डिमेंशिया को संभालने में संगीत की भूमिका – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

डिमेंशिया (मनोभ्रंश) लक्षणों का एक समूह है जो स्मृति और चिंतन को प्रभावित करता है और रोज़मर्रा के जीवन में बाधा डालता है। अल्ज़ाइमर रोग मनोभ्रंश का प्रमुख व सबसे बड़ा कारण है। मनोभ्रंश के लक्षणों को कम करने और उसे बढ़ने से रोकने के उपचार चिकित्सकीय हो सकते हैं या योग, श्वसन सम्बंधी व्यायाम, फुर्तीली सैर और मधुर संगीत सुनने जैसे उपाय हो सकते हैं। यह बीमारी वृद्धावस्था से सम्बंधित बीमारी है, जो दुनिया भर में 5.5 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 65 वर्ष से अधिक उम्र के साढ़े छह करोड़ वरिष्ठ नागरिकों में से 2.7 प्रतिशत मनोभ्रंश से प्रभावित हैं (राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल)।

मनोभ्रंश से जंग      

कैलिफोर्निया की एक वेबसाइट बेव्यू सीनियर असिस्टेड लिविंग (Bayview Senior Assisted Living) के एक लेख में मनोभ्रंश को नियंत्रित/कम करने के 13 तरीके सुझाए गए हैं। ये हैं: (1) सांस लेना और छोड़ना – पूरा ध्यान सिर्फ सांस बाहर निकलने पर लगाना, (2) किसी पसंदीदा शांत जगह के बारे में सोचना – यह आपकी शोर-मुक्त बैठक भी हो सकती है, (3) किसी पालतू जानवर की देखभाल करना, (4) मालिश – सप्ताह में एक या दो बार मालिश तनाव से राहत देती है, (5) योग – प्राणायाम मन को शांत करता है, (6) संगीत गाना-बजाना – जवानी के दिनों में जो अच्छा लगा था, (7) कलात्मक रचना और दस्तकारी – बुनाई, पेंटिंग वगैरह, (8) अपनी जगह की प्रतिदिन सफाई करना; यह आपके मस्तिष्क को सक्रिय रखता है और उपलब्धि का एहसास देता है, (9) बागवानी – भले ही सिर्फ फूलदान सवारें, (10) अखबार और किताबें पढ़ना न कि सिर्फ टीवी समाचार सुनना (और कौन बनेगा करोड़पति में पूछे गए सवालों के जवाब देने की कोशिश करना), (11) पहेलियां, वर्ग पहेली, सुडोकू और इसी तरह की पहेलियां सुलझाने के प्रयास करना, और एक नई भाषा सीखना, (12) सादा खाना बनाना (निसंदेह किसी की मदद से), और (13) सलीका बनाना (दराज़, अलमारियों का सामान व्यवस्थित करना), फालतू पुरानी फाइलों और पत्रों की छंटाई भी एक उपलब्धि है!

अवसाद कम करने और अल्ज़ाइमर को टालने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारक क्या हैं? क्या सिर्फ एक भाषा से परिचित होने की तुलना में द्विभाषिता (दो भाषाओं में आसानी से संवाद की क्षमता) या बहुभाषिता मनोभ्रंश कम करने में अधिक फायदेमंद होती है? हैदराबाद के डॉ. सुभाष कौल और डॉ. सुवर्णा अल्लादी ने इसी पहलू पर अध्ययन किया है। अपने अध्ययन में उन्होंने पाया कि मनोभ्रंश से पीड़ित द्विभाषी लोगों में यह विकार एकभाषी लोगों की तुलना में चार साल देर से प्रकट हुआ था।

जैसा कि पता है, भारत के कई हिस्सों में लोग वास्तव में द्विभाषी हैं (वे कम से कम दो भाषाएं बोलते हैं, भले ही पढ़ न पाते हों)। दरअसल, शहरों में काम करने वाले ज़्यादातर लोग ठीक से दो भाषाएं बोल लेते हैं; उनके काम – घरेलू बाइयां, दुकानदार और इसी तरह के अन्य काम – के कारण द्विभाषिता की ज़रूरत पड़ती है। बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च की प्रो. विजयलक्ष्मी रवींद्रनाथ ने इस पहलू पर बेंगलुरु के आसपास के लोगों के सर्वेक्षण के साथ-साथ फंक्शनल एमआरआई (FMRI) की मदद से अध्ययन शुरू किया है। बेशक, एकभाषी वरिष्ठ नागरिकों के लिए दूसरी भाषा सीखना शुरू करना फायदेमंद होगा।

