सनसनीखेज़ एलके-99 अतिचालक है ही नहीं!

पिछले कुछ सप्ताह से तांबा, सीसा, फॉस्फोरस और ऑक्सीजन से निर्मित अतिचालक (सुपरकंडक्टर) एलके-99 से जुड़े रहस्य का अब खुलासा हो चुका है। इस दावे को खारिज करने वाले साक्ष्य प्रस्तुत होने के बाद सामान्य तापमान पर अतिचालकता का दावा भी धराशायी हो गया है।

सामान्य दाब और 127 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर अतिचालकता के दावे ने सोशल मीडिया पर काफी हंगामा मचाया था। चूंकि पूर्व में अतिचालकता सिर्फ अत्यंत अधिक दाब और अत्यंत कम तापमान पर ही देखी गई थी, इसलिए इस नए आविष्कार में वैज्ञानिकों और आमजन की गहरी रुचि पैदा हुई।

दक्षिण कोरियाई टीम का दावा एलके-99 के दो दिलचस्प गुणों पर टिका था: चुंबकीय क्षेत्र में ऊपर उठकर तैरना (लेविटेशन) और प्रतिरोध में गिरावट। दोनों ही अतिचालकता के लक्षण माने जाते हैं।

पेकिंग विश्वविद्यालय और चीनी विज्ञान अकादमी की टीमों ने इन अवलोकनों के लिए अधिक व्यावहारिक स्पष्टीकरण भी पेश किए थे। इसके अलावा,  प्रायोगिक व सैद्धांतिक विश्लेषण के आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका और युरोप के शोधकर्ताओं ने एलके-99 की संरचना को देखते हुए अतिचालकता की संभावना से ही इंकार किया। इस सामग्री की प्रकृति के बारे में संदेह को दूर करने के लिए कुछ शोधकर्ताओं ने एलके-99 के शुद्ध नमूने संश्लेषित किए और दर्शाया कि यह दरअसल एक इन्सुलेटर (कुचालक) है।

अपने दावों की पुष्टि के लिए दक्षिण कोरियाई टीम ने एक वीडियो भी जारी किया था जिसमें एक चुंबक के ऊपर एक रुपहले सिक्के के आकार का नमूना तैरते हुए दिखाया गया था। कोरियाई शोधकर्ताओं ने इसे मीस्नर प्रभाव कहा था जो अतिचालकता का लक्षण है। सोशल मीडिया पर इस तरह के कई असत्यापित वीडियो आने पर कई शोधकर्ताओं ने इसे दोहराने का प्रयास किया लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। इससे उन्हें एलके-99 की अतिचालक प्रकृति पर संदेह हुआ।

एलके-99 में रुचि रखने वाले हारवर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व शोधकर्ता डेरिक वानगेनप ने भी इस वीडियो का अध्ययन किया। उन्हें इस नमूने का एक किनारा चुंबक से चिपका हुआ प्रतीत हुआ जिसे बहुत ही बारीकी से संतुलित किया गया था। जबकि चुंबक के ऊपर तैरते सुपरकंडक्टर्स को आसानी से घुमाया जा सकता है और पलटा भी जा सकता है। इस आधार पर वैनगेनप को एलके-99 के गुण लौह-चुंबकत्व से अधिक मिलते हुए प्रतीत हुए। इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने गैर-अतिचालक लेकिन लौह-चुम्बकीय डिस्क तैयार की जिसने ठीक एलके-99 के समान व्यवहार किया। इसके अलावा पेकिंग युनिवर्सिटी की एक शोध टीम ने भी एलके-99 के तैरने के लिए सुपरकंडक्टर के बजाय लौह-चुम्बकीय होने की पुष्टि की है। टीम ने इस नमूने की प्रतिरोधकता को मापा लेकिन उन्हें अतिचालकता का कोई संकेत नहीं मिला।

दक्षिण कोरियाई शोधकर्ताओं ने यह भी दावा किया था कि एलके-99 की प्रतिरोधकता ठीक 104.8 डिग्री सेल्सियस पर दस गुना कम (0.02 ओम-सेंटीमीटर से घटकर 0.002 ओम-सेमी) हो जाती है। यह काफी दिलचस्प है कि एकदम सटीक तापमान के इस दावे ने इलिनॉय विश्वविद्यालय के प्रशांत जैन का ध्यान आकर्षित किया। जैन काफी समय से कॉपर सल्फाइड पर अध्ययन कर रहे थे और उन्हें लगा कि यह तापमान (104.8 डिग्री सेल्सियस) जाना-पहचाना है।

एलके-99 के संश्लेषण में असंतुलित मिश्रण बनता है जिसमें कई अशुद्धियां होती हैं। इनमें कॉपर सल्फाइड भी शामिल था। कॉपर सल्फाइड विशेषज्ञ के रूप में जैन को याद आया कि 104 डिग्री वह तापमान है जिस पर कॉपर सल्फाइड का अवस्था परिवर्तन होता है। 104 डिग्री सेल्सियस से नीचे हवा के संपर्क में रखे गए कॉपर सल्फाइड की प्रतिरोधकता अचानक कम होती है और एलके-99 में ऐसा ही दिखा है।

चीनी विज्ञान एकेडमी की टीम ने एलके-99 पर कॉपर सल्फाइड के प्रभाव का पता लगाया। उन्होंने दो नमूनों का परीक्षण किया – एक को निर्वात में गर्म किया गया (जिसमें कॉपर सल्फाइड की मात्रा 5 प्रतिशत रही) और दूसरे को हवा में तपाया गया (जिसमें कॉपर सल्फाइड 70 प्रतिशत रहा)। पहले नमूने की प्रतिरोधकता उम्मीद के मुताबिक व्यवहार कर रही थी (यानी तापमान घटने के साथ बढ़ती गई) जबकि दूसरे नमूने की प्रतिरोधकता 112 डिग्री सेल्सियस के आसपास अचानक कम हो गई, जो दक्षिण कोरियाई टीम के निष्कर्षों के लगभग समान थी। नमूनों में अप्रत्याशित विविधता के कारण एलके-99 के गुणों को निर्धारित करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह अध्ययन पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है कि एलके-99 के अतिचालक गुणों का दावा करना शेखी बघारने के अलावा और कुछ नहीं है।

यानी ज़ाहिर है कि एलके-99 की प्रतिरोधकता में गिरावट और चुंबकीय क्षेत्र में उसका तैरना अतिचालकता के कारण नहीं है लेकिन एलके-99 की वास्तविक प्रकृति के बारे में सवाल बने रहे।

डेंसिटी फंक्शनल थ्योरी (डीएफटी) के आधार पर एलके-99 की संरचना को समझने के प्रारंभिक सैद्धांतिक प्रयासों ने फ्लैट बैंड नामक इलेक्ट्रॉनिक संरचना की उपस्थिति के संकेत दिए। फ्लैट बैंड वे स्थान होते हैं जहां इलेक्ट्रॉन धीमी गति से चलते हैं और आपस में जोड़ियां बना सकते हैं। लेकिन ये गणनाएं एलके-99 संरचना की असत्यापित मान्यताओं पर आधारित थीं।

इसकी स्पष्टता के लिए एक अमेरिकी-युरोपीय टीम ने सटीक एक्स-रे इमेजिंग का उपयोग किया। टीम के अनुसार एलके-99 के फ्लैट बैंड अतिचालकता के लिए अनुपयुक्त हैं। दरअसल एलके-99 के प्लैट बैंड अत्यंत स्थानबद्ध इलेक्ट्रॉनों से बने होते हैं जो छलांग लगाकर अतिचालकता पैदा नहीं कर सकते।

इसी तरह मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सॉलिड स्टेट रिसर्च की एक टीम ने एलके-99 के शुद्ध एकल क्रिस्टल बनाए जो कॉपर सल्फाइड जैसी अशुद्धियों से मुक्त थे। ये क्रिस्टल बहुत अधिक प्रतिरोध वाले इन्सुलेटर साबित हुए जिसने अतिचालकता के सभी दावों को पूरी तरह ध्वस्त कर किया।

बहरहाल, इस पूरे घटनाक्रम से कई कीमती सबक मिले हैं। कई विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक गणनाओं में जल्दबाज़ी की दिक्कतों पर ज़ोर दिया है। कुछ शोधकर्ताओं ने शोध कार्य के दौरान ऐतिहासिक डैटा को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति की ओर भी इशारा किया है। जहां कुछ लोग एलके-99 मामले को विज्ञान में प्रयोगों को दोहराने के एक मॉडल के रूप में देखते हैं वहीं अन्य मानते हैं कि यह एक हाई-प्रोफाइल पहेली के असाधारण और त्वरित समाधान का उदाहरण है। आम तौर पर ऐसे मुद्दे समाधान के बिना घिसटते रहते हैं। अलबत्ता कई लोगों ने ध्यान दिलाया है कि विज्ञान की कई गुत्थियां हैं जिन पर आज तक कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिल पाया है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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