दुबई जलवायु सम्मेलन की कुछ झलकियां

विश्व के प्रमुख तेल उत्पादक देश संयुक्त अरब अमीरात में इन दिनों वार्षिक जलवायु सम्मेलन चल रहा है जिसमें लगभग 200 देशों से आए एक लाख से अधिक लोग शिरकत कर रहे हैं। यहां जीवाश्म ईंधन का भविष्य और आपदाओं को रोकने व निपटने के लिए पर्याप्त धन प्रमुख मुद्दे हो सकते हैं। कूटनीतिज्ञों के अलावा, इस सम्मेलन में कई इलाकों के शासक, मुख्य जलवायु अधिकारी, फाइनेंसर और कार्यकर्ता भी शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तन को कम करने और ग्रह के भविष्य की सुरक्षा के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। तो क्या इस सम्मेलन में होने वाली चर्चाओं से हम ग्रह को बचाने की कोई उम्मीद कर सकते हैं?

प्रमुख मुद्दे

यह सम्मेलन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को रोकने पर केंद्रित है। हालांकि, कुछ सकारात्मक परिवर्तन के बावजूद, वैश्विक तापमान औद्योगिक-पूर्व स्तर से लगभग 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की ओर अग्रसर लगता है, जो 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्य का दुगना है। चीन और अमेरिका जैसे प्रमुख जीवाश्म ईंधन उपयोगकर्ताओं सहित कई देश, नवीकरणीय ऊर्जा और दक्षता में वृद्धि का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी ओर, कोयला, तेल और गैस उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने या कम करने के मामले में युरोपीय संघ और संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रमुख प्रदूषकों के बीच असहमति बनी हुई है। हालांकि, जीवाश्म ईंधन के निरंतर उपयोग ने जलवायु सम्बंधी आपदाओं को बढ़ा दिया है, फिर भी अधिकांश बातचीत सभी देशों को भविष्य की आपदाओं के प्रति सहनशील बनाने पर केंद्रित है। पिछले सम्मेलन में जलवायु प्रभावित देशों के लिए एक वित्तीय कोश की स्थापना की गई थी और विभिन्न राष्ट्रों ने इसमें योगदान के वायदे किए हैं।

वर्तमान सम्मेलन में सुल्तान अल-जबर का प्रस्ताव काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसमें तेल और गैस कंपनियों से प्रमुख ग्रीनहाउस गैस मीथेन को लगभग खत्म करने का आग्रह किया गया है। हालांकि इस कदम के सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, लेकिन यह उद्योगों में तेल और गैस दहन से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का जवाब नहीं है।

शब्दों का खेल

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन शब्दजाल से भरे होते हैं, जिनमें ‘अभिलाषा’ और ‘लैंडिंग ज़ोन’ जैसे शब्द होते हैं जिनके बड़े निहितार्थ हो सकते हैं। यहां कुछ ऐसे ही शब्दों की चर्चा की गई है:

अभिलाषा (ambition): इन सम्मेलनों में अक्सर उपयोग किया जाने वाला यह शब्द ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जनों को कम करने के लिए देशों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में वृद्धि की सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस तक निर्धारित की गई थी और सभी देशों को इस लक्ष्य के अनुरूप उपायों पर ज़ोर देना है।

पेरिस लक्ष्य (Paris goals): 2015 में सम्पन्न पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि पर अंकुश लगाना है जिसमें 2025 से पहले सर्वोच्च उत्सर्जन के बाद 2030 तक उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी और 2050 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। वर्तमान स्थिति में यह लक्ष्य हासिल करना काफी मुश्किल प्रतीत हो रहा है।

अनुकूलन (adaptation): इसके कई मतलब हो सकते हैं: बाढ़ से सुरक्षा, सूखा-सह फसलें, या उच्च तापमान का मुकाबला करने वाले भवनों का निर्माण। इन सबके लिए धन की आवश्यकता है। इनकी सबसे अधिक ज़रूरत उन गरीब देशों को है जिन पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।

