कार्बन डाईऑक्साइड से र्इंधन बनाने की जुगत – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

पिछले कुछ दशकों में कच्चे तेल और कोयले जैसे जीवाश्म र्इंधनों के अत्यधिक उपयोग के चलते वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर बहुत बढ़ गया है। जिसके परिणाम स्वरूप ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं।

इस स्थिति में, क्यों न वातावरण में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड को एकत्रित कर ऐसा स्थिर रूप दे दिया जाए कि वह हवा में घुलमिल न सके? जैसे उसे ठोस कार्बोनेट में परिवर्तित कर दिया जाए? स्विटज़रलैंड स्थित एक कम्पनी, क्लाइमवक्र्स, यही काम कर रही है। वह र्इंधनों के जलने के परिणामस्वरूप बनी गैस को जैवमंडल से लेती है और इसे चट्टानों या खनिज जैसे मृदामंडलीय पदार्थों में परिवर्तित करती है। इस तरह वातावरण की हवा से सीधे गैस को कैद करने की प्रक्रिया को डाइरेक्टएयरकैप्चर (डीएसी) कहते हैं। क्लाइमवक्र्स कम्पनी का यह संयंत्र आइसलैंड में स्थित है। इस संयंत्र में कार्बन डाईऑक्साइड को ठोस कैल्सियम कार्बोनेट की चट्टानों में स्थिर कर दिया जाता है, ठीक बैसाल्ट की तरह। वे कार्बन डाईऑक्साइड को सॉफ्ट ड्रिंक्स निर्माताओं और ग्रीनहाउस संचालकों को बेचते भी हैं।

इससे भी बेहतर होगा यदि कार्बन डाईऑक्साइड को एक उल्टी प्रक्रिया के ज़रिए पुन: हाइड्रोकार्बन र्इंधन में परिवर्तित कर दिया जाए। यह प्रक्रिया एयरटूफ्यूल (एटूएफ, हवा से र्इंधन) कहलाती है। हारवर्ड के डॉ. डेविड कीथ और उनके समूह ने कार्बन इंजीनियरिंग नामक कम्पनी बनाई है जहां वे सीधे हवा से कार्बन डाईऑक्साइड लेकर उसे र्इंधन में परिवर्तित करेंगे (यानि डीएसी को एटूएफ में तबदील कर देंगे)। उन्होंने अपना शोध कार्य जूल नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड कैद करने की प्रक्रिया। यहां यह बताया जा सकता है कि इस पत्रिका का नाम इस शोध के प्रकाशन के लिए उपयुक्त है क्योंकि उर्जा की मानक इकाई भी जूल है। (इस पर्चे को यहां देखा जा सकता है: DOI: 10.1016/j.joule.2018.05.006)

टीम इस समस्या पर पिछले कुछ सालों से काम कर रही है। इस प्रक्रिया में अवांछित पदार्थ कार्बन डाईऑक्साइड को वातावरण से एकत्रित करके एक रिएक्टर से गुज़ारते हैं। फिर इसकी क्रिया हाइड्रोजन से करवाई जाती है, जिसमें हाइड्रोकार्बन र्इंधन बनता है। क्रिया के लिए ज़रूरी हाइड्रोजन पानी के विद्युतविच्छेदन से प्राप्त की जाती है। शोधकर्ताओं ने इस पूरी प्रक्रिया को कार्बनउदासीनर्इंधनउत्पादन का नाम दिया है।

वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड कैप्चर करने का विचार नया नहीं है। लेखकों के अनुसार 1950 के दशक में वायु को शुद्ध करने के लिए इस तकनीक के इस्तेमाल की कोशिश हुई थी। और 1960 के दशक में, मोबाइल परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में हाइड्रोकार्बन र्इंधन के उत्पादन के लिए कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग फीडस्टॉक के रूप में करने का प्रयास किया गया था।

कार्बन इंजीनियरिंग कम्पनी का योगदान यह है कि उन्होंने इसकी तकनीकी बारीकियों, अभियांत्रिकी और लागतलाभ विश्लेषण का वर्णन किया है। उनका दावा है कि डीएसी के माध्यम से कार्बन डाईऑक्साइड कैप्चर करना व्यावहारिक रूप से संभव है। इस प्रक्रिया से प्रति टन कार्बन डाईऑक्साइड एकत्रित करने का खर्चा 50-100 डॉलर आता है।

ट्रेसी स्टेटर ने जून 2018 के अपने इनसाइंस कॉलम में इस प्रक्रिया का सारांश प्रस्तुत किया है: वातावरण से हवा खींची जाती है, जिसे प्लास्टिक की पतली सतह के ऊपर से गुज़ारा जाता है। प्लास्टिक की सतह पर पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड का घोल होता है। इस प्रक्रिया में पोटेशियम कार्बोनेट बनता है। इस प्रक्रिया में बने पोटेशियम कार्बोनेट को कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड युक्त रिएक्टर में भेजा जाता है जहां कैल्शियम कार्बोनेट और पोटेशियम हाइड्राक्साइड बनते हैं। इस पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड को पुन: उपयोग के लिए भेज दिया जाता है और कैल्शियम कार्बोनेट को गर्म किया जाता है जिसमें कार्बन डाईऑक्साइड मुक्त हो जाती है। इसे स्थिर करके उपयोग किया जा सकता है (जैसा कि क्लाइमवक्र्स कम्पनी करती है) या पानी के विद्युतविच्छेदन से बनी हाइड्रोजन के साथ क्रिया करवाकर हाइड्रोकार्बन र्इंधन प्राप्त किया जा सकता है। इस तकनीक से वाहनों के लिए र्इंधन बनाना संभव होना चाहिए।

डॉ. डेविड रॉबर्ट्स ने अपनी वेबसाइट vox.com पर एटूएफ तकनीक के विश्लेषण में दावा किया है कि आने वाले सालों में कार्बन इंजीनियरिंग की यह तकनीक व्यावहारिक हो जाएगी। डॉ. जेफ टॉलेफसन नेचर पत्रिका के 7 जून 2018 के अंक में लिखते हैं कि डीएसी तकनीक वैज्ञानिकों के अनुमान से भी सस्ती है। ऐसा माना जाता था कि इसमें प्रति टन कार्बन डाईऑक्साइड कैप्चर की लागत 50-1000 डॉलर के बीच होगी, लेकिन यह 94-234 डॉलर के बीच है। दस लाख टन कार्बन डाईऑक्साइड को 3 करोड़ गैलन जेट र्इंधन, डीज़ल या गैस में परिवर्तित किया जा सकता है।

पूरी प्रक्रिया में खास बात यह है कि यह ना सिर्फ कार्बनउदासीन है बल्कि अकार्बनिकरसायनउदासीन भी है: पहले चरण में भेजी गई कार्बन डाईऑक्साइड तीसरे चरण में मुक्त होती है, जिसे अन्य रिएक्टर में भेजा जाता है जहां यह हाइड्रोजन के साथ क्रिया करके र्इंधन बनाती है। दूसरे चरण में प्राप्त उत्पाद (पानी) को चौथे चरण में अभिकर्मक के रूप में उपयोग किया जाता है। और चौथे चरण में प्राप्त उत्पाद कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड को दूसरे चरण में अभिकर्मक के रूप में उपयोग कर लिया जाता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://news.nationalgeographic.com/2018/06/carbon-engineering-liquid-fuel-carbon-capture-neutral-science/#/01_co2_liquid.jpg

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