जलवायु संकट के असली ज़िम्मेदार कौन ?

क हालिया अध्ययन से पता चला है कि 1990 के बाद से बढ़ी वैश्विक तपन (global warming) के दो-तिहाई हिस्से के लिए दुनिया के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग ज़िम्मेदार हैं, जिससे पता चलता है कि जलवायु संकट (climate crisis) के संदर्भ में कैसी असमानता है। हालांकि वैज्ञानिकों को यह तो पता था कि अमीर लोग अधिक कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) करते हैं, लेकिन इस अध्ययन ने आंकड़ों के ज़रिए बताया है कि कौन-कौन कितना कार्बन उत्सर्जन करते हैं और जलवायु परिवर्तन (climate change) के लिए कितना ज़िम्मेदार हैं। ये नतीजे नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ताओं ने जलवायु मॉडल (climate model) का उपयोग किया और यह पता लगाया कि अगर सबसे अमीर लोगों – शीर्ष 10 प्रतिशत, 1 प्रतिशत, और 0.1 प्रतिशत – द्वारा किया जाने वाला उत्सर्जन हटा दिया जाए तो वैश्विक तापमान में कितना बदलाव आएगा। निष्कर्ष चौंकाने वाले थे: 2020 में, वैश्विक तापमान 1990 के मुकाबले 0.61 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इस वृद्धि का 65 प्रतिशत हिस्सा शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों (सालाना आय लगभग 41 लाख रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक) द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन से जुड़ा था। शीर्ष 1 प्रतिशत लोग, (सालाना आय 1.4 करोड़ रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक) तापमान वृद्धि के 20 प्रतिशत हिस्से के लिए ज़िम्मेदार थे। और शीर्ष 0.1 प्रतिशत (लगभग 8,00,000 लोग, वार्षिक आय 5.13 करोड़ रुपए प्रति व्यक्ति से अधिक) तापमान वृद्धि के 8 प्रतिशत हिस्से के लिए ज़िम्मेदार थे।

औसत की तुलना में शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों ने वैश्विक तपन में 6.5 गुना अधिक, शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों ने 20 गुना अधिक और शीर्ष 0.1 प्रतिशत लोगों ने 76 गुना अधिक योगदान दिया।

इस अध्ययन के सह-लेखक कार्ल-फ्रेडरिक श्लेसनर के अनुसार यदि सभी ने दुनिया की सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी की तरह उत्सर्जन किया होता तो 1990 के बाद हमें बहुत अधिक गर्मी नहीं महसूस होती। दूसरी ओर, अगर सभी लोगों ने शीर्ष 10 प्रतिशत की तरह उत्सर्जन किया होता तो दुनिया पहले ही 2.9 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो चुकी होती।

अध्ययन की मुख्य लेखक सारा शॉन्गार्ट का कहना है कि मामला सिर्फ आंकड़ों का नहीं है। अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु सम्बंधी चरम घटनाएं (climate disasters) केवल वैश्विक उत्सर्जन से नहीं बल्कि व्यक्तियों की विशिष्ट क्रियाओं और संपत्ति से भी होती हैं। यह शोध अमीरों पर जलवायु कर (carbon tax on rich) और विकासशील देशों के लिए अधिक जलवायु निधि (climate finance for developing countries) की आवश्यकता को मज़बूत करता है।

अध्ययन याद दिलाता है कि सबसे अधिक प्रभावित लोग अक्सर जलवायु आपदाओं का कारण नहीं होते। इसलिए कोई भी प्रभावी जलवायु नीति (climate policy) इस असंतुलन को ध्यान में रखते हुए न्यायपूर्ण होनी चाहिए। सबसे अमीर लोगों के कार्बन पदचिह्न (carbon footprint) को कम करना भावी नुकसान को कम करने का सबसे शक्तिशाली साधन होगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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