वायुमंडल में ज़मीनी विस्फोटों पर निगरानी

हाल ही में वैज्ञानिकों ने वायुमंडल में 100 किलोमीटर ऊपर स्थित आयनमंडल में भूमि पर होने वाले हल्के धमाके महसूस भी कर लिए हैं। इससे लगता है कि अब रिमोट सेंसिंग तकनीक की मदद से हल्की विस्फोटक (प्राकृतिक हों या मानवजनित) घटनाओं पर भी नज़र रखी जा सकेगी।

वायुमंडल का आयनमंडल औरोरा (मेरुज्योति) का गढ़ है। यह तब बनता है जब सूर्य से आने वाले आवेशित कण परमाणुओं से टकराते हैं और उन्हें आलोकित करते हैं। लेकिन भूमि पर होने वाले विस्फोट भी आयनमंडल में खलल डाल सकते हैं। 2022 में, दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित हुंगा टोंगा-हुंगा हाआपाई ज्वालामुखी विस्फोट ने आयनमंडल में हिलोरें पैदा कर दी थीं। 1979 में, आयनमंडल में पैदा हुई हलचल इस्राइली-दक्षिण अफ्रीकी परमाणु परीक्षण से जुड़ी हुई पाई गई थी।

दोनों धमाकों से इन्फ्रासाउंड तरंगें निकली थीं, जो काफी दूर तक जाती हैं और आयनमंडल में कंपन पैदा कर सकती हैं। आयनमंडल के आवेशित कणों से टकराकर वापिस लौटने वाली तरंगों की मदद से इन विस्फोटों को रिकॉर्ड किया गया था। लेकिन इस तकनीक से एक किलोटन टीएनटी से अधिक शक्तिशाली विस्फोट ही पहचाने जा सकते थे, इससे हल्के विस्फोट नहीं। (हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम 15 किलोटन का था।)

अर्थ एंड साइंस पत्रिका में प्रकाशित हालिया शोध में शोधकर्ताओं ने 1 टन टीएनटी के प्रायोगिक विस्फोटों का सफलतापूर्वक पता लगा लिया है। इसके लिए वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला के केनेथ ओबेनबर्गर और उनके साथियों ने 2022 में 1-1 टन के दो विस्फोटों के प्रभावों का निरीक्षण करने के लिए राडार डिटेक्टरों को आयनमंडल में हलचल के कारण पैदा होने वाली तरंगों को मापने के लिए डिज़ाइन किया। इस डिज़ाइन से उन्हें विस्फोट होने के 6 मिनट के भीतर विस्फोट के संकेत मिल गए थे।

उम्मीद है कि इसकी मदद से छोटे मानव जनित विस्फोटों या प्रशांत महासागर के सुदूर क्षेत्र में स्थित ज्वालामुखी विस्फोटों की निगरानी की जा सकेगी, जो अन्यथा मुश्किल होता है। इसके अलावा, इसकी मदद से भूकंपों का पता भी लगा सकते हैं जिनके कारण सुनामी, भूस्खलन और अन्य आपदाएं हो सकती हैं।

इसका एक अन्य संभावित उपयोग ग्रह विज्ञान में हो सकता है। शुक्र जैसे ग्रह, जहां घने बादलों के कारण सतह को स्पष्ट देखना मुश्किल है, की कक्षा में आयनमंडल राडार स्थापित कर विस्फोटों और भूकंपों का पता लगाया जा सकता है।

फिलहाल, ओबेनबर्गर शोध को पृथ्वी आधारित ही रखना चाहते हैं। वे विभिन्न मौसमों में इस तकनीक के परीक्षण की योजना बना रहे हैं, क्योंकि साल भर में आयनमंडल बदलता रहता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://agupubs.onlinelibrary.wiley.com/cms/asset/d9b3b06f-6606-4a26-802f-f18e735270c3/rog20181-fig-0002-m.jpg

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