पांच हज़ार वर्ष पहले देश-विदेश में खाद्य विनिमय – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

म सिल्क रूट या रेशम मार्ग से तो वाकिफ हैं ही, जो चीन और मध्य एशिया को दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया से जोड़ता है। हम यह भी जानते हैं कि 4000 साल पूर्व (2000 ईसा पूर्व) कैसे इन क्षेत्रों के बीच व्यापार शुरू हुआ। उस वक्त बेबीलोन (फरात नदी के पास के क्षेत्र) में हम्मुराबी राजा का शासन था जहां प्रजा के लिए सख्त नैतिक कानून थे। इस संदर्भ में, पीटर फ्रेंकओपन द्वारा लिखित एक उल्लेखनीय और पठनीय किताब है दी सिल्क रोड्स: ए न्यू हिस्ट्री ऑफ दी वर्ल्ड (रेशम मार्ग: दुनिया का नवीन इतिहास)।

इस किताब में उन्होंने बताया है कि उससे भी बहुत पहले कांस्य युग में (3000 ईसा पूर्व यानी आज से लगभग 5000 साल पहले) पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र के बीच व्यापार शुरू हो चुका था और उनके बीच सांस्कृतिक सम्बंध भी थे। तब, भूमध्यसागरीय क्षेत्र के लोग मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के लोगों के साथ व्यापार करते थे। इन जगहों पर वे घोड़े, ऊंट और गधे लेकर गए। इसी प्रकार से वे खाड़ी क्षेत्रों से होते हुए भारत से भी जुड़े। और गेहूं, चावल, दाल, तिल, केला, सोयाबीन और हल्दी जैसे ‘विदेशी’ (गैर-देशी) खाद्य पदार्थों का व्यापार किया।

कांस्य युग के शव

अच्छी बात है कि लेवंट क्षेत्र (बिलाद-अलशाम) के अध्ययन में इस्राइल, फिलिस्तीन, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया सहित एक बड़े इलाके की कब्राों में कांस्य युगीन लोगों के शव दफन पाए गए। इस्राइल, जर्मनी, स्पेन, यूके और यूएस के एक शोध दल द्वारा इन शवों का अध्ययन किया गया। दिसंबर 2020 में प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में एक काफी रोमांचक पेपर प्रकाशित हुआ था: 2000 ईसा पूर्व दक्षिण एशिया और पूर्वी क्षेत्रों के बीच के संपर्क दर्शाते विदेशी खाद्य पदार्थ। इसे आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं। https://doi.org/10.1073/pnas.2014956117..

प्राचीन साहित्यिक स्रोत बताते हैं कि 3000 ईसा पूर्व लंबी दूरी की यात्राएं हुआ करती थीं और गधों जैसे जानवरों का परिवहन हुआ करता था – मिस्र से दक्षिणी लेवंट (आज के इस्राइल, फिलिस्तीन, जॉर्डन, सीरिया) और अम्मान, अलेप्पो, बेरूत और दमिश्क के शहरों के बीच, और यहां तक कि इटली और मेसोपोटामिया (ईरान, सीरिया और तुर्की) के बीच। वानस्पतिक साक्ष्य पुष्टि करते हैं कि कांस्य युग (2000-1500 ईसा पूर्व) में दक्षिणी एशियाई क्षेत्रों से तरबूज़े-खरबूज़े, नींबू जाति के फलों और अन्य फलों के पेड़ों का आदान-प्रदान होता था। यहां भूमध्यसागरीय व्यंजनों के प्रमाण भी मिले हैं, और सिंधु घाटी सभ्यता और दक्षिण एशियाई क्षेत्र, जैसे इंडोनेशिया से दक्षिणी लेवंट – खासकर मध्य कांस्य युगीन स्थल जैसे इस्राइल, फिलिस्तीन, लेबनान और सीरिया – के बीच व्यापार के साक्ष्य भी हैं।

दंत पथरी

इस क्षेत्र में दो स्थलों, मेगिडो और तेल एरानी को अध्ययन के लिए चुना गया। शोध समूह इस क्षेत्र के कब्रगाह, कब्रिस्तान और मकबरों का अध्ययन कर सकते थे। इन स्थानों से 16 नमूने (कब्र) मिलीं, जिसमें से उन्हें हज़ारों वर्ष पूर्व मृत लोगों की हड्डियां प्राप्त हुर्इं। उन्होंने इन शवों के दांतों, खासकर जबड़े को जोड़ने वाले निचले दांतों, का विस्तार से अध्ययन किया। इस विश्लेषण को ‘दंत कलन’ कहते हैं। (वैसे इसमें कलन शब्द का गणित से कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए आप इस भ्रम में न रहें कि यहां शोधकर्ताओं ने कोई उन्नत गणितीय विश्लेषण किया होगा!) यहां कलन का मतलब शव कंकाल के दांतों के प्रोटीन विश्लेषण से है, जो किसी व्यक्ति द्वारा खाए गए भोजन के बारे में जानकारी देता है – खासकर दांतों में फंस कर रह गए वानस्पतिक खाद्य के बारे में। इन वानस्पतिक खाद्य को फायटोलिथ्स कहते हैं (‘फायटो’ यानी पौधा और ‘लिथ’ यानी दांत में फंसे पौध खाद्य के ऊतक का जीवाश्म)।

शोधकर्ताओं ने मेगिडो और तेल एरानी के कब्रागाहों से प्राप्त 16 शवों के दंत कलन का विश्लेषण किया। और विश्लेषण में दंत कलन में बाजरा, खजूर, फूलधारी पौधे, घास और गेहूं, चावल, तिल, जौ, सोयाबीन, केला अदरक और हल्दी जैसे खाद्य पौधे उपस्थित पाए।

इसके बाद शोधकर्ताओं ने दंत कलन का प्रोटिओम विश्लेषण किया। प्रोटिओम विश्लेषण हमें खाद्य पदार्थ या वनस्पति की कोशिकाओं में व्यक्त प्रोटीन के पूरे समूह के बारे में बताता है। इस विश्लेषण में वेनीला, दालचीनी, जायफल, चमेली, लौंग और काली मिर्च मौजूद पाए गए, जिससे पता चलता है कि दक्षिण-पूर्व और भूमध्यसागरीय क्षेत्रों के बीच, और काला सागर-मृत सागर क्षेत्र में कांस्य युग (3000-1200 ईसा पूर्व) के समय से ही और लौह युग (500 ईसा पूर्व) में व्यापार मार्ग मौजूद था।

भारत में, विशेषकर देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में, कांस्य युगीन जानकारी पुरातत्वविदों और इतिहासकारों द्वारा अच्छी तरह से दर्ज की गई है। (इस क्षेत्र के दक्षिणी भाग में कांस्य युगीन विवरण के लिए अभी भी अध्ययन जारी हैं)। सिंधु घाटी सभ्यता पहले ही पाषाण युग से कांस्य युग (3300-1300 ईसा पूर्व) में प्रवेश कर गई थी। धातुकर्म का अभ्यास किया जाता था।

2600 ईसा पूर्व के आसपास सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजो-दाड़ो और हड़प्पा के शहरों में अपने शहरीकरण के लिए अच्छी तरह से पहचानी जाती है, जो अब पाकिस्तान में है। फिर भारत के उत्तर-पश्चिमी इलाके में लिखित ग्रंथों, कृषि, जल प्रबंधन, खगोल विज्ञान और दर्शन का उपयोग दिखता है। इस पर और अधिक जानकारी इस वेबसाइट से प्राप्त की जा सकती है: study.com/academy/lesson/the-bronze-age-in-india-history-culture-technology.html। कृषि में, हम देखते हैं कि बाजरा, चावल, गेहूं, घास उगाए जाते थे। प्रोद्योगिकी में, जल प्रबंधन किया जाता था। व्यापार में, इस क्षेत्र और मध्य एशिया, मेसोपोटामिया और दक्षिणी लेवंट के बीच व्यापार किया जाता था। और यह सब रेशम मार्ग बनने के बहुत पहले हो रहा था। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.thehindu.com/sci-tech/science/o5n7c0/article33588824.ece/ALTERNATES/LANDSCAPE_615/17TH-SCIBRONZE-AGE

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