
चिकनगुनिया एक वायरस से फैलने वाली बीमारी है। यह एडीज़ मच्छर, खासकर एशियन टाइगर मच्छर (Aedes albopictus), के काटने से फैलती है जो गर्म और नम जगहों में आसानी से पनपता है। इसके लक्षणों में तेज़ बुखार, जोड़ों में सूजन, सिरदर्द और त्वचा पर चकत्ते आना शामिल हैं। ज़्यादातर लोग एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कभी-कभी दर्द कई महीनों या सालों तक बना रह सकता है। कुछ दुर्लभ मामलों में यह बीमारी दिल या दिमाग में सूजन जैसे गंभीर हालात (chikungunya complications) पैदा कर सकती है।
चिंताजनक बात यह है कि यह बीमारी अब फिर से रीयूनियन नाम के एक द्वीप पर तेज़ी से फैल (chikungunya outbreak) रही है। लगभग 20 वर्ष पूर्व यहां चिकनगुनिया का बड़ा प्रकोप हुआ था, और अब फिर से 50,000 मामले और 12 मौतें हो चुकी हैं। यह बीमारी मॉरीशस जैसे आसपास के द्वीपों तक भी पहुंच गई है।
रीयूनियन द्वीप पर इसके दोबारा फैलने के पीछे वायरस में हुआ एक उत्परिवर्तन (virus mutation) बताया जा रहा है। यह उत्परिवर्तन 2005–06 की भीषण महामारी (2006 chikungunya epidemic) के दौरान देखा गया था, और इन बीस सालों में इस वायरस के विकसित होते जाने के बावजूद यह उत्परिवर्तन बरकरार है।
विशेषज्ञों का मानना है कि समय भी एक अहम कारण है। पिछले बड़े प्रकोप को फैले लगभग 20 साल हो गए हैं, यानी अब एक पूरी पीढ़ी है जिसने न तो वायरस का पहले सामना किया है और न ही उनके शरीर में कोई प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता (lack of immunity) बनी है। इसके अलावा, द्वीप पर बड़ी संख्या में बुज़ुर्ग लोग रहते हैं (जिनमें कई युरोप से रिटायर होकर आए हैं), उनमें भी इस वायरस से लड़ने की क्षमता नहीं है।
पिछले प्रकोप की तुलना में इस बार नई बात यह है कि इसके खिलाफ अब एक टीका Ixchiq (chikungunya vaccine) मौजूद है, जिससे वायरस को रोकने की उम्मीद थी। लेकिन हाल ही में 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में इसके कुछ खतरनाक असर दिखने के चलते बुज़ुर्गों को यह टीका देने पर फिलहाल रोक लगाई गई है, जिससे बीमारी को काबू करना मुश्किल हो गया है।
चिकनगुनिया के लिए बना यह टीका दुर्बलीकृत वायरस (live attenuated vaccine) से बनाया गया है। इसे पिछले साल कई देशों में 18 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए मंज़ूरी मिली थी, और हाल ही में इसे 12 से 17 साल के किशोरों के लिए भी स्वीकृति मिल गई थी। रीयूनियन द्वीप पर सबसे पहले बुज़ुर्गों, जो कि सबसे अधिक खतरे में होते हैं, को यह टीका दिया भी गया। लेकिन इसके गंभीर दुष्प्रभाव सामने आने लगे।
इन घटनाओं के बाद, युरोपियन मेडिसिन एजेंसी और फ्रांस की स्वास्थ्य एजेंसी ने 65 साल और उससे ऊपर के लोगों के लिए इस टीके के उपयोग पर रोक लगा दी है। जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक अमेरिकी एजेंसी सीडीसी (CDC guidelines) ने भी 60 से ज़्यादा उम्र वालों को टीका न देने की सलाह दी है।
इस बीच, चिकनगुनिया अब सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं रह गई है। फ्रांस में हर हफ्ते करीब 100 मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें ज़्यादातर वे लोग हैं जो रीयूनियन और मॉरिशस से छुट्टी मनाकर लौटे हैं। ऐसे ही अन्य देशों में फैलने का खतरा भी है। पहले भी ऐसा हो चुका है जब यह वायरस भारत तक फैल गया था और यहां 10 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित (chikungunya in India) हुए थे।
बहरहाल, कुछ संकेत मिल रहे हैं कि रीयूनियन में यह प्रकोप अब धीमा पड़ रहा है। जहां पहले प्रति सप्ताह लगभग 20,000 मामले सामने आते थे, वहीं मई की शुरुआत तक घटकर 14,000 हो गए हैं। जनवरी में महामारी घोषित किए जाने के बाद से अब तक लगभग 1,74,000 संदिग्ध मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
यह प्रकोप हमें याद दिलाता है कि पुराने खतरे कभी भी दोबारा लौट सकते हैं, और शायद अधिक ताकतवर होकर। साथ ही, हर समाधान के साथ नई चुनौतियां भी आती हैं। आज दुनिया पहले से कहीं बेहतर तैयार है, लेकिन फिर भी किसी भी महामारी पर काबू पाने के लिए तीन चीज़ें ज़रूरी हैं: तेज़ और समय पर कार्रवाई, स्पष्ट और भरोसेमंद जानकारी और साथ ही ऐसे उपाय जो सभी, खासकर सबसे कमज़ोर लोगों की पहुंच में हों तथा सुरक्षित व असरदार हों। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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