जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करेगी हाइड्रोजन – सुदर्शन सोलंकी

हाइड्रोजन एक ऐसा ईंधन है जो रॉकेट को अंतरिक्ष में पहुंचाने में काम आता है, लेकिन अब यह कारों में भी पेट्रोल, डीज़ल और सीएनजी का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। पेट्रोल, डीज़ल और सीएनजी की कीमतों में लगातार वृद्धि और इनके प्राकृतिक भंडार सीमित होने के कारण कई देश अब अन्य विकल्‍प खोज कर रहे हैं और हाइड्रोजन एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आ रहा है।

हाइड्रोजन की रासायनिक ऊर्जा को ऑक्सीकरण-अवकरण अभिक्रिया द्वारा यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है। यह एक ईंधन सेल में हाइड्रोजन और ऑक्‍सीजन के बीच अभिक्रिया कराकर किया जाता है। इस ईंधन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे पर्यावरण में प्रदूषण नहीं फैलता है।

टोयोटा किर्लोस्कर मोटर ने इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी के साथ पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में भारत में पहला ऑल-हाइड्रोजन इलेक्ट्रिक वाहन मिराई लांच किया है। यह शुद्ध हाइड्रोजन से उत्पन्न होने वाली बिजली से चलेगा। यह शून्य कार्बन उत्सर्जन वाहन है क्योंकि इसके टेलपाइप से सिर्फ पानी निकलता है।

भारत में हाइड्रोजन नीति के तहत वर्ष 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को प्रति वर्ष 50 लाख टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत पेट्रोलियम, इंडियन ऑयल, ओएनजीसी और एनटीपीसी जैसी भारतीय कंपनियों ने इस दिशा में काम करना शुरू दिया है।

प्रकृति में हाइड्रोजन सबसे प्रचुर तत्व है लेकिन यह स्वतंत्र रूप में नहीं बल्कि अन्य तत्वों के साथ संयुक्त रूप में पाया जाता है जैसे पानी एक यौगिक है जिसमें हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन का एक परमाणु आपस में जुड़े होते हैं।

हाइड्रोजन को नेचुरल गैस या बायोमास या पानी के विद्युत अपघटन से बनाया जाता है। आइसलैंड में हाइड्रोजन उत्पादन के लिए भू-तापीय ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है तो वहीं डेनमार्क में यह पवन ऊर्जा से बनाई जा रही है।

जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होने वाले हाइड्रोजन को ग्रे हाइड्रोजन कहा जाता है जबकि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है।

हाइड्रोजन ईंधन सेल अधिक कारगर इसलिए है, क्योंकि यह रासायनिक ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। जबकि अन्य में पहले ताप ऊर्जा और फिर यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है। हाइड्रोजन ईंधन सेल में ग्रीनहाउस गैसों की बजाय सिर्फ पानी और थोड़ी ऊष्मा उत्सर्जित होती है।

कुछ देशों में हाइड्रोजन ईंधन वाले वाहनों पर कम टैक्‍स लगता है। हाइड्रोजन चालित कारों की रेंज कहीं ज़्यादा होती है और इनका फिलिंग टाइम इलेक्ट्रिक कारों के मुकाबले काफी कम होता है। एक बार इसका टैंक फुल करने पर 482 कि.मी. से लेकर 1000 कि.मी. तक की दूरी तय की जा सकती है। एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) ने हाल में होंडा क्लैरिटी की रेंज 585 कि.मी. दी है, जो किसी भी शून्य उत्सर्जन वाली गाड़ी के मामले में सबसे ज़्यादा रेंज है। होंडा के अनुसार क्लैरिटी का रीफ्यूल टाइम महज 3-5 मिनट है। कई देशों में अब हाइड्रोजन कार उपलब्‍ध हैं। इन्‍हें भारत में भी मंगाया जा सकता है।

हालांकि हाइड्रोजन ईंधन के लिए कई चुनौतियां भी है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसका उत्‍पादन अधिक महंगा है। इसके लिए प्लैटिनम जैसे दुर्लभ पदार्थों की आवश्यकता उत्प्रेरक के रूप में होती है जो अत्यधिक महंगा है। हाइड्रोजन गैस अत्‍यंत ज्‍वलनशील होती है। ऐसे में वाहन चलाने के दौरान दुर्घटना का खतरा हो सकता है। इसके अलावा हाइड्रोजन वाहनों के लिए फिलिंग स्‍टेशन की कमी है। ब्रिटेन जैसे देशों में भी अभी इनकी संख्‍या बहुत कम है।

वाहनों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता समाप्त होगी तथा वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण से मुक्ति भी मिल सकेगी।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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