पेंगुइंस की घटती आबादी – डॉ. विपुल कीर्ति शर्मा

पृथ्वी के दक्षिणी हिस्से में बर्फ से आच्छादित भाग में बहुत कम प्राणी जीवित रह पाते हैं। किंतु दो पैरों पर डोलते हुए चलने वाले, बर्फीले वातावरण के अनुकूल व उड़ने में असमर्थ पक्षी पेंगुइन के लिए यह स्वर्ग है। पेंगुइन का नाम सुनते ही हम कालेसफेद रंग के शरीर वाले छोटे आकार के जंतु की कल्पना करने लगते हैं। वास्तव में ये पक्षी अनेक आकार और रंग वाले भी होते हैं। कलगीदार (क्रेस्टेड) पेंगुइन को ही लीजिए जिनके सर पर नीले रंग के पंख मुकुट जैसे दिखते हैं। एंपरर और किंग पेंगुइन के चेहरे की पार्श्व सतह पर नारंगी और पीले रंग की आभा, काले चेहरे तथा सफेद छाती इन्हें बेहद सुंदर बना देती है। फिओर्डलैंड, स्नेयर, रॉयल तथा रॉकहॉपर पेंगुइंस की सफेद और पीले रंग के लंबे रेशों वाली भौहें इन्हें बाकी पेंगुइंस से अधिक आकर्षक बना देती है। येलो आइड पेंगुइन की आंखें पीले रंग से घिरी रहती है। कुल मिलाकर पेंगुइन की 17 प्रजातियां हैं।

सबसे छोटे आकार की पेंगुइन प्रजाति लिटिल ब्लू लगभग 12 इंच की होती है तथा सबसे लंबी प्रजाति एंपरर पेंगुइन 44 इंच लंबी होती है।

कहां रहते हैं पेंगुइंस?

पेंगुइंस उड़ तो नहीं सकते परंतु चप्पू जैसे रूपांतारित हाथ इन्हें बेहद माहिर तैराक बनाते हैं। ये अपने जीवन का 80 प्रतिशत समय समुद्र में तैरते हुए ही बिताते हैं। सभी पेंगुइन दक्षिणी गोलार्ध में रहते हैं हालांकि यह एक आम मिथक है कि वे सभी अंटार्कटिका में ही रहते हैं। वास्तव में दक्षिणी गोलार्ध में हर महाद्वीप पर पेंगुइन पाए जा सकते है। यह भी एक मिथक है कि पेंगुइन केवल ठंडे इलाकों में पाए जाते हैं। गैलापगोस द्वीपसमूह में पाए जाने वाले पेंगुइन भूमध्य रेखा के उष्णकटिबंधीय समुद्री किनारों पर रहते हैं।

क्या खाते हैं पेंगुइन?

पेंगुइन मांसाहारी हैं। उनका आहार समुद्र में पाए जाने वाले छोटे क्रस्टेशियन जीव, स्क्विड और मछलियां हैं। पेंगुइन बहुत पेटू भी होते हैं। कई बार तो इनके समूह इतना खाते हैं कि इनकी आबादी के आसपास का क्षेत्र भोजन रहित हो जाता है। प्रत्येक दिन कुछ पेंगुइन तो औसत 200 बार गोता लगाकर समुद्र में 120 फीट नीचे तक भोजन की तलाश में चले जाते हैं।

पेंगुइन के बच्चे

पेंगुइन के समूह को कॉलोनी कहते हैं। प्रजनन ऋतु में पेंगुइन समुद्र के किनारों पर आकर बड़े समूहों में एकत्रित हो जाते हैं। इन समूहों को रूकरी कहते हैं। अधिकाश पेंगुइंस मोनोगेमस होते हैं अर्थात प्रत्येक प्रजनन ऋतु में एक नर और एक मादा का जोड़ा बनता है और पूरे जीवनकाल तक साथसाथ रहकर प्रजनन करता है।

लगभग पांच साल की उम्र में मादा पेंगुइन प्रजनन के लिए परिपक्व हो जाती है। ज़्यादातर प्रजातियां वसंत और ग्रीष्म के दौरान प्रजनन करती हैं। आम तौर पर नर पेंगुइन प्रजनन में पहल करते हैं। मादा पेंगुइन को प्रजनन के लिए मनाने के पूर्व ही नर घोंसले के लिए एक अच्छी जगह का चयन कर लेते हैं।

प्रजनन के बाद मादा एंपरर तथा किंग पेंगुइन केवल एक ही अंडा देती है। पेंगुइन की सभी अन्य प्रजातियां दो अंडे देती हैं। एंपरर पेंगुइन को छोड़कर अन्य सभी प्रजातियों में अंडों को सेने का कार्य मातापिता दोनों बारीबारी से करते हैं। इसके लिए वे घोंसले में अंडे को पैरों के बीच रखकर बैठते हैं। एंपरर पेंगुइन में अंडा नर के ज़िम्मे सौंपकर मादा कई सप्ताह के लिए भोजन की तलाश में दूर निकल जाती है। पेंगुइन के बच्चे बड़े होकर जब अंडे से निकलने की तैयारी में होते हैं तो वे अपनी चोंच की सहायता से अंडे को तोड़कर बाहर आते हैं। बच्चों को भोजन देने का कार्य नर एवं मादा दोनों करते हैं। भोजन को चबाकर पुन: मुंह से निकालकर बच्चों को दिया जाता है। बच्चों की आवाज़ से मातापिता उन्हें खोज लेते हैं।

खतरे में पेंगुइन

पेंगुइन की अधिकांश प्रजातियां खतरे में है। अंटार्कटिक साइंस में प्रकाशित हाल ही में किए गए शोध के अनुसार अफ्रीका और अंटार्कटिका के बीच दक्षिणी हिंद महासागर के पिग द्वीप पर पेंगुइंस के बड़े समूह में से 88 प्रतिशत तक पेंगुइन घट गए हैं। विश्व के किंग पेंगुइंस की एक तिहाई जनसंख्या यहीं पाई जाती है। पिछले पांच दशकों से वैज्ञानिकों का एक दल हवाई और उपग्रह तस्वीरों से पेंगुइन की कालोनी के आकार में परिवर्तन पर निगाहें जमाए हुए था। 1980 में विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाले किंग पेंगुइन के पांच लाख प्रजनन जोड़े घटकर 2018 में केवल 60,000 जोड़े तक सीमित हो गए हैं। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि किंग पेंगुइन की जनसंख्या 1990 से गिरना प्रारंभ हुई थी। यह वही समय था जब अलनीनो प्रभाव हुआ था। भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्र में प्रशांत महासागर के वातावरण में अलनीनो एक अस्थायी परिवर्तन है। इसके कारण पेंगुइन का भोजन, जैसे मछली तथा अन्य प्राणी उनकी कालोनी से दूर दक्षिण में चले जाते हैं। आसानी से मिलने वाला भोजन अलनीनो प्रभाव के कारण दूभर हो जाता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://s4.reutersmedia.net/resources/r/?m=02&d=20140629&t=2&i=914305800&r=LYNXMPEA5S0BS&w=1280

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