भारत में घरेलू ऊर्जा की चुनौती का प्रबंधन – आदित्य चुनेकर, श्वेता कुलकर्णी, अशोक श्रीनिवास

लेखक प्रयास (ऊर्जा समूह) से जुड़े हैं। यह लेख भारतीय ऊर्जा क्षेत्र के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौतियों पर तीन लेखों में से दूसरा है।

बिजली क्षेत्र की विभिन्न परियोजनाओं और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के परिणामस्वरूप भारत के लगभग हर घर में बिजली और एलपीजी कनेक्शन है। निसंदेह यह स्वागत-योग्य है, लेकिन फिर भी भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत वैश्विक औसत की लगभग एक तिहाई ही है जो भारत में मानव विकास के मार्ग में एक बाधा माना जाता है। इस लेख में कुछ ऐसे विचार सुझाए गए हैं जिनसे परिवार खाना पकाने के लिए साफ र्इंधन के विकल्पों की ओर कदम उठाएंगे। और इसके परिमामस्वरूप घरेलू ऊर्जा की मांग में जो वृद्धि होगी उसके लिए प्रभावी नियोजन और प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं। बिजली से जुड़ी कुछ समस्याओं की बात इस शृंखला के पिछले लेख ‘शत प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकरण पर्याप्त नहीं है’ में की जा चुकी है।

खाना पकाने के लिए ऊर्जा

पीएमयूवाई के तहत गरीब परिवारों में सात करोड़ से अधिक नए एलपीजी कनेक्शन दिए गए हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करना एक मुश्किल काम है कि परिवार खाना पकाने के लिए रसोई गैस या अन्य साफ र्इंधन का उपयोग लगातार जारी रखें। इसके लिए चार-आयामी रणनीति की आवश्यकता है।

पहला, पीएमयूवाई जैसी आपूर्ति-आधारित योजना को सुदृढ़ करना होगा ताकि परिवारों की ओर से मांग भी बढ़े। इसके लिए पारंपरिक चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं एवं बच्चों पर होने वाली गंभीर स्वास्थ्य-सम्बंधी प्रभावों के प्रति जागरूकता पैदा करनी होगी और इससे सम्बंधित जेंडर, व्यवहार और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने के प्रयास करने होंगे।

दूसरा, आपूर्ति पक्ष में बिजली, बायोगैस और पाइप द्वारा प्राकृतिक गैस जैसे अन्य स्वच्छ र्इंधन भी शामिल करने चाहिए क्योंकि यह ज़रूरी नहीं कि एलपीजी सभी घरों के लिए पसंदीदा या उपयुक्त विकल्प हो।

तीसरा, महज़ कनेक्शन से आगे जाकर आधुनिक र्इंधन का निरंतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, पर्याप्त और अच्छी तरह से निर्देशित सब्सिडी प्रदान करने, देशव्यापी आपूर्ति शृंखला स्थापित करने और ग्रामीण वितरण के लिए कामकाजी व्यावसायिक मॉडल विकसित करने के लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता है।

चौथा, आधुनिक र्इंधन के निरंतर उपयोग और घरेलू वायु प्रदूषण में कमी को लेकर सुपरिभाषित लक्ष्य होने चाहिए।

चूंकि यह मुख्य रूप से स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौती है, इसलिए इन चारों आयामों के समन्वय और प्रबंधन के लिए एक बहु-मंत्रालयीय कार्यक्रम की आवश्यकता होगी जो स्वास्थ्य मंत्रालय में अवस्थित हो और प्रधानमंत्री कार्यालय से संचालित किया जाए।

बढ़ती आय, विद्युतीकरण में वृद्धि और परिवारों में खाना पकाने के आधुनिक र्इंधन की खपत में वृद्धि के चलते घरेलू ऊर्जा खपत में वृद्धि होगी। इस परिवर्तन के कारकों और पैटर्न को समझने की आवश्यकता है।

घरों में ऊर्जा उपयोग से सम्बंधित बेहतर जानकारी से ऊर्जा की मांग पर आय और कीमतों के असर, उपकरण खरीद, र्इंधन में परिवर्तन आदि के कारकों की बेहतर समझ मिल सकती है। इसके आधार पर ऊर्जा मांग का बेहतर अनुमान लगाया जा सकेगा और ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों में मदद मिलेगी।

मकानों के गुणधर्मों, उपकरणों के स्वामित्व, उपकरणों के उपयोग और घरेलू ऊर्जा उपयोग से सम्बंधित अन्य कारकों के बारे में राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर जानकारी एकत्र करने के लिए समय-समय पर सर्वेक्षण किए जाने चाहिए। कई देश इस तरह के सर्वेक्षण करते हैं, और वर्तमान भारतीय सर्वेक्षण में ऐसी कोई सूचना नहीं मिलती है। इसलिए, भारत को भी इस तरह के सर्वेक्षण करने के लिए एक संस्थान बनाना चाहिए, जिसको राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा संचालित किया जा सकता है।

दक्षता में सुधार

भविष्य में घरेलू ऊर्जा मांग के प्रबंधन में ऊर्जा दक्षता सम्बंधी उपायों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। भारत में रेफ्रिजरेटर और एयर-कंडीशनर (एसी) जैसे बड़े उपकरणों की संख्या फिलहाल बहुत कम है जो आने वाले समय में तेज़ी से बढ़ेगी और इनके लिए ऊर्जा दक्षता उपाय बहुत महत्वपूर्ण होंगे।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई), ऊर्जा कुशल उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए एक ‘स्टार रेटिंग कार्यक्रम’ चलाता है। तीन कदम इस कार्यक्रम को और मज़बूत बनाने में मदद कर सकते हैं। सबसे पहला, बीईई को नियमित रूप से सभी उपकरणों के लिए दक्षता रेटिंग को उन्नत करना चाहिए। उदाहरण के लिए, रेफ्रिजरेटर और एसी के लिए स्टार रेटिंग में संशोधन के ज़रिए 2019 में 5-स्टार उपकरण की ऊर्जा खपत 2009 की तुलना में कम हुई है लेकिन वहीं छत के पंखों के लिए 2010 के बाद से कोई संशोधन नहीं किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत में सालाना बिकने वाले तीन से चार करोड़ सीलिंग फैन में से 80-90 प्रतिशत बहुत घटिया दक्षता वाले हैं।

दूसरा, बीईई को विभिन्न उपकरणों के स्टार लेबल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।  इसमें उनके पूरे जीवनकाल में संभावित पैसे की बचत भी शामिल होना चाहिए जो उच्च शुरुआती लागत की भरपाई कर देती है।

तीसरा, बीईई को बाज़ार में स्टार-रेटेड मॉडल के बेतरतीबी से लिए गए नमूनों के प्रदर्शन का आकलन करना चाहिए और परिणामों को सार्वजनिक करना चाहिए। इससे स्टार लेबल में उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा और परिणामस्वरूप कुशल उपकरणों को अपनाने में वृद्धि होगी।

भारत घरेलू ऊर्जा खपत में तेज़ी से वृद्धि की ओर बढ़ रहा है। इसे उपयुक्त नीति और संस्थागत डिज़ाइन द्वारा सुगम बनाने की आवश्यकता है, जिसका नियोजन घरेलू ऊर्जा मांग के संभावित कारकों और पैटर्न की बेहतर समझ के आधार पर हो तथा कुशलता से प्रबंधन किया जाए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit :  https://www.thehindubusinessline.com/opinion/rxx2k5/article26762886.ece/alternates/WIDE_615/BL08THINKPOWER1

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