गर्भावस्था में पोषण, स्वास्थ्य व देखभाल – डॉ. पूनम विशाल ज्वैल और सुदर्शन सोलंकी

प्रजनन आयु (15-49 वर्ष) की महिलाओं में खराब पोषण (poor nutrition) के दीर्घकालिक परिणाम होते हैं। महिला के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर के अलावा, इससे कुपोषित बच्चे को जन्म देने का जोखिम भी बढ़ जाता है, जिससे कुपोषण का चक्र पीढ़ियों तक चलता रहता है।

गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान अलग-अलग पोषण सम्बंधी ज़रूरतें होती (pregnancy nutrition requirements, prenatal care) हैं। गर्भावस्था से पहले, महिलाओं को स्वस्थ शरीर के लिए पौष्टिक और संतुलित आहार की ज़रूरत होती है। गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान, ऊर्जा और पोषक तत्वों की ज़रूरत बढ़ जाती है।

किंतु दुनिया के कई देशों में महिलाओं की पोषण(global malnutrition in women) सम्बंधी स्थिति खराब बनी हुई है। बहुत-सी महिलाएं – विशेषकर वे जो पोषण सम्बंधी जोखिम में हैं, उन्हें वे पोषण सेवाएं नहीं मिल रही हैं जो उन्हें स्वस्थ रहने और अपने बच्चों को जीवित रहने, बढ़ने और विकसित होने का सबसे अच्छा मौका देने के लिए आवश्यक हैं।

भारत में बच्चों के बीच खराब पोषण और स्वास्थ्य परिणामों का मुख्य कारण गर्भावस्था से पहले और उसके दौरान माताओं का खराब पोषण है (child malnutrition India, maternal health and child growth)। शोध से पता चलता है कि दो साल की उम्र तक विकास में लगभग 50 प्रतिशत विफलता गर्भधारण और प्रसव के बीच घटिया पोषण के कारण होती है। इसलिए बच्चों में कुपोषण से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए मातृ कुपोषण से निपटना महत्वपूर्ण है।

एक कुपोषित मां अनिवार्य रूप से एक कुपोषित बच्चे को जन्म देती है (malnourished mother and child)। भारत में कुपोषण की समस्या गंभीर है, और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2019-2021 के बीच 22.4 करोड़ से अधिक लोग कुपोषित थे (UN malnutrition report India); जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। भारत में लगभग आधी महिलाओं, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं में कुपोषण और एनीमिया का प्रकोप देश की खाद्य सुरक्षा पर गंभीर बोझ डालता है (anemia in pregnant women, nutrition and food security India)

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) भी दर्शाता है कि भारत में कुपोषण की समस्या लगातार बनी हुई है (NFHS-5 findings on nutrition)। पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा और देश की हर पांचवी महिला कुपोषित है, और अधिक वज़न वाली महिलाओं की संख्या बढ़कर एक चौथाई हो गई है। आधे से ज़्यादा बच्चे, किशोर और महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं (anemia in adolescents and women)

गर्भावस्था के दौरान पोषण का अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि यह न केवल मां के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के विकास और भविष्य के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है (importance of nutrition in pregnancy, baby development during pregnancy)। संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए आवश्यक है (balanced diet in pregnancy, nutrients for pregnant women)। उचित आहार योजना और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर गर्भवती  महिलाएं स्वस्थ गर्भावस्था और स्वस्थ शिशु के जन्म की दिशा में कदम बढ़ा सकती हैं।

ऊर्जा (Energy)

गर्भावस्था के दौरान ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR Pregnancy guidelines) के अनुसार, गर्भ की दूसरी और तीसरी तिमाही में प्रतिदिन 350 किलो कैलोरी अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिसकी पूर्ति प्रत्येक भोजन में थोड़ा-थोड़ा आहार बढ़ाकर की जाती है।

प्रोटीन (Protein)

प्रोटीन गर्भाशय, स्तनों और शिशु के शरीर के ऊतकों (protein for fetal growth) के विकास के लिए आवश्यक है। आईसीएमआर के अनुसार, महिला के प्रति किलो वज़न पर पहली तिमाही में 1 ग्राम प्रतिदिन, दूसरी तिमाही में 8 ग्राम और तीसरी तिमाही में 18 से 20 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है। दूध और पनीर, दही जैसे दुग्ध उत्पाद, अंडे, मांस, चिकन, सैल्मन मछली, दालें, नट्स वगैरह प्रोटीन के अच्छे स्रोत (sources of protein) हैं।