संगीत की भूमिका

एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है संगीत। सिर्फ संगीत सुनना भी उपचारात्मक हो सकता है। सेलिया मोरेनो-मोराल्स और उनके साथियों द्वारा फ्रंटियर्स इन मेडिसिन (लौसाने) में एक पेपर प्रकाशित किया गया है। विषय है मनोभ्रंश के उपचार में संगीत की भूमिका। पूर्व में हुए आठ अध्ययनों के विश्लेषण के आधार पर उनका निष्कर्ष है कि संगीत मनोभ्रंश के लिए एक शक्तिशाली उपचार रणनीति हो सकती है – अकेले भी और अन्य औषधियों के साथ मिलाकर भी (जो मनोभ्रंश की प्रकृति पर निर्भर करेगा)।

संगीत स्मृति

इसी तरह का एक पेपर एम. एच. थॉट और उनके साथियों द्वारा अल्ज़ाइमर डिसीज़ एंड एसोसिएटेड डिसऑर्डर्स पत्रिका में प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है: संज्ञानात्मक विकार से पीड़ित वृद्धजनों में दीर्घकालिक संगीत स्मृति का तंत्रिका आधार। इसमें उन्होंने हल्की संज्ञानात्मक क्षति से ग्रसित 17 लोगों के मस्तिष्क क्षेत्रों का FMRI की मदद से स्कैन किया। इस दौरान वे या तो वे अतीत में उनकी पसंद का संगीत सुन रहे थे या नया रचा गया संगीत सुन रहे थे। निष्कर्ष था कि लंबे समय से परिचित संगीत मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों को सक्रिय करता है। और यह भी पता चला कि संज्ञानात्मक रूप से अक्षम वृद्धजनों में पुरानी स्मृतियां क्यों सलामत रहती हैं। दूसरे शब्दों में, वे इसे पहचानते हैं और इसका आनंद लेते हैं!

भारत में इसी तरह के प्रयोग हरियाणा के मानेसर स्थित नेशनल सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च की प्रो. नंदिनी चटर्जी सिंह की टीम द्वारा किए गए हैं। उन्होंने शास्त्रीय हिंदुस्तानी संगीतकारों का एक समूह बनाया। और जब ये कलाकार गायन-वादन कर रहे थे, तब शोधकर्ताओं ने कलाकारों और श्रोताओं का निरीक्षण किया। इस प्रयोग के बारे में आप https://indscicomm.blog वेबसाइट के पॉडकास्ट अनुभाग में या Emotions in Hindustani Music-Part-2. Podcast पर सुनकर लुत्फ उठा सकते हैं।

लय और ताल

यह सिर्फ धुन का नहीं बल्कि लय, समय और हरकत का भी कमाल है। हममें से जो लोग पुराने फिल्मी गाने सुनते हैं, वे संगीत के सुर-ताल में गलतियों को तुरंत पकड़ लेते हैं। ओंटारियो, कनाडा की प्रोफेसर जेसिका ग्राहन का कहना है कि संगीत पर थिरकना एक नैसर्गिक, अक्सर अनैच्छिक, क्रिया होती है जिसका अनुभव सभी संस्कृतियों के लोग करते हैं। जब मनुष्य संगीत पर मानसिक तौर पर थिरकता है, संगीत और लय की प्रतिक्रिया में मस्तिष्क के गति-सम्बंधी केंद्र सक्रिय हो उठते हैं, तब भी जब हमने एक भी मांसपेशी नहीं हिलाई होती या ज़रा भी शरीरिक हरकत नहीं की होती। वे लोग जिन्हें ताल पर थिरकने में परेशानी होती है क्या वे भी मजबूर महसूस करते हैं? यदि ऐसा है तो डिमेंशिया जैसे तंत्रिका विघटन सम्बंधी विकार से पीड़ित लोगों के लिए संगीत हस्तक्षेप की उत्साहजनक संभावना हो सकती है। तो संगीत को बजने दो! (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://i.ytimg.com/vi/DFuzxFF4uSQ/maxresdefault.jpg

प्रातिक्रिया दे