पेड़ बड़े मगर कमज़ोर हो रहे हैं

रती का औसत तापमान बढ़ने के साथ दुनिया भर में पेड़ों को वृद्धि के लिए ज़्यादा लंबी अवधि मिलने लगी है। कहीं-कहीं तो प्रति वर्ष पेड़ों को तीन सप्ताह ज़्यादा समय मिलता है वृद्धि के लिए। यह अतिरिक्त समय पेड़ों को बढ़ने में मदद करता है। किंतु मध्य यूरोप में किए गए जंगलों के एक अध्ययन में पता चला है कि इन पेड़ों की लकड़ी कमज़ोर हो रही है जिसके चलते पेड़ आसानी से टूट जाते हैं और उनसे मिली इमारती लकड़ी उतनी टिकाऊ नहीं होती।

सन 1870 से उपलब्ध रिकॉर्ड बताते हैं कि तब से लेकर आज तक मध्य युरोप में बीचवृक्ष और स्प्रूस वृक्षों की वृद्धि में 77 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मतलब आम तौर पर यह लगाया जाता है कि हमें निर्माण कार्य के लिए ज़्यादा लकड़ी मिलेगी और इतनी अतिरिक्त लकड़ी के निर्माण के लिए इन वृक्षों ने वायुमंडल से अधिक कार्बन डाईऑक्साइड सोखी होगी, जिसका पर्यावरण पर सकारात्मक असर होगा।

किंतु जर्मनी के म्यूनिख विश्वविद्यालय के टेक्निकल इंस्टिट्यूट के वन वैज्ञानिक हैन्स प्रेट्ज़ और उनके साथियों को कुछ शंका थी। पूरे मामले को समझने के लिए उन्होंने वास्तविक आंकड़े जुटाकर विश्लेषण किया। इसके लिए उन्होंने दक्षिण जर्मनी के 41 प्रायोगिक प्लॉट्स से शुरुआत की। इन प्लॉट्स के बारे में विविध आकड़े 1870 से उपलब्ध हैं। उन्होंने यहां से वृक्षों के तनों के नमूने लिए। इनमें चार प्रजातियों के वृक्ष शामिल थे। उन्होंने इन वृक्षों के वार्षिक वलयों का भी विश्लेषण किया।

अध्ययन में पाया गया कि चारों प्रजातियों में लकड़ी का घनत्व 8 से 12 प्रतिशत तक घटा है। और घनत्व कम होने के साथ-साथ लकड़ी का कार्बन प्रतिशत भी घटा है। फॉरेस्ट इकॉलॉजी एंड मेनेजमेंट में प्रकाशित इस अध्ययन के बारे में टीम का कहना है कि उन्हें घनत्व में गिरावट की आशंका तो थी किंतु उन्होंने सोचा नहीं था कि यह गिरावट इतनी अधिक हुई होगी। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि तापमान बढ़ने के साथ तेज़ी से हो रही वृद्धि इसमें से कुछ गिरावट की तो व्याख्या करती है किंतु संभवत: इस गिरावट में मिट्टी में उपस्थित बढ़ी हुई नाइट्रोजन की भी भूमिका है। प्रेट्ज़ का मत है कि यह नाइट्रोजन खेतों में डाले जा रहे रासायनिक उर्वरकों और वाहनों के कारण हो रहे प्रदूषण की वजह से बढ़ रही है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit: http://www.sciencemag.org/sites/default/files/styles/inline__450w__no_aspect/public/trees_16x9_0.jpg?itok=RV0CIV6c

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