
वैज्ञानिक अब खून की एक सरल जांच विकसित करने के करीब हैं, जिससे क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (CFS) (blood test for Chronic Fatigue Syndrome) या मायाल्जिक एन्सेफेलोमेलाइटिस (ME) (Myalgic Encephalomyelitis diagnosis) का निदान आसानी से किया जा सकेगा। CFS की वजह से लाखों लोग वर्षों तक लगातार थकान और ऊर्जा की कमी से पीड़ित रहते हैं।
ब्रिटेन स्थित युनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (University of East Anglia research) के शोधकर्ताओं के नए अध्ययन में पाया गया कि ME/CFS से पीड़ित लोगों की रक्त कोशिकाओं में एपिजेनेटिक (epigenetic changes in CFS) बदलाव होते हैं। ये ऐसे रासायनिक परिवर्तन हैं जो जीन के काम करने के तरीके को प्रभावित करते हैं, हालांकि जीन की संरचना में कोई बदलाव नहीं होता। दशकों से पहेली बनी इस बीमारी के निदान के लिए यह खोज एक भरोसेमंद परीक्षण विकसित करने में मदद कर सकती है।
गौरतलब है कि CFS दुनिया भर में लगभग 1.7 से 2.4 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है। लेकिन कोई निश्चित जांच न होने के कारण इसे अक्सर पहचाना नहीं जाता या अन्य बीमारियों के साथ जोड़ लिया जाता है। मरीज़ न केवल अत्यधिक थकान से जूझते हैं, बल्कि बदन दर्द, नींद की समस्याएं और एकाग्रता में कठिनाई का सामना भी करते हैं।
डॉ. दिमित्रि पीशेज़ेत्स्की की शोध टीम ने एक विशेष एपिजेनेटिक परीक्षण का इस्तेमाल किया, जिससे यह पता लगाया गया कि प्रतिरक्षा कोशिकाओं (immune cells in ME/CFS) के अंदर डीएनए कैसे व्यवस्थित होता है। 47 गंभीर मरीज़ों और 61 स्वस्थ लोगों के रक्त नमूनों की तुलना में इस परीक्षण ने 96 प्रतिशत मामलों में सही पहचान की, जिससे इसके भविष्य में शक्तिशाली नैदानिक विधि (clinical diagnostic tool) बनने की संभावना है।
अध्ययन में पाया गया कि जीन और एपिजेनेटिक स्तर पर बदलाव प्रतिरक्षा और शोथ प्रतिक्रिया (immune response in CFS) से जुड़े हैं, जो ME/CFS में प्रतिरक्षा प्रणाली के असंतुलन का संकेत देते हैं। ये बदलाव नॉन-कोडिंग डीएनए (non-coding DNA regions) में पाए गए, जो प्रोटीन नहीं बनाते बल्कि अन्य जीन के चालू या बंद होने को नियंत्रित करते हैं।
यह अध्ययन एक बड़ी सफलता (scientific breakthrough in CFS research) है, लेकिन विशेषज्ञों ने और शोध की आवश्यकता जताई है। कॉर्नेल युनिवर्सिटी (Cornell University study) की डॉ. केटी ग्लास, जो स्वयं कभी ME/CFS से पीड़ित रही हैं, ने इसे सराहा लेकिन कहा है कि यह अध्ययन बहुत छोटे स्तर पर हुआ है, इसलिए इसे अभी निदान के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। फिर भी यह लंबे समय से इस अबूझ बीमारी (mystery illness) से जूझ रहे लाखों लोगों के लिए उम्मीद जगाती है। (स्रोत फीचर्स)
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