अनावश्यक गर्भाशय निकालने के विरुद्ध अभियान ज़रूरी

भारत डोगरा

दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने अपने एक निर्णय में निर्देश दिए थे कि बिना चिकित्सीय आवश्यकता के गर्भाशय हटा देने का ऑपरेशन (हिस्टरेक्टोमी – hysterectomy surgery) करने की हानिकारक प्रवृत्ति को रोकना चाहिए एवं इसकी रोकथाम के लिए केंद्र, राज्य, ज़िला एवं क्षेत्रीय स्तर पर व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए।

चिकित्सा विज्ञान (medical science) में यह मान्य है कि कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के चलते गर्भाशय को ऑपरेशन कर हटाया जा सकता है। परंतु यदि ये स्वास्थ्य समस्याएं दवाइयों या अन्य इलाज से ठीक हो जाएं तो बेहतर है, क्योंकि गर्भाशय हटा देने से कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं। अत: गर्भाशय हटाने का ऑपरेशन अंतिम विकल्प (last resort) होना चाहिए।

दूसरी ओर, हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि चिकित्सीय आवश्यकता न होने पर भी गर्भाशय हटाने के ऑपरेशन (uterus removal surgery) किए जा रहे हैं। कई बार ऐसे ऑपरेशन अतिरिक्त धन अर्जन या मुनाफे के लिए किए जाते हैं। यह भी देखा गया कि कुछ बीमा योजनाओं (health insurance schemes) के अंतर्गत ऐसे बहुत से ऑपरेशन कर दिए गए जिनकी चिकित्सीय आवश्यकता नहीं थी।

वर्ष 2010 के आसपास ऐसी प्रवृत्तियां अनेक स्थानों पर दिखाई दीं। इसमें दौसा (राजस्थान) में बड़े स्तर पर होने वाले ऐसे ऑपरेशनों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई थी। ऐसी शिकायतों की जांच की गई व इसके आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श (national discussion) भी हुआ। इसी दौरान डॉ. नरेन्द्र गुप्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में अनावश्यक गर्भाशय हटाने के ऑपरेशनों की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाने की अपील (public interest litigation) की।

इस अपील का दायरा वैसे तो राष्ट्रीय स्तर का था, किंतु इसमें राजस्थान, बिहार व छत्तीसगढ़ राज्यों का उल्लेख विशेष तौर पर था। अत: सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों को नोटिस (legal notice) जारी किए तथा वहां के अधिकारियों ने जांच आरंभ की। इस जांच के आधार पर बिहार की सरकार ने पाया कि इस तरह की हानिकारक प्रवृत्ति अनेक स्थानों पर मौजूद है। वर्ष 2022 में स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) ने इस सम्बंध में दिशानिर्देश जारी किए ताकि इस चिंताजनक प्रवृत्ति पर रोक लग सके।

वर्ष 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इन दिशानिर्देशों को और स्पष्ट रूप से अपने आदेश (court order) में जारी किया। दुर्भाग्यवश, इसके बाद भी इन दिशानिर्देशों को सही भावना में कार्यान्वित नहीं किया जा सका है। उचित क्रियान्वयन के अभाव में आज भी अनावश्यक रूप से गर्भाशय हटाने के गंभीर समाचार मिल रहे हैं।

इस सिलसिले में महाराष्ट्र से गन्ने की कटाई में लगी महिला मज़दूरों (female laborers) के गर्भाशय हटाने का ऑपरेशन किए जाने के जो समाचार मिले हैं, वे विशेष तौर पर चिंताजनक हैं।

अब समय आ गया है कि इस गंभीर विषय (serious issue) पर अधिक सक्रियता दिखाई जाए व इस समस्या को कम करने के जो दिशानिर्देश पहले ही जारी हो चुके हैं, उन्हें कारगर ढंग से लागू किया जाए।

इस समस्या का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि अनुचित ढंग के गर्भाशय निकालने के ऑपरेशन (unnecessary hysterectomy) अधिकतम निर्धन व कम शिक्षित महिलाओं (poor and uneducated women) के हो रहे हैं। उनकी कम जानकारी (lack of awareness) का लाभ उठाकर या उन्हें गलत जानकारी देते हुए यह ऑपरेशन कर दिया जाता है। फिर वर्षों तक महिलाएं इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं (health complications) को झेलती रहती हैं। मेहनतकश महिलाओं (working women) को दैनिक जीवन में वैसे भी स्वास्थ्य समस्याएं अधिक होती हैं, गर्भाशय हटाए जाने से ये और बढ़ जाती हैं।

अनावश्यक गर्भाशय हटाने के ऑपरेशन को रोकना महिला स्वास्थ्य (women’s health) के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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