गोरैया और मनुष्य का साथ कैसे हुआ

हां-जहां मुनष्य रहते हैं, गोरैया भी रहती है। वैसे जीव वैज्ञानिकों का कहना है कि गोरैया एक पालतू जीव नहीं है किंतु मनुष्य के निकट रहती है। और वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास करते रहे हैं कि गोरैया और मनुष्य के इस साथ का राज़ क्या है।

आम तौर पर देखी जानी वाली घरेलू गोरैया (Passer domesticus) अंटार्कटिका महाद्वीप के अलावा पृथ्वी के हर हिस्से में पाई जाती है। नन्ही सी यह चिडि़या आम तौर पर घरों के आसपास, गलियों में फुदकती और मनुष्यों द्वारा छोड़े/फेंके गए भोजन को चुगते हुए दिख जाएगी। इसका हमारा साथ इतना पुराना है कि प्राचीन साहित्य में भी यह नज़र आती है।

ओस्लो वि·ाविद्यालय के मार्क रैविनेट और उनके साथियों ने गोरैया के इस व्यवहार की छानबीन जेनेटिक दृष्टि से की है और कुछ आश्चर्यजनक परिणाम प्रकाशित किए हैं। अपने अध्ययन के लिए उन्होंने युरोप और मध्य-पूर्व में पाई जाने वाली विभिन्न गोरैया प्रजातियों को पकड़ा। इनमें 46 घरेलू गोरैया, 43 स्पैनिश गोरैया, 31 इटालियन गोरैया और 19 बैक्ट्रिएनस गोरैया थीं। इन सभी के रक्त के नमूने लिए गए।

रक्त के नमूनों से डीएनए प्राप्त किया गया और फिर प्रत्येक के डीएनए में क्षारों का अनुक्रम पता लगाया गया। जब उन्होंने घरेलू गोरैया और बैक्ट्रिएनस गोरैया के डीएनए अनुक्रमों की तुलना की तो पता चला कि उनके दो जीन्स में प्रमुख रूप से अंतर होते हैं।

एक जीन तो वह था जो घरेलू गोरैया को मंड को पचाने की क्षमता प्रदान करता है। यह जीन एक एंज़ाइम एमायलेज़ का निर्माण करवाता है। यह एंज़ाइम मनुष्यों के अलावा उसके पालतू जानवर कुत्ते में भी पाया जाता है। इस जीन व उसके द्वारा बनाए गए एंज़ाइम की बदौलत घरेलू गोरैया अनाज के दानों को खाकर पचा सकती है।

दूसरा परिवर्तन ऐसे जीन में देखा गया जो खोपड़ी का आकार निर्धारित करता है। इस परिवर्तन की वजह से घरेलू गोरैया अनाज के सख्त दानों को फोड़ सकती है। अपने अध्ययन के परिणाम प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसायटी-बी में प्रकाशित करते हुए शोधकर्ताओं ने कहा है कि वे इन जीन्स और गोरैया के व्यवहार में परिवर्तन की जांच और बारीकी से करना चाहते हैं।

जेनेटिक विश्लेषण से एक बात और सामने आई है कि घरेलू गोरैया और बैक्ट्रिएनस गोरैया एक-दूसरे से करीब 11,000 साल पहले अलग हुई थीं। यह नव-पाषाण युग का प्रारंभिक काल था और लगभग इसी समय मध्य-पूर्व में खेती की शुरुआत हुई थी। अर्थात विकास की दृष्टि से एक नया पर्यावरणीय परिवेश उभर रहा था। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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