नए उपचारों के लिए प्रकृति का सहारा – डॉ. डी. बालसुब्रमण्यम, सुशील चंदानी

चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के लिए ऐसी नई-नई औषधियों की आवश्यकता होती है जिनमें वांछित जैविक गुणधर्म हों। आशावादी सोच यह है कि विभिन्न तकनीकी मोर्चों पर तीव्र प्रगति के चलते नई दवाइयों की खोज और निर्माण आसान होता जाएगा।

आणविक स्तर पर रोग प्रक्रियाओं की बढ़ती समझ ने औषधियों के संभावित लक्ष्यों की एक लंबी सूची उपलब्ध कराई है। कंप्यूटर की मदद से ‘तर्कसंगत ड्रग डिज़ाइन’, कार्बनिक रसायन शास्त्रियों द्वारा इन कंप्यूटर-जनित औषधियों को बनाया जाना, और फिर त्वरित गति से इनकी जांच – जिसमें औषधियों के परीक्षण के लिए ऑटोमेशन का उपयोग किया जाता है – ने नई खोजों में सहायता की है। फिर भी, नई दवाइयों का वास्तविक चिकित्सकीय उपयोग करने की गति अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।

प्राकृतिक उत्पाद

हमारे आसपास की प्राकृतिक दुनिया नए उपचारों का एक जांचा-परखा स्रोत रही है – पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली हमेशा से प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर थी। प्राकृतिक उत्पाद ऐसे रसायन होते हैं जो मिट्टी और पानी में पनपने वाले पौधों और सूक्ष्मजीवों में पाए जाते हैं।

1946 में हुए कैंसर-रोधी दवा के पहले क्लीनिकल परीक्षण से लेकर 2019 तक के सभी स्वीकृत कैंसर-रोधी औषधीय अणुओं में से 40 प्रतिशत अणु या तो प्रकृति में पाए जाने वाले पदार्थ हैं, या प्राकृतिक उत्पादों से प्राप्त किए गए हैं। इसी प्रकार से, 1981-2019 के दौरान की 162 नए एंटीबायोटिक उपचारों में से आधे या तो शुद्ध प्राकृतिक उत्पाद हैं या प्रकृति-व्युत्पन्न हैं यानी कि वे प्रयोगशालाओं में डिज़ाइन किए गए हैं लेकिन प्रकृति में पाए जाने वाले अणुओं के लगभग समान हैं (न्यूमैन व क्रैग, जर्नल ऑफ नेचुरल प्रोडक्ट्स, 2020)।

मसलन एज़िथ्रोमाइसिन नामक एंटीबायोटिक। इसे पहली बार क्रोएशिया स्थित ज़ग्रेब के रसायनज्ञों द्वारा संश्लेषित किया गया था। उन्होंने बड़ी चतुराई से प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली और आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक एरिथ्रोमाइसिन-ए के अणु में एक अतिरिक्त नाइट्रोजन परमाणु जोड़ा था। एरिथ्रोमाइसिन के साइड प्रभावों की तुलना में इस संश्लेषित दवा के साइड प्रभाव कम थे, और आज यह चिकित्सकों द्वारा लिखी जाने वाली सबसे आम एंटीबायोटिक दवाओं में से एक है। इसके विपरीत, 1981 से 2019 के बीच अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन को नए रासायनिक पदार्थों के रूप में प्रस्तुत सभी 14 हिस्टामाइन-रोधी दवाइयां (जैसे सिट्रेज़िन) शुद्धत: संश्लेषित आविष्कार हैं।

कई शक्तिशाली प्राकृतिक उत्पाद अपने मूल स्रोत में अत्यल्प मात्रा में मौजूद होते हैं, जिसके चलते प्रयोगशाला में जांच के लिए इनकी पर्याप्त मात्रा एकत्र करना मुश्किल हो जाता है। ये दर्जनों अन्य रासायनिक पदार्थों के साथ पाए जाते हैं, इसलिए वांछित अणु को ढूंढ निकालना सहज-सरल नहीं होता। इसके लिए श्रमसाध्य पृथक्करण प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। एक तरीका है कि प्रारंभिक परिणामों के आशाजनक होने के बाद वांछित अणु का अधिक मात्रा में संश्लेषण किया जाए।

पुरानी दवाओं का नया रूप

पारंपरिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त दवा से एक नई संभावित दवा तैयार करने का उदाहरण हाल ही में स