कैंसर में वाय गुणसूत्र की भूमिका

देखा गया है कि गैर-प्रजनन अंगों के कैंसर से मरने की संभावना पुरुषों में अधिक होती है (यहां ‘पुरुष’ शब्द का उपयोग उन लोगों के लिए किया गया है जिनमें गुणसूत्रों की तेइसवीं जोड़ी में एक वाय गुणसूत्र होता है हालांकि ऐसे कई लोग स्वयं की पहचान पुरुष के रूप में नहीं करते हैं)।

आम तौर पर माना जाता है कि पुरुषों की जीवनशैली की वजह से उनमें कतिपय कैंसर ज़्यादा होते हैं और ज़्यादा घातक होते हैं। जैसे धूम्रपान और शराब पीने जैसी आदतें। लेकिन इन आदतों को घ्यान में रखकर विश्लेषण किया जाए तो भी देखा गया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों में कतिपय कैंसर होने की संभावना और गंभीरता अधिक रहती है। ऐसा क्यों है?

हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित दो अध्ययनों के नतीजे देखने पर इसका कारण वाय गुणसूत्र लगता है। एक अध्ययन ने पाया है कि उम्र के साथ स्वाभाविक रूप से कुछ कोशिकाओं से वाय गुणसूत्र पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं। वाय गुणसूत्र का अभाव ही आक्रामक मूत्राशय कैंसर की संभावना बढ़ाता है और ट्यूमर को प्रतिरक्षा कोशिकाओं की पहुंच से बचाता है। दूसरे अध्ययन में देखा गया है कि चूहों में वाय गुणसूत्र का एक जीन कुछ कोलोरेक्टल कैंसर के शरीर के अन्य भागों में फैलने का खतरा बढ़ाते हैं। शायद इसलिए क्योंकि यह जीन ट्यूमर की कोशिकाओं की आपसी कड़ी को कमज़ोर कर देता है।

कोशिका विभाजन के दौरान अक्सर वाय गुणसूत्र नष्ट होने की संभावना होती है। जैसे-जैसे (पुरुषों की) उम्र बढ़ती है वाय गुणसूत्र रहित रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ती जाती है। वाय गुणसूत्र रहित कोशिकाओं की अधिकता का सम्बंध हृदय रोग, तंत्रिका-विघटन सम्बंधी स्थितियों और कुछ तरह के कैंसर जैसे रोगों से देखा गया है।

शोधकर्ता देखना चाहते थे कि यह प्रक्रिया मूत्राशय के कैंसर (तथाकथित ‘पुरुष कैंसर’) को कैसे प्रभावित करती है। सीडार्स-सिनाई मेडिकल सेंटर के डैन थियोडॉर्सक्यू और उनके साथियों ने मनुष्यों की उन मूत्राशय कैंसर कोशिकाओं का अध्ययन किया जिनके वाय गुणसूत्र या तो अपने आप नष्ट हो चुके थे या कृत्रिम रूप से जीनोम संपादन करके हटा दिए गए थे।

जब इन कोशिकाओं को चूहों में प्रत्यारोपित किया गया तो शोधकर्ताओं ने पाया कि वाय गुणसूत्र सहित कैंसर कोशिकाओं की तुलना में वाय गुणसूत्र रहित कैंसर कोशिकाएं अधिक आक्रामक थीं। उन्होंने यह भी पाया कि वाय गुणसूत्र रहित ट्यूमर के आसपास की प्रतिरक्षा कोशिकाएं निष्क्रिय थीं।

चूहों पर ही अध्ययन कर उन्होंने यह भी पाया कि प्रतिरक्षा कोशिकाओं की गतिविधि को बहाल करने वाली चिकित्सीय एंटीबॉडी ऐसे ट्यूमर पर अधिक प्रभावी थी जो वाय गुणसूत्र रहित थे बनिस्बत उन ट्यूमर के जो वाय गुणसूत्र सहित थे। मानव ट्यूमर में भी शोधकर्ताओं को ऐसे ही परिणाम मिले हैं।

दूसरे अध्ययन में युनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के रोनाल्ड डीफिनो और उनके साथियों ने चूहों के कोलोरेक्टल कैंसर का अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि वाय गुणसूत्र का KDM5D नामक जीन ट्यूमर कोशिकाओं के बीच की कड़ी को कमज़ोर करता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं ट्यूमर से अलग होकर शरीर के अन्य भागों में फैलने लगती हैं। शोधकर्ताओं ने जब उस जीन को हटाया, तो पाया कि ट्यूमर कोशिकाएं कम आक्रामक हो गईं थी और प्रतिरक्षा कोशिकाओं की पकड़ में अधिक आने लगी थीं।

उम्मीद की जा रही है उपरोक्त तरीके कैंसर के बेहतर उपचार में मदद करेंगे। इसके अलावा उपरोक्त दोनों तरह के कैंसर में वाय गुणसूत्र की दो भिन्न तरह की भूमिका बताती है कि हर ट्यूमर, हर जगह एक जैसा व्यवहार नहीं करता है, इसलिए यह देखने की ज़रूरत है कि वाय गुणसूत्र खत्म होने का असर विभिन्न तरह के कैंसर और अंगों पर किस तरह पड़ता है। इसके अलावा न सिर्फ प्रभावित अंग के आधार पर फर्क पड़ सकता है, बल्कि इससे भी फर्क पड़ सकता है कि किसी अंग में ट्यूमर किस स्थान पर है, और क्या अन्य आनुवंशिक उत्परिवर्तन हुए हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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