बहुमूल्य डायनासौर जीवाश्म की घर वापसी

गभग दो वर्ष लंबी बातचीत के बाद एक जीवाश्म घर लौटने को है। 11 करोड़ वर्ष पुराना यह जीवाश्म दक्षिण अमेरिका में पाए गए पंख जैसी संरचनाओं वाले पहले गैर-पक्षी डायनासौर का है और फिलहाल जर्मनी स्थित स्टेट म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में है। संभवत: जून तक यह वापस ब्राज़ील आ जाएगा।

दिसंबर 2020 में जर्मनी, मेक्सिको और यू.के. के जीवाश्म-विज्ञानियों ने क्रेटेशियस रिसर्च नामक जर्नल में इस डायनासौर (उबिराजारा जुबैटस) का वर्णन किया था। तब से यह जीवाश्म ब्राज़ील और जर्मन अधिकारियों के बीच विवाद का विषय बन गया। 1990 के दशक में जीवाश्म को ब्राज़ील के अरारीप बेसिन से जर्मनी लाया गया था।    

1942 में पारित कानून के अनुसार ब्राज़ील में पाया गया हर जीवाश्म राष्ट्रीय संपत्ति है जिसे बिना अनुमति देश की सीमा से बाहर नहीं ले जाया जा सकता। वैसे शोधकर्ताओं का दावा है कि ब्राज़ील के एक खनन अधिकारी से उन्हें परमिट प्राप्त हुआ था। लेकिन ब्राज़ील के सरकारी वकील राफेल रयोल के अनुसार इस परमिट में जीवाश्म को दान करने की कोई स्पष्ट अनुमति नहीं दी गई थी। संभव है कि उबिराजारा का जीवाश्म किसी बक्से में था और उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था।

क्रेटेशियस रिसर्च में प्रकाशन के बाद उपनिवेशवादी मानसिकता का हवाला देते हुए एक ऑनलाइन अभियान (#UbirajaraBelongsToBrazil) के माध्यम से नमूने की वापसी का सफर शुरू हुआ। ऐसा कई बार हुआ है जब धनी देशों के वैज्ञानिकों द्वारा निम्न और मध्यम आय वाले देशों के जीवाश्मों पर कब्ज़ा किया गया है। यह जीवाश्म किसी नई प्रजाति का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कसौटी है। ऐसे जीवाश्म को होलोटाइप कहते हैं और इनके निर्यात पर प्रतिबंध है। विवाद के चलते क्रेटेशियस रिसर्च ने इस पेपर को वापस ले लिया है।

सितंबर 2021 में जर्मन संग्रहालय द्वारा जीवाश्म लौटाने से मना करने के बाद ब्राज़ील ने आधिकारिक अनुरोध प्रस्तुत किया जिसे ठुकरा दिया गया। अंतत: जुलाई 2022 जीवाश्म को वापस करने का फैसला लिया गया। इसे संभवत: जून में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय को सौंप दिया जाएगा।

ब्राज़ील के वैज्ञानिक समुदाय को उम्मीद है कि इस मामले के बाद जीवाश्म विज्ञान के क्षेत्र में एक नया अध्याय शुरू होगा। जीवाश्म का ब्राज़ील वापस आना एक महत्वपूर्ण संदेश है और इससे भविष्य में जीवाश्मों को अपने मूल देशों में वापस लाने का रास्ता खुल जाएगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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