आरएनए टीके के लिए चिकित्सा नोबेल पुरस्कार

स वर्ष का कार्यिकी अथवा चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार एक निहायत उपयोगी शोध कार्य के लिए दिया गया है। यह पुरस्कार जैव रसायन शास्त्री केटेलिन केरिको और प्रतिरक्षा विज्ञानी ड्रयू वाइसमैन को उन खोजों के लिए दिया जा रहा है जिनके दम पर कोविड-19 के खिलाफ आरएनए टीके का विकास संभव हुआ।

नोबेल समिति ने बताया है कि यह टीका कम से कम 13 अरब मर्तबा दिया गया और अनुमान है कि इसने लाखों लोगों की जान बचाने के अलावा कोविड-19 के करोड़ों गंभीर मामलों की रोकथाम में भूमिका निभाई थी।

केरिको ने पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में काम करते हुए मेसेंजर आरएनए नामक जेनेटिक सामग्री (एम-आरएनए) को कोशिकाओं में पहुंचाने का तरीका खोजा था जिसकी मदद से एम-आरएनए को कोशिकाओं में पहुंचाते हुए अनावश्यक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं होती।

गौरतलब है कि केरिको चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित 13वीं महिला वैज्ञानिक हैं। उनका जन्म हंगरी में हुआ था लेकिन बाद में यूएस आ गई थीं।

यह तो सर्वविदित है कि मॉडर्ना और फाइज़र-बायोएनटेक द्वारा संयुक्त रूप से विकसित कोविड-19 टीका उस एम-आरएनए को कोशिकाओं में पहुंचा देता है जो कोशिका में एक प्रोटीन का निर्माण करवाता है। यह प्रोटीन वही होता है जो सार्स-कोव-2 वायरस की सतह पर पाया जाता है, जिसे स्पाइक प्रोटीन कहते हैं। इस प्रोटीन की उपस्थिति की वजह से शरीर इसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है और इस तरह से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है।

कई दशकों से एम-आरएनए आधारित टीकों के बारे में माना जाता था कि ये व्यावहारिक नहीं होंगे क्योंकि जैसे ही एम-आरएनए का इंजेक्शन दिया जाएगा, वह शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू कर देगा जो स्वयं उस एम-आरएनए को ही नष्ट कर देगी। 2000 के दशक के मध्य में केरिको और वाइसमैन ने दर्शाया था कि एक किस्म के एम-आरएनए अणु (युरिडीन) के स्थान पर उसी तरह के एक अन्य अणु (स्यूडोयुरिडीन) का उपयोग किया जाए तो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बचा जा सकता है। अर्थात टीके में एक किस्म के अणु की जगह दूसरे किस्म के अणु का इस्तेमाल करके कोशिका की प्रतिक्रिया को बदला जा सकता है। इसकी बदौलत एम-आरएनए द्वारा बनाए जाने वाले प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। यानी टीके की प्रभाविता को बढ़ाया जा सकता है।

नोबेल समिति ने कहा है कि इस खोज ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आम धारणा के विपरीत सिर्फ उपयोगी विज्ञान ही नहीं, बुनियादी विज्ञान में निवेश भी महत्वपूर्ण है। कोविड-19 टीके की सफलता के बाद फ्लू, एचआईवी, मलेरिया और ज़िका जैसी कई बीमारियों के लिए टीके विकास के चरण में हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.lindau-nobel.org/wp-content/uploads/2023/10/kariko_weissman-3_2-992×656-1.webp

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