कैल्शियम (Calcium)

कैल्शियम शिशु की हड्डियों (baby bone health) और दांतों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 1 ग्राम अतिरिक्त  कैल्शियम की आवश्यकता होती है। दूध, दही, पनीर जैसे डेयरी उत्पाद, हरी पत्तेदार सब्जियां, सूखे मेवे. तिल के बीज इसके बढ़िया स्रोत हैं।

फोलिक एसिड (Folic acid)

फोलिक एसिड न्यूरल ट्यूब सम्बंधी दोषों (neural tube defect prevention) की रोकथाम में मदद करता है। गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 600 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है। यह हरी पत्तेदार सब्ज़ियों, संतरा, केला, चना, राजमा, साबुत अनाज, दलिया वगैरह में पाया जाता है।

लौह (Iron)

गर्भावस्था के दौरान लौह की आवश्यकता बढ़ जाती है ताकि शिशु और मां दोनों के लिए हीमोग्लोबिन का उत्पादन सुनिश्चित हो सके। गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 36 मिलीग्राम अतिरिक्त लौह की आवश्यकता (iron requirement during pregnancy) होती है। हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, काले किशमिश, खुबानी, लाल मांस, चिकन, खड़े मसूर, चना, राजमा वगैरह लौह के अच्छे स्रोत (soruces of iron) हैं।

आयोडीन (Iodene)

आयोडीन शिशु के मस्तिष्क के विकास (brain development fetus) के लिए आवश्यक है। गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 200-220 माइक्रोग्राम अतिरिक्त आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन युक्त नमक, समुद्री खाद्य पदार्थ, मछली, झींगा, दुग्ध उत्पाद इसके अच्छे स्रोत (Iodene sources) हैं।

विटामिन डी (Vitamin D)

विटामिन डी कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। सूर्य का प्रकाश (Sunlight for vitamin D) (प्रतिदिन सुबह या शाम की धूप में 15-20 मिनट बिताना), मछली,  सैल्मन, मैकेरल, अंडे का पीला भाग इसके बढ़िया स्रोत (sources of vitamin D) हैं।

पानी

गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी पीना आवश्यक (hydration during pregnancy) है। प्रतिदिन कम से कम 3 लीटर (10-12 गिलास) पानी का सेवन करें। गर्मी के मौसम में 2 गिलास अतिरिक्त पानी पीना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल पर पानी, जूस या वेजिटेबल सूप पीते रहें।

कुछ सावधानियां

– कैफीन का सेवन सीमित करें प्रतिदिन 200 मिलीग्राम से अधिक कैफीन लेने से गर्भपात और शिशु के कम वजन वाला रह जाने का खतरा बढ़ सकता है (caffeine limit in pregnancy)

– मदिरा और धूम्रपान (alcohol and smoking risks pregnancy) शिशु के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

– कच्चे या अधपके खाद्य पदार्थों (raw food in pregnancy) से बचें।

– अत्यधिक मसालेदार, तले हुए खाद्य पदार्थों और पैक्ड प्रोसेस्ड भोजन से परहेज करें (avoid processed food in pregnancy), ये अपच और एसिडिटी का कारण बन सकते हैं।

गर्भावस्था के दौरान मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना उतना ही ज़रूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य का (mental and emotional health during pregnancy)। यह न केवल मां के लिए, बल्कि शिशु के विकास और भावनात्मक सेहत के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दौरान तनाव, चिंता और मूड स्विंग्स होना आम बात है। इन्हें सही तरीके से मैनेज करना ज़रूरी है।

भारत को सतत विकास लक्ष्य-2 (‘भूख से मुक्ति’) को प्राप्त करने और 2030 तक सभी प्रकार की भूख और कुपोषण को समाप्त करने के लिए संतुलित आहार, उचित पोषण को हर महिला व शिशु तक पहुंचाकर कुपोषण व एनीमिया की व्यापकता को समाप्त करना होगा (SDG 2 Zero Hunger, nutrition targets India 2030)। इसके लिए समुदाय में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://jammiscans.com/wp-content/uploads/2023/04/Nutrients-needed-for-pregnancy.jpg

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