हानि और क्षति (Loss and Damage): इसका तात्पर्य जलवायु परिवर्तन के कारण कमज़ोर देशों को हुई ऐसी क्षति से है जिनके प्रति अनुकूलन नहीं किया जा सकता। इनमें से कई देशों का मानना है कि इस समस्या के सबसे अधिक ज़िम्मेदार औद्योगिक राष्ट्रों को गरीब देशों को उबरने में मदद करने के लिए धन उपलब्ध करना चाहिए। लेकिन अमेरिका सहित कई धनी देशों ने इसका लगातार विरोध किया है कि वे कानूनी रूप से इसके उत्तरदायी हैं।

हटाना बनाम घटाना (phase-out या phase-down): वर्ष 2021 के ग्लासगो सम्मलेन में कोयले और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी या समाप्ति ने एक नई बहस बहस को शुरू किया था। भारत और चीन के आग्रह पर जीवाश्म ईंधन को ‘चरणबद्ध तरीके से हटाने’ (phase-out) के स्थान पर ‘चरणबद्ध तरीके से कम करने’ (phase-down) का उपयोग किया गया था अर्थात कोयले का उपयोग कम करना, न कि खत्म करना। इस बार भी जीवाश्म ईंधन को लेकर इसी तरह की बहस की उम्मीद है।

कार्बन हटाना (carbon removal): यह प्राकृतिक या तकनीकी उपायों से वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड को हटाने की बात है। प्राकृतिक रूप से वनों की बहाली या उनकी रक्षा करके ऐसा किया जा सकता है। इसी काम के लिए कुछ तकनीकें भी विकसित की गई हैं लेकिन अभी तक बड़े पैमाने पर लागू नहीं किया गया है। फिर भी हरित ऊर्जा समाधानों के पूरक के रूप में कार्बन को हटाना एक संभावित उपाय के रूप में देखा जा रहा है।

बेलगाम (Unabated) उत्सर्जन: इसका मतलब यह है कि जिन परियोजनाओं में कार्बन कैप्चर या प्रदूषण कम करने की तकनीक न हो वहां जीवाश्म ईंधन के उपयोग को बंद करना। जलवायु कार्यकर्ताओं का विचार है कि इस विचार के आधार पर संयुक्त अरब अमीरात जैसे जीवाश्म ईंधन उत्पादक देश अपना उत्पादन जारी रखेंगे।

राष्ट्रों द्वारा निर्धारित योगदान (nationally determined contributions): इसका अर्थ ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के प्रयासों में हर दशक में देशों द्वारा घोषित संकल्प जो बाध्यकारी न हों। हर 10 वर्ष में इनकी समीक्षा की जाएगी।

वैश्विक लेखाजोखा (Global stock take): यह जलवायु प्रतिबद्धताओं की प्रगति का आकलन करने के लिए पेरिस समझौते में निर्धारित एक मूल्यांकन व्यवस्था है। इस वर्ष आई पहली रिपोर्ट का निष्कर्ष था – हम मंज़िल से बहुत दूर हैं।

तनाव की स्थितियां

काफी समय से अमेरिका और चीन में चल रहे मतभेदों के बावजूद जलवायु मामलों में सहयोग के संकेत मिले हैं। यह संवाद मीथेन पर सौदेबाज़ी जैसी चर्चाओं में सहायक हो सकता है। लेकिन चीन से कोयले में कटौती की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वह उसकी आर्थिक स्थिरता और उर्जा सुरक्षा का आधार है। सम्मेलन में व्यापार और औद्योगिक नीति से जुड़े तनाव उभर सकते हैं।

वैसे, सम्मेलन की शुरुआत में एक सकारात्मक निर्णय सामने आया है। जलवायु सम्बंधी आपदाओं से तबाह देशों के लिए एक फंड अपनाया गया जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। फिलहाल, एक अधिक चुनौतीपूर्ण उद्देश्य राष्ट्रों को जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए राज़ी करना है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.thethirdpole.net/content/uploads/2023/11/20231031_Pre-COP-Plenary-in-Abu-Dhabi_Flickr_2853304989445_4611af21e4_o-scaled.jpg

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