टीकों को चकमा देता ओमिक्रॉन

प्रयोगशाला से प्राप्त डैटा से पता चला है कि व्यापक रूप से उपयोग किए जा रहे टीके तेज़ी से फैल रहे ओमिक्रॉन संस्करण के विरुद्ध न के बराबर सुरक्षा प्रदान करते हैं।

गौरतलब है कि कुछ टीकों में निष्क्रिय किए गए वायरस का उपयोग किया जाता है। ये टीके स्थिर होते हैं और इनका निर्माण अपेक्षाकृत रूप से आसान होता है। लेकिन प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि ये ओमिक्रॉन के विरुद्ध अप्रभावी रहे हैं।

ऐसे निष्क्रिय-वायरस आधारित टीकों की दोनों खुराकें मिलने के बाद भी ऐसे प्रतिरक्षा अणुओं का निर्माण नहीं हुआ जो ओमिक्रॉन संक्रमण का मुकाबला कर सकें। और तो और, तीसरी खुराक के बाद भी ‘न्यूट्रलाइज़िंग’ एंटीबॉडी का स्तर कम पाया गया जो कोशिकाओं को संक्रमण के खिलाफ शक्तिशाली सुरक्षा प्रदान करती हैं। दूसरी ओर, mRNA या प्रोटीन-आधारित टीकों की तीसरी खुराक ओमिक्रॉन के विरुद्ध बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है।

ये निष्कर्ष निष्क्रिय-वायरस आधारित टीकों की भूमिका का पुनर्मूल्यांकन करने की ज़रूरत दर्शाते हैं।

पिछले वर्ष विश्वभर के टीकाकरण अभियान में निष्क्रिय -वायरस टीकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अब तक वितरित 11 अरब टीकों में से चीन द्वारा निर्मित सायनोवैक और सायनोफार्म की हिस्सेदारी 5 अरब रही है। इसके अलावा भारत में निर्मित कोवैक्सिन, ईरान द्वारा निर्मित कोविरॉन बरेकत और कज़ाकिस्तान द्वारा निर्मित क्वैज़वैक जैसे टीकों की भी 20 करोड़ से अधिक खुराकें वितरित की जा चुकी हैं। ये सभी टीके गंभीर बीमारी या मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम रहे हैं।

हांगकांग के शोधकर्ताओं द्वारा कोरोनावैक टीका प्राप्त 25 लोगों के रक्त के विश्लेषण में एक भी व्यक्ति में ओमिक्रॉन संस्करण के विरुद्ध न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी नहीं पाई गई। शोधकर्ताओं का मत है कि इस टीके से ओमिक्रॉन संक्रमण का जोखिम बना रहता हैं। वैसे सायनोवैक ने अपने आंतरिक आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है कि कंपनी का टीका प्राप्त करने वाले 20 में से 7 लोगों में ओमिक्रॉन को निष्क्रिय करने वाली एंटीबॉडी पाई गई हैं। भारत बायोटेक (कोवैक्सिन) और चीनी कंपनी सायनोफार्म (बीबीआईबीपी-कोरवी) ने भी ओमिक्रॉन के विरुद्ध निष्क्रिय -वायरस टीकों के कुछ हद तक प्रभावी होने का दावा किया है।

इस टीके की तीसरी खुराक से कई लोगों में न्यूट्रलाइज़िंग गतिविधि बहाल हुई है। शंघाई जियाओ टोंग युनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में 292 लोगों पर किए गए एक अध्ययन में तीसरी खुराक मिलने पर 228 में न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी मिली हालांकि स्तर कम ही रहा।

इस सम्बंध में पोंटिफिकल कैथोलिक युनिवर्सिटी ऑफ चिली के मॉलिक्यूलर वायरोलॉजिस्ट राफेल मेडिना ने प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के अन्य भागों की भूमिका की ओर ध्यान दिलाया है।

विशेषज्ञों के अनुसार परिणाम भले ही दर्शाते हों कि निष्क्रिय-वायरस आधारित टीके ओमिक्रॉन से सुरक्षा प्रदान नहीं करते लेकिन ये कोविड-19 के गंभीर प्रभावों से रक्षा ज़रूर करते हैं।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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