छोटी नदियों को बचाने के सार्थक प्रयास – भारत डोगरा

विभिन्न कारणों से कई छोटी नदियों में पानी बहुत कम हो गया है और यदि उनकी स्थिति ऐसे ही बिगड़ती रही तो वे लुप्त हो जाएंगी। अत: समय रहते उन्हें नया जीवन देने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा ही एक प्रयास हाल ही में झांसी जिले में कनेरा नदी के मामले में किया गया। यह प्रशासन, पंचायतों व सामाजिक कार्यकर्ताओं का परस्पर सहयोगी प्रयास था जिसमें परमार्थ संस्था ने उल्लेखनीय योगदान दिया। यह संस्था बबीना ब्लाक के सरवा, भारदा, खरदा बुज़ुर्ग, पथरवाड़ा, दरपालपुर आदि गांवों में जल संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाती रही है और विशेषकर महिलाओं ने ‘जल-सखी’ के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यहां कनेरा नदी लगभग 19 कि.मी. तक बहती है जो आगे चलकर घुरारी नदी में मिलती है, और घुरारी आगे बेतवा में मिलती है। लगभग 20 वर्ष पहले कनेरा नदी में भरपूर पानी था, लेकिन धीरे-धीरे यह कम होता गया। हाल ही में इतना कम हो गया कि गांवों के भूजल-स्तर, सिंचाई, फसलों के उत्पादन आदि पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ा।

इस स्थिति में पिस्ता देवी, पुष्पा देवी आदि जल-सखियों ने व परमार्थ संस्था के कार्यकर्ताओं ने लोगों को नदी को नया जीवन के प्रयासों के लिए जागृत किया। साथ ही में प्रशासन से व विशेषकर ज़िलाधिकारी से उत्साहवर्धक प्रोत्साहन भी प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप, नदी के बड़े क्षेत्र में गाद-मिट्टी हटाने का कार्य किया गया जिससे नदी की जल ग्रहण क्षमता बढ़ी। इस पर दो चेक डैम बनाए गए व आसपास बड़े स्तर पर वृक्षारोपण हुआ है। सरवा गांव के प्रधान ने बताया कि यदि पिचिंग का कार्य तथा एक और चेक डैम का कार्य हो जाए तो नदी की स्थिति बेहतर हो सकती है। वैसे अभी तक किए गए कार्य की बदौलत पहले की अपेक्षा कहीं अधिक किसान नदी से सिंचाई प्राप्त कर रहे हैं; नदियों में मछलियों के पनपने की स्थिति पहले से कहीं बेहतर हो गई है; नदी में पानी अधिक होने से लगभग पांच गांवों के जल-स्तर में सुधार हुआ है; कुंओं में भी अब अधिक जल उपलब्ध है और पशुओं को अब वर्ष भर नदी के पानी से अपनी प्यास बुझाने का अवसर मिलता है। इसके अतिरिक्त आगे बहने वाली घुरारी नदी से अतिरिक्त मिट्टी-गाद हटा कर सफाई की गई है।

बरूआ नदी तालबेहट प्रखंड (ललितपुर जिला, उत्तर प्रदेश) में 16 कि.मी. तक बहती है और आगे जामनी नदी में मिलती है। इस पर पहले बना चेक डैम टूट-फूट गया था व खनन माफिया ने अधिक बालू निकालकर भी इस नदी की बहुत क्षति की थी। इस स्थिति में इसकी रक्षा हेतु समिति का गठन हुआ। नया चेक डैम बनाने के पर्याप्त संसाधन न होने के कारण यहां रेत भरी बोरियों का चेक डैम बनाने का निर्णय लिया गया।

लगभग 5000 बोरियां परमार्थ ने उपलब्ध करवाई। इन्हें गांववासियों, विशेषकर विजयपुरा की महिलाओं, ने रेत से भरा व नदी तक ले गए और वहां विशेष तरह से जमाया। इस तरह बिना किसी मज़दूरी या बड़े बजट के अपनी मेहनत के बल पर बोरियों का चेकडैम बनाया गया। इससे सैकड़ों किसानों को बेहतर सिंचाई प्राप्त हुई। जल-स्तर भी बढ़ा। गांववासियों व विशेषकर महिलाओं ने खनन माफिया के विरुद्ध कार्यवाही के लिए प्रशासन से संपर्क किया व प्रशासन ने इस बारे में कार्यवाही भी की। आपसी सहयोग से नदी के आसपास हज़ारों पेड़ लगाए गए। नदी में गंदगी या कूड़ा डालने के विरुद्ध अभियान चलाया गया। नदी पर एक घाट भी बनाया गया।

हाल के जल-संरक्षण कार्यों से टीकमगढ़ ज़िले (मध्य प्रदेश) के मोहनगढ़ ब्लॉक की बरगी नदी को नया जीवन मिला है। इन्हें आगे ले जाने में परमार्थ संस्था व उससे जुड़ी जल-सहेलियों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ऐसे कुछ जल-संरक्षण कार्य नाबार्ड की एक वाटरशेड परियोजना के अंतर्गत किए गए जिससे यहां नदी-नालों के बेहतर बहाव में भी सहायता मिली। इसके लिए नए निर्माण कार्य भी हुए व पुराने क्षतिग्रस्त कार्यों (जैसे चैक डैम आदि) की मरम्मत भी की गई।

इसी प्रकार से छतरपुर ज़िले (मध्य प्रदेश) में बछेड़ी नदी के पुनर्जीवन के भी कुछ उल्लेखनीय प्रयास हाल के समय में हुए हैं जिनमें स्थानीय प्रशासन, परमार्थ संस्था और पंचायत का सहयोग देखा गया। चेक डैमों की मरम्मत हुई, नए चेक डैम बनाए गए व वृक्षारोपण भी किया गया।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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