यामानाया फैलाव को समझने के उद्देश्य से हेलसिंकी के मानव वैज्ञानिक मार्टिन ट्रॉटमैन और उनके साथियों ने रोमानिया, हंगरी और बुल्गारिया की कब्रों से खोदे गए डेढ़ सौ से ज़्यादा मानव कंकालों का विश्लेषण किया है। यह क्षेत्र यामानाया लोगों के फैलाव की पूर्वी सीमा पर है। विश्लेषण से पता चला कि ये लोग सुपोषित, तंदुरुस्त और अच्छे कद वाले थे। उनकी हड्डियों के रासायनिक विश्लेषण से यह भी लगता है कि इनका भोजन प्रोटीन प्रचुर था। लेकिन एक दिक्कत थी – इनके कंकालों में विशिष्ट किस्म की क्षतियां और विकृतियां नज़र आईं।

कई कंकालों में रीढ़ की हड्डियां दबी हुई थीं। ऐसा तब हो सकता है जब बैठी स्थिति में व्यक्ति को दचके लग रहे हों। कंकालों की जांघ की हड्डियों में कुछ मोटे स्थान भी नज़र आए जो टांगें मोड़कर लंबे समय तक बैठक का परिणाम हो सकते हैं। और तो और, टूटी हुई कंधे की हड्डियां, पैरों की हड्डियों में फ्रेक्चर और कशेरुकों में दरारें ऐसी चोटों से मेल खाती थीं जो या तो घोड़े द्वारा मारी गई लातों से हो सकती थीं या वैसी हो सकती थीं जो आजकल घुड़सवारों को घोड़ों पर से गिरने के कारण होती हैं।

इन लक्षणों की तुलना उन्होंने बाद के समय के ऐसे कंकालों से की जिन्हें घुड़सवारी के उपकरणों और घोड़ों के साथ दफनाया गया था जो इस बात का परिस्थितिजन्य प्रमाण है कि ये पक्के तौर पर घुड़सवार रहे होंगे। और इन लक्षणों में समानता देखी गई। लेकिन अन्य पुरावेत्ता अभी अपने विचारों को लगाम दे रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि जब तक घोड़ों की हड्डियां न मिल जाएं, जिन पर सवारी के चिंह हों, तब तक निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता।

एक समस्या यह भी है कि पुरावेत्ताओं को यामानाया स्थलों से गाड़ियां, बैल और जुएं तो मिले हैं लेकिन लगाम और ज़ीन जैसे घुड़सवारी के साधन नहीं मिले हैं। तो मामला अभी खुला है कि मनुष्यों ने घुड़सवारी कब शुरू की थी। (स्रोत फीचर्स)  

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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