छोटी झपकियों के बड़े फायदे

म तौर पर झपकी को विलासिता या आलस्य का पर्याय माना जाता है। लेकिन निद्रा से सम्बंधित एक हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दिन में झपकी के लाभों और इसकी आदर्श अवधि के बारे में कुछ दिलचस्प पहलू उजागर किए हैं।

इसमें 20-30 मिनट की छोटी झपकियों को संज्ञानात्मक विकास के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। ये छोटी झपकियां मूड सुधारती हैं, याददाश्त मज़बूत करती हैं, सूचना प्रोसेसिंग तेज़ करती हैं और चौकन्नापन बढ़ाती हैं। इनसे अप्रत्याशित घटनाओं की स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया की क्षमता भी बढ़ती है। दिलचस्प बात यह है कि 10 मिनट की गहरी झपकी भी, क्षण भर के लिए ही सही, दिमाग को तरोताज़ा कर सकती है, जबकि थोड़ी लंबी झपकी इन संज्ञानात्मक लाभों को कुछ देर तक बनाए रखती है।

गौरतलब है कि झपकी की इच्छा दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित होती है: एक समस्थापन निद्रा दबाव (एचएसपी) और दैनिक शारीरिक लय। दबाव तब पैदा होता है जब हम अधिक देर तक जागते हैं। ऐसे में हमारे शरीर की प्राकृतिक लय अक्सर दोपहर के दौरान सतर्कता में कमी लाती है। नतीजतन कुछ लोगों को थोड़ी राहत के लिए झपकी लेना पड़ता है। इस मामले में जेनेटिक कारक लोगों की झपकी लेने की प्रवृत्ति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ लोग आदतन झपकी लेते हैं और अन्य तब जब वे गंभीर रूप से नींद से वंचित हो जाते हैं।

3000 लोगों पर किए गए अध्ययन का निष्कर्ष है कि दिन के समय 30 मिनट से अधिक सोने में सावधानी बरतनी चाहिए। यह तो स्पष्ट है कि झपकी संज्ञानात्मक लाभ प्रदान करती है लेकिन यह गहन निद्रा के चरणों की शुरुआत भी करती है जिससे आलस आता है। इसके अलावा, लंबी झपकी को स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतों से भी जोड़ा गया है, जिनमें मोटापा, उच्च रक्तचाप और वसा कम करने की बाधित क्षमता शामिल हैं। कई मामलों में इसे अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों से भी जोड़कर देखा गया है।

इस स्थिति में झपकी के पैटर्न की पहचान करना महत्वपूर्ण हो जाता है। बार-बार और लंबे समय तक (एक घंटे से अधिक) झपकी लेना कई स्वास्थ्य समस्याओं या मस्तिष्क की सूजन में वृद्धि का संकेत हो सकता है। इसके लिए चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए। वैसे संक्षिप्त निद्रा रात की नींद को नुकसान पहुंचाए बिना आवश्यक स्फूर्ति प्रदान कर सकती है। छोटी झपकी लेना सतर्कता, एकाग्रता बढ़ाकर खुश रहने की कुंजी हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://static.scientificamerican.com/sciam/cache/file/579C540C-3B73-46C5-9CBE94EF48158E82_source.jpg?w=1200

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