कैसे पनपा समलैंगिक व्यवहार

झींगुर से लेकर समुद्री अर्चिन तक और बॉटलनोज़ डॉल्फिन से लेकर बोनोबोस तक 1500 से अधिक प्रजातियों में समलैंगिक व्यवहार देखने को मिलता है।

एक मत है कि जंतुओं में यह व्यवहार उद्विकास की शुरुआत से ही दिखाई पड़ता है। लेकिन स्तनधारियों पर किए गए हालिया अध्ययन का निष्कर्ष इससे अलग है। इसके अनुसार स्तनघारी जंतुओं में समलैंगिक व्यवहार तब विकसित हुआ जब उन्होंने समूहों में रहना शुरू किया। अध्ययन के मुताबिक हालांकि इस तरह के व्यवहार से किसी जंतु के जीन्स संतानों में नहीं पहुंचते लेकिन संभवत: यह अन्य वैकासिक लाभ प्रदान करता है। जैसे समूह में संघर्षों को सुलझाने और सदस्यों के बीच सकारात्मक सम्बंध बनाने में मदद करता है।

अलबत्ता, शोधकर्ता आगाह करते हैं कि इन नतीजों को मनुष्यों में दिखने वाली लिंग पहचान की समस्या या समलैंगिक व्यवहार से जोड़कर न देखा जाए। अन्य जीवों में समलैंगिक व्यवहार मनुष्यों में दिखने वाले व्यवहार से काफी भिन्न है और इसलिए यह अध्ययन मनुष्यों के संदर्भ में कोई व्याख्या नहीं देता है।

देखा जाए तो समलैंगिक व्यवहार को समझने का यह पहला अध्ययन नहीं है। पूर्व में भी इस पर अध्ययन हुए हैं लेकिन वे सारे अध्ययन एक ही प्रजाति या जीवों के एक छोटे समूह के अवलोकन पर आधारित थे।

स्पेन के वैकासिक जीवविज्ञानी जोस गोमेज़ का यह अध्ययन इस दृष्टि से व्यापक है कि उन्होंने स्तनधारियों की 6649 प्रजातियों में इस व्यवहार की तलाश की। इसके लिए उन्होंने वैज्ञानिक साहित्य खंगाला और देखा कि इनमें से कौन-सी और कितनी प्रजातियां समलैंगिक व्यवहार – रिझाना, मिलना-जुलना, प्रेमालाप करना, संभोग और दृढ़ रिश्ते बनाना  – दर्शाती देखी गई हैं। उन्हें 261 प्रजातियों में समलैंगिक व्यवहार के प्रमाण मिले।

उन्हें यह भी दिखा कि नर और मादा दोनों ही बराबर समलैंगिक व्यवहार करते हैं। कुछ प्रजातियों में, या तो सिर्फ नर या तो सिर्फ मादा में समलैंगिक व्यवहार दिखा।

तो इन जंतुओं में समलैंगिक व्यवहार उपजा कैसे? इसके जवाब की तलाश के लिए शोधकर्ताओं ने इन प्रजातियों का वंशवृक्ष बनाया। इसमें उन्होंने पाया कि प्रत्येक प्रजाति में यह व्यवहार स्वतंत्र रूप से उपजा है, और अलग-अलग समय पर कई-कई बार उपजा है।

नेचर कम्युनिकेशंस में शोधकर्ता बताते हैं कि जीवित स्तनधारियों के शुरुआती पूर्वजों, जैसे प्राइमेट या बिल्लियों, में समलैंगिक व्यवहार नहीं दिखता है। लेकिन जैसे-जैसे नए वंशज विकसित हुए, उनमें से कुछ में यह व्यवहार दिखने लगा। जैसे, वानर में लीमर्स की तुलना में समलैंगिक व्यवहार अधिक तेज़ी से विकसित हुआ। वानर लगभग 2.5 करोड़ वर्ष पहले अन्य प्राइमेट्स से अलग हो गए थे।

इसके बाद उन्होंने समलैंगिक व्यवहार दर्शाने वाली प्रजातियों में समानताओं पर ध्यान दिया – पाया गया कि ये सभी प्रजातियां समूह में रहती हैं। अत: ये नतीजे इस परिकल्पना का समर्थन करते हैं कि समलैंगिक व्यवहार का मूल समूह में रहना है, जैसा कि अन्य अध्ययनों का भी निष्कर्ष था।

समूह में रहने पर सदस्यों के बीच हिंसा या संघर्ष हो सकता है, जिसके चलते समूह टूट सकता है। ऐसा होने पर समूह में रहने से मिलने वाले फायदे मिलना बंद हो जाएंगे। समलैंगिक व्यवहार एक तरीका हो सकता है जिससे सदस्यों के बीच पनपे इस संघर्ष को दूर किया जा सकता है, और समूह को जोड़े रखा जा सकता है। यह कुछ-कुछ रूठने-मनाने जैसा लगता है।

लेकिन मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के वैकासिक जीवविज्ञानी डाइटर लुकास को इस निष्कर्ष पर संदेह है। वे कहते हैं कि समलैंगिक व्यवहार की यही एकमात्र व्याख्या नहीं हो सकती। उनको लगता है कि प्राकृतिक परिस्थितियों में इस व्यवहार के अवलोकन में शायद कुछ प्रजातियों का व्यवहार नज़रअंदाज़ हुआ हो। जैसे, हो सकता है कि कुछ निशाचर जंतु उपेक्षित रह गए हों।

दिलचस्प बात है कि एक अन्य अध्ययन में झींगुर में भी समलैंगिक व्यवहार दिखा है। नर झींगुर कभी-कभी प्रेम-गीत गाते हैं जिससे वे अन्य नर और किशोरों के साथ सम्बंध बनाने की कोशिश करते दिखे हैं। लेकिन झींगुर तो समूहों में नहीं रहते। इसलिए यदि समूह में रहना समलैंगिक व्यवहार की एकमात्र व्याख्या दी जाए, तो फिर झींगुर के व्यवहार को कैसे समझेंगे? संभव है कि झींगुर समेत कुछ अन्य प्रजातियां संभोग के अधिक से अधिक अवसरों का लाभ उठाने की रणनीति के हिस्से के रूप में समलैंगिक व्यवहार करती हों। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.popsci.com/uploads/2023/10/04/mammals-same-sex-sexual-behavior.png?auto=webp

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