एक खोजी की अनोखी यात्रा – डॉ. अरविंद गुप्ते

7 जुलाई 2003 को एक खोजी 50 करोड़ किलोमीटर लम्बी यात्रा पर 20 हज़ार किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चल पड़ा। यह यात्री कोई मनुष्य नहीं, अमेरिका द्वारा मंगल ग्रह की ओर भेजा गया यान अपॉर्चुनिटी (संक्षेप में ऑपी) था। साढ़े पांच महीनों की लम्बी यात्रा के दौरान ऑपी सोता रहा और जनवरी 2004 को वह अपने लक्ष्य के पास पहुंचा। फिर उसे भेजने वाले वैज्ञानिकों ने उसकी गति छह मिनटों में शून्य कर दी। इसके बाद वह तेज़ी से मंगल ग्रह पर गिरने लगा। किंतु इसके पहले कि वह लाल ग्रह से टकराता, उसके पैराशूट और झटकों से बचाने वाले एअर बैग खुल गए और वह मंगल की सतह पर आराम से उतर गया।

मंगल ग्रह पर उल्का पिंड टकराते रहते हैं और छोटे-बड़े गड्ढे बनते रहते हैं। ऐसे ही एक गड्ढे में उतरने के चार घंटे बाद ऑपी को नींद से जगाया गया। जब ऑपी ने अपनी आंखें खोली तब उसकी आंखों से दिख रहे दृश्य को देख वैज्ञानिक हैरान रह गए। उस गड्ढे की दीवार तलछटी चट्टानों से बनी थी। तलछटी चट्टानें केवल समुद्र जैसे बड़े जलाशयों में ही बनती हैं। पानी में निलंबित गाद पेंदे में बैठ जाती है और धीरे-धीरे चट्टानों में बदल जाती है। ऐसा नज़ारा पृथ्वी को छोड़ कहीं और नहीं देखा गया था। ऑपी ने उतरते ही सिक्सर लगा दिया था। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि यह तलछट किसी खारे पानी के समुद्र के सूखने से बनी थी। किसी भी ग्रह-उपग्रह पर जीवन लायक परिस्थितियों की खोज इस बात पर निर्भर करती है कि क्या उस ग्रह पर पानी है या कभी था।

ऑपी को कुछ लक्ष्य दिए गए थे:

1. चट्टानों और मिट्टियों का परीक्षण करके यह पता लगाना कि क्या मंगल पर कभी पानी था?

2. उतरने के स्थान के आसपास की भूमि पर उपस्थित खनिजों, चट्टानों और मिट्टी का परीक्षण करके उनके संघटन का निर्धारण करना।

3. यह निर्धारित करना कि किन भूगर्भीय प्रक्रियाओं ने ग्रह की सतह को आकृति दी है और उसकी रासायनिक बनावट को प्रभावित किया है। इन प्रक्रियाओं में पानी या हवा से अपरदन, तलछटीकरण, ज्वालामुखीय गतिविधि आदि शामिल हैं।

4. मंगल ग्रह का चक्कर लगाने वाले उपग्रहों द्वारा किए गए अवलोकनों का सत्यापन करना।

5. लौह-युक्त खनिजों की खोज करना और ऐसे विशिष्ट खनिजों की पहचान करके उनकी मात्रा का निर्धारण करना जिनमें पानी हो सकता है या जो पानी में बने थे, जैसे लौह के कार्बन-युक्त यौगिक।

6. चट्टानों और मिट्टियों का परीक्षण करके यह पता करना कि उनका निर्माण किन प्रक्रियाओं से हुआ था।

7. उन भूगर्भिक संकेतों को खोजना जिनसे यह पता चले कि जब मंगल ग्रह पर पानी था तब पर्यावरणीय परिस्थितियां कैसी थीं और यह मूल्यांकन करना कि क्या वे परिस्थितियां जीवन के लिए अनुकूल थीं।

ऑपी से 20 दिन पहले अमेरिका का दूसरा खोजी यान (स्पिरिट) मंगल ग्रह की दूसरी बाजू पर उतर चुका था, किंतु यहां हम केवल ऑपी की ही चर्चा करेंगे। उपरोक्त भारी-भरकम कार्य के लिए ऑपी को केवल 90 सोल यानी पृथ्वी के लगभग 3 माह का समय दिया गया था। (मंगल ग्रह का एक दिन पृथ्वी के 24 घंटे और 40 मिनिट के बराबर होता है और इसे सोल कहते हैं।)

पहले लगभग दो महीनों तक (56 सोल) ऑपी उतरने की जगह के आसपास ही घूमता रहा। उसने अपने कई कैमरों से लगातार फोटो लिए, एक बरमे से ज़मीन में छेद किए, एक पहिए को ज़मीन पर रगड़ कर नाली खोद डाली और विभिन्न खनिजों के वर्णक्रमों का मापन किया।

57वें सोल पर ऑपी अपने गड्ढे से बाहर निकला और एक किलोमीटर दूर दूसरे, अधिक गहरे गड्ढे की ओर चल पड़ा। बड़े गड्ढे में उतरने के बाद उसने और खोजबीन की। इसके बाद ऑपी को निर्देश दिया गया कि वह उस गड्ढे की खोजबीन करे जो स्वयं उसके उष्णतारोधी आवरण के गिरने की वजह से बना था। इस आवरण ने उसे मंगल पर उतरते समय जल जाने से बचाया था। रास्ते में उसे एक उल्कापिंड मिल गया जो निश्चित रूप से किसी अन्य ग्रह से आ कर या अंतरिक्ष में अकेले भटकते हुए मंगल से टकरा गया था। फिर ऑपी ने मंगल के कई चंद्रमाओं में से एक (फोबोस) का फोटो खींचा।

सोल 946 पर ऑपी विक्टोरिया नामक विशाल गड्ढे के पास पहुंचा। ऑपी को इस यात्रा में कई संकटों का सामना करना पड़ा। एक बार वह रेत में फंस गया। कई सोल बाद वह मुश्किल से निकल पाया। फिर उसे मोड़ने वाली मोटरों में से एक खराब हो गई। उसके हाथ के जोड़ ने काम करना बंद कर दिया। फिर विक्टोरिया गड्ढे में उसे भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा जिसके चलते उसके सौर पैनल मिट्टी से ढंक गए और पृथ्वी तथा सूर्य से उसका सम्पर्क कट गया। किंतु फिर एक ऐसा तूफान आया जिसने पैनलों पर जमी मिट्टी को उड़ा दिया। अब ऑपी को सौर ऊर्जा मिलने लगी और वह फिर चल पड़ा। आगे जाने पर ऑपी को एक घाटी दिखाई दी जिसके तल की ओर उतरते समय एक और तूफान आया और ऑपी के सौर पैनल फिर मिट्टी से ढंक गए और उसका पृथ्वी और सूर्य से सम्पर्क टूट गया। इस बार वैज्ञानिकों की लाख कोशिशों के बावजूद पैनलों से मिट्टी हटाई नहीं जा सकी और 12 फरवरी 2019 को अंतत: ऑपी को मृत घोषित कर दिया गया।

इस प्रकार, वैज्ञानिकों द्वारा जीवन की अवधि केवल 90 सोल माने जाने के बावजूद यह बहादुर यंत्र 5111 सोल (पंद्रह वर्ष से अधिक) तक जीवित रहा और मंगल ग्रह की और आगे होने वाली खोजों के लिए मज़बूत नींव रखकर हमेशा के लिए सो गया। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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