जब हंसी मज़ाकिया न हो

ई के पहले रविवार को विश्व ठहाका दिवस होगा। इस अवसर पर अखबारों से लेकर व्हाट्सएप संदेश व अन्य (सोशल) मीडिया प्लेटफॉर्म हंसने के फायदे के बारे बताएंगे। बताया जाएगा कि हंसना हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, यह हमारी धमनियों को तंदुरुस्त रखता है, आईवीएफ की सफलता दर को बढ़ाता है, तनाव से राहत देता है, यहां तक कि कैंसर को ठीक भी कर देता है।

लेकिन हंसना एक बीमारी भी हो सकती है जो बे-वक्त, बे-मौके पर फूटकर व्यक्ति को शर्मिंदा कर सकती है/परेशानी में डाल सकती है। अधिक हंसी जीर्ण सिरदर्द का कारण भी बन सकती है। यहां तक कि हंसी के बेकाबू दौरे पड़ सकते हैं।

हंसने के कारण उपजी ऐसी ही एक स्थिति है ‘परिस्थितिजन्य सिरदर्द’। एक 52 वर्षीय महिला परिस्थितिजन्य सिरदर्द यानी अत्यधिक हंसने के कारण उपजे सिरदर्द से 32 वर्षों से पीड़ित थी। मस्तिष्क का स्कैन करने पर पता चला कि उसके मस्तिष्क में तीन जगहों पर मस्तिष्क-मेरु द्रव के थक्के जमा हैं। जब वह हंसती थी तो हंसी के कारण द्रव के दबाव में होने वाले परिवर्तन के कारण सिरदर्द होने लगता था। हालांकि खांसने-छींकने पर भी उसे सिरदर्द होने लगता था। लेकिन हंसी भी सिरदर्द का कारण तो बनती थी।

इससे अलग, द्विध्रुवी विकार (बायपोलर डिसऑर्डर) से पीड़ित एक व्यक्ति को हंस-हंसकर लोट-पोट हो जाने के कारण मिर्गी के दौरे पड़ते थे। टीवी पर कॉमेडी शो देखते हुए जब भी वह कोई चुटकुला सुनता, हंसी आती और हंसते-हंसते जब वह लोट-पोट होने लगता तो उसके हाथ कांपने लगते और उसे ऐसा लगता जैसे उसकी चेतना शून्य हो रही है। एक दिन में पड़ने वाले मिर्गी के दौरों की संख्या और कॉमेडी शो की लंबाई और शो कितना हंसोड़ था के बीच सम्बंध था; औसतन  दिन में पांच बार। पहले तो डॉक्टरों को लगा कि दौरे उसके द्विध्रुवी विकार के कारण पड़ते हैं। लेकिन जब उन्होंने ईईजी के माध्यम से दो दिनों तक उसकी मस्तिष्क तरंगों को नापा तो पता चला कि मिर्गी के दौरों का सम्बंध उसकी लोट-पोट होकर हंसने वाली हंसी से था।

हंसी मस्तिष्क के दो अलग-अलग क्षेत्रों में हलचल से आती है: टेम्पोरल लोब, जो भावनात्मक पहलुओं को संभालता है; और फ्रंटल कॉर्टेक्स, जो क्रियाकारी हिस्से (चलना, दौड़ना, कूदना, फेंकना, झेलना, पकड़ना वगैरह) को संभालता है। शोधकर्ताओं का अनुमान था कि हंसने के कारण क्रियाकारी क्षेत्र में हलचल होने से मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। उपचार लेने से समस्या ठीक तो हो गई लेकिन यदि, खुदा न ख्वास्ता, उनका अनुमान ठीक न निकलता तो शायद उसे टीवी देखना बंद करना पड़ता।

हंसी के कारण एक और जो समस्याप्रद स्थिति बनती है वह है पैथालॉजिकल लाफ्टर। पैथालॉजिकल लाफ्टर से पीड़ित शख्स को अचानक ही वक्त-बेवक्त, मौके-बेमौके ही हंसी आ जाती है। ऐसे ही एक मामले में एक शख्स को अपने परिवार के साथ शराड का खेलते हुए हंसी का दौरा पड़ा। आगे चलकर किसी के अंतिम संस्कार में, यहां तक कि अपनी बीमार मां से मिलते वक्त भी हंसी का दौरा पड़ गया। इसके चलते उसे काफी शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने लोगों से मेल-जोल ही छोड़ दिया। मस्तिष्क की इमेजिंग करने पर पाया गया कि मस्तिष्क कोशिकाओं को जोड़ने वाले सफेद पदार्थ में घाव थे। साथ ही, मध्य मस्तिष्क और टेम्पोरल लोब में भी घाव थे। पैथोलॉजिकल लॉफ्टर का कारण तो पता नहीं चल पाया है लेकिन ऐसे मौकों पर एकदम तुरंत हंसी आने के बजाय थोड़ी देर बाद हंसी (विलंबित हंसी) आने के आधार पर लगता है कि इसका कारण सिर्फ घाव नहीं हैं। विलंबित हंसी आने से लगता है कि स्वायत्त क्रियाकारी केंद्र बनने में समय लगता है। जिससे लगता है कि नई तंत्रिका गतिविधि या नए हंसी नियंत्रण केंद्र बन रहे हैं।

ये ऐसे कुछ मामले थे जो हंसी से सम्बंधित समस्याओं को दर्शाते थे। लेकिन इन्हें पढ़कर हंसना मत छोड़िए। बस, जब लगे कि आपका हंसना आपके लिए कोई गंभीर समस्या पैदा कर रहा है तो डॉक्टर से मिलिए। वरना हंसिये-हंसाइए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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