जलवायु परिवर्तन से वायरल प्रकोपों में वृद्धि की संभावना

हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से अगले 50 वर्षों में स्तनधारी जीवों के बीच वायरस संचरण के 15,000 से अधिक नए मामले सामने आ सकते हैं। ऐसा अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग से वन्यजीवों के प्राकृतवासों में परिवर्तन होगा जिससे रोगजनकों की अदला-बदली करने में सक्षम प्रजातियों के आपस में संपर्क की संभावना बढ़ेगी और वायरस संचरण के मामलों में वृद्धि होगी। इस अध्ययन से यह भी देखा जा सकेगा कि कोई वायरस विभिन्न प्रजातियों के बीच संभवतः कितनी बार छलांग लगा सकता है।

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी की शुरुआत एक कोरोनावायरस के किसी जंगली जीव से मनुष्यों में प्रवेश के साथ हुई थी। प्रजातियों के बीच ऐसे संक्रमणों को ज़ुओनॉटिक संचरण कहते हैं। यदि प्रजातियों के बीच संपर्क बढ़ता है तो ऐसे ज़ुओनॉटिक संचरणों में भी वृद्धि होगी जो मनुष्यों व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए खतरा होगा। ऐसे में सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों को रोगजनकों की निगरानी और स्वास्थ्य-सेवा के बुनियादी ढांचे में सुधार करना ज़रूरी है।

अध्ययन का अनुमान है कि नए वायरस के संचरण की संभावना सबसे अधिक तब होगी जब बढ़ते तापमान के कारण जीवों का प्रवास ठंडे क्षेत्रों की ओर होगा और वे स्थानीय जीवों के संपर्क में आएंगे। यह संभावना ऊंचाई वाले क्षेत्रों और विभिन्न प्रजातियों से समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्रों में सबसे अधिक होगी। ऐसे क्षेत्र विशेष रूप से अफ्रीका और एशिया में पाए जाते हैं जिनमें मुख्य रूप से सहेल, भारत और इंडोनेशिया जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्र शामिल हैं। कुछ जलवायु विशेषज्ञों का मत है कि यदि पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा तो प्रजातियों के बीच प्रथम संपर्क की घटनाएं वर्ष 2070 तक दुगनी हो जाएंगी। ऐसे क्षेत्र वायरस संक्रमण के हॉटस्पॉट बन जाएंगे।

इस अध्ययन के लिए जॉर्जटाउन युनिवर्सिटी के रोग विशेषज्ञ ग्रेगोरी अल्बेरी और उनके सहयोगियों ने एक मॉडल विकसित किया और लगभग 5 वर्षों तक कई अनुकृतियों के साथ परीक्षण किए। जलवायु-परिवर्तन के विभिन्न परिदृश्यों में वायरस संचरण और प्रजाति-वितरण के मॉडल्स को जोड़कर देखा। प्रजाति-वितरण मॉडल की मदद से यह बताया जा सकता है कि पृथ्वी के गर्म होने की स्थिति में स्तनधारी जीव किस क्षेत्र में प्रवास कर सकते हैं। दूसरी ओर, वायरस-संचरण मॉडल से यह देखा जा सकता कि प्रथम संपर्क होने पर प्रजातियों के बीच वायरस के छलांग लगाने की क्या संभावना होगी।

गौरतलब है कि इस तरह के पूर्वानुमान लगाने के लिए कभी-कभी अवास्तविक अनुमानों को शामिल करना होता है। जैसे एक अनुमान यह भी लगाना पड़ा कि जलवायु परिवर्तन के चलते प्रजातियां कितनी दूर तक फैल सकती हैं। लेकिन यह अनुमान लगाना मुश्किल था कि स्तनधारी जीव अपने मूल आवास के साथ कितना अनुकूलित हो जाएंगे या उन्हें भौगोलिक बाधाएं पार करने में कितनी मुश्किल होगी। ये दोनों बातें प्रवास को प्रभावित करेंगी।

इस अध्ययन में चमगादड़ों पर विशेष ध्यान दिया गया। चमगादड़ वायरसों के भंडार के रूप में जाने जाते हैं और कुल स्तनधारियों में लगभग 20 प्रतिशत चमगादड़ हैं। इसके अलावा चमगादड़ उड़ने में भी सक्षम होते हैं इसलिए उन्हें प्रवास में कम बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

हालांकि कई विशेषज्ञों ने इस अध्ययन की सराहना की है लेकिन साथ ही उन्होंने इसके आधार पर मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों का निष्कर्ष निकालने को लेकर चेतावनी भी दी है। स्तनधारी जीवों से मनुष्यों में वायरस की छलांग थोड़ा पेचीदा मसला है क्योंकि यह एक जटिल पारिस्थितिकी और सामाजिक-आर्थिक वातावरण में होता है। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवा में सुधार या किसी वजह से वायरस द्वारा मनुष्यों के संक्रमित न कर पाना जैसे कारक मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले जोखिम को कम कर सकते हैं। फिर भी शोधकर्ता इस विषय में जल्द से जल्द ठोस कार्रवाई के पक्ष में हैं। देखा जाए तो पृथ्वी पहले से ही पूर्व-औद्योगिक तापमान से 1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो चुकी है जिसके नतीजे में विभिन्न प्रजाति के जीवों में प्रवास और रोगाणुओं की अदला-बदली जारी है। सुझाव है कि खासकर दक्षिण पूर्वी एशिया के जंगली जीवों और ज़ुओनॉटिक रोगों की निगरानी की प्रक्रिया को तेज़ करना चाहिए। स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार लाना भी आवश्यक है। (स्रोत फीचर्स) 

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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