खुजली तरह-तरह की – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी

पारंपरिक तौर पर खुजली को जिस तरह परिभाषित किया गया है उसके अनुसार खुजली एक असुखद एहसास (संवेदना) है जो खुजलाने की अनुक्रिया या अनैच्छिक प्रतिक्रिया पैदा करती है। खुजाने से उस कीड़े को भगाने में मदद मिलती है जो आपको कष्ट दे रहा था; लेकिन प्रुराइटस (खुजली का चिकित्सकीय नाम) यदि छह सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है तो यह रोग की द्योतक है जो हर सात में से एक व्यक्ति के शारीरिक और/या मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है। अनुसंधानों ने इस एक ही प्रतीत होती तकलीफ (खुजली) के पीछे के कई क्रियाविधियों का खुलासा किया है।

जीर्ण खुजली (यानी लंबे समय तक चलने वाली खुजली) कई कारणों से हो सकती है। जैसे यह त्वचा-सम्बंधी हो सकती है (अक्सर हिस्टेमीन के स्राव के कारण होती है, जिसका उपचार बेनेड्रिल जैसी एंटीहिस्टेमीन दवाओं से किया जाता है)। यह तंत्रिका विकार सम्बंधी हो सकती है (दाद, तंत्रिका संपीड़न और मस्तिष्क रक्तस्राव जैसी समस्या), या तंत्रगत हो सकती है (कमज़ोर गुर्दे जैसी समस्या) या मनोवैज्ञानिक भी हो सकती है (जैसे जुनूनी-बाध्यकारी गड़बड़ी यानी OCD)।

बुज़ुर्ग विशेष रूप से जीर्ण समस्याओं से ग्रसित होते हैं जो खुजली के रूप में प्रकट होती हैं। वर्ष 2018 में जर्नल ऑफ दी इंडियन एकेडमी ऑफ जेरिएट्रिक्स में मणिक्कम और उनके साथियों द्वारा प्रकाशित दक्षिण भारत के एक अध्ययन में साठ साल से अधिक आयु वर्ग के 29 प्रतिशत लोगो में एक्ज़िमा की समस्या देखी गई थी। दिल्ली कैंट के बेस अस्पताल में इसी उम्र वर्ग पर हुए एक अन्य अध्ययन में 56 प्रतिशत लोगों ने प्रुराइटस की शिकायत बताई थी। यह अध्ययन वर्ष 2019 में इंडियन डर्मेटोलॉजी ऑनलाइन जर्नल में प्रकाशित हुआ था। 2019 में ही इंडियन जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित एक विश्लेषण में जीर्ण खुजली की शिकायत करने वाले 100 रोगियों में से 62 लोगों की समस्या के सम्बंधित कारणों को पहचाना जा सका, और इनमें मधुमेह, हाइपोथायरायडिज़्म, कई तरह के कैंसर और लौह की कमी शामिल थे।

खुजली पैदा करने वाले कारकों को प्रुराइटोजेन्स कहा जाता है। खुजली के प्रति संवेदनशील ऊतकों में त्वचा, श्लेष्मा झिल्लियां और आंख का कॉर्निया शामिल हैं। इन ऊतकों में कुछ तंत्रिका ग्राही (प्रुरिसेप्टर) प्रुराइटोजेन्स द्वारा उत्तेजित होते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न संदेश मेरु रज्जू में खुजली के संकेत देने वाली तंत्रिकाओं के ज़रिए मस्तिष्क तक ले जाए जाते हैं। प्रुराइटोजेन्स पर प्रतिक्रिया देने वाले कई अलग-अलग ग्राही और चैनल होते हैं। इनकी संख्या इतनी अघिक होती है कि चाहे जो भी हो, खुजली की अनुभूति आपके मस्तिष्क तक पहुंच ही जाती है।

जीर्ण खुजली का एक सामान्य उदाहरण है एटोपिक डर्मेटाइटिस। यह एक शोथ स्थिति है जो अक्सर एलर्जी के कारण होती है जिसमें त्वचा कटी-फटी दिखती है और खुजली होती है। उदाहरण के लिए, धूल में पाई जाने वाली घुन (हाउस डस्ट माइट) से होने वाली एलर्जी। यह घुन एक मिलीमीटर के एक तिहाई हिस्से के बराबर होती है, इसका भोजन हमारे शरीर से लगातार झड़ने वाली मृत त्वचा की पपड़ियां होती है। इस घुन के मल में एक तरह का प्रोटीन होता है जो एक शक्तिशाली प्रुराइटोजेन है। इस प्रुराइटोजेन के त्वचा के ग्राहियों से जुड़ने पर यह एटोपिक डर्मेटाइटिस या अस्थमा जैसी एलर्जी पैदा करता है। ये ग्राही उपचार के लिए अच्छे लक्ष्य हैं। इन ग्राहियों को लक्षित करके खुजली की संवेदना को मस्तिष्क तक पहुंचने से रोका जा सकता है। लेकिन साथ ही कोशिश करनी होती है कि शरीर की सुरक्षा के लिए ज़रूरी अन्य संवेदनाएं बाधित न हों।

खुजली और दर्द

खुजली और दर्द के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर खुजलाने की इच्छा का है। अचानक उठे तेज़ दर्द के कारण आप जल्दी से पीछे हट जाते हैं (या खुद को आगे बढ़ने से रोक लेते हैं) और इस तरह संभावित नुकसान से बच जाते हैं; लेकिन खुजलाना वास्तव में खुजली के कारण की ओर ध्यान दिलाता है। खुजलाना मेरु रज्जू में खुजली के संदेश देने वाली तंत्रिकाओं को अवरुद्ध करता है। इससे मस्तिष्क तक पहुंचने वाली खुजली संवेदना में कमी आती है और राहत मिलती है! लेकिन यह राहत क्षणिक ही होती है। खुजलाकर हम असल में हल्का दर्द पहुंचा रहे होते हैं, और यह दर्द पल भर को हमारे मस्तिष्क में खुजली की अनुभूति को दबा सकता है। खुजलाना मस्तिष्क में पारितोषिक तंत्र की तरह भी काम कर सकता है, और खुजलाना एक सुखद एहसास बन सकता है। लेकिन जीर्ण खुजली वाले रोगियों के लिए खुजलाना एक अभिशाप हो सकता है, इससे त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है और खुजली बढ़ सकती है।

आभासी खुजली

जिन लोगों ने (दुर्घटनावश) अपने हाथ या पैर गंवा दिए हैं, उन्हें अक्सर लगता है कि उनके ‘गुमशुदा अंग’ (आभासी अंग) में बहुत खुजली हो रही है। असल में, उनका मस्तिष्क समय के साथ कुछ नए परिपथ बना लेता लेता है और इस कारण शरीर के किसी अन्य हिस्से से मिलने वाले संदेश मस्तिष्क के उस हिस्से को मिलने लगते हैं जो पूर्व में उस अंग से मिला करते थे जो अब नहीं है।

कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी के तंत्रिका विज्ञानी वी. एस. रामचंद्रन ने कई ऐसे प्रयोग किए जो लगते तो सरल हैं लेकिन यह सरलता बस कहने को है। इन प्रयोगों की मदद से उन्होंने दर्शाया कि जिन लोगों ने हाल ही में किसी दुर्घटना में अपना कोई अंग को गंवाया है और अक्सर उन्हें अपने उस ‘अनुपस्थित अंग में असहनीय खुजली’ की शिकायत रहती है तो वे अपने चेहरे के विभिन्न हिस्सों को खुजला कर राहत महसूस कर सकते हैं – जैसे ऊपरी होंठ को खुजला कर वे कट चुकी तर्जनी उंगली में राहत महसूस कर सकते हैं।

जीर्ण खुजली से निपटने के लिए नए चिकित्सीय तरीके त्वचा से लेकर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक कई अलग-अलग बिंदुओं पर आज़माए जा रहे हैं। टाइप बी अल्ट्रा वायलेट प्रकाश त्वचा में प्रतिरक्षा कोशिकाओं से हिस्टेमीन का स्राव कम करने के लिए जाना जाता है, इसलिए फोटोथेरेपी खुजली में उपयोगी साबित हुई है। रोगाणुरोधी यौगिकों से लेपित रेशम के कपड़े भी एक तरीका है। लंबे समय तक बनी रहने वाली खुजली मस्तिष्क में खुजली से जुड़े हिस्सों में कार्यात्मक विसंगतियां पैदा करती है, और इसमें मस्तिष्क के वांछित हिस्से को विद्युत धारा से उत्तेजित करके राहत पहुंचाई जा सकी है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.thehindu.com/sci-tech/science/fw08qt/article38275280.ece/ALTERNATES/LANDSCAPE_1200/16TH-SCIITCHING-HANDSjpg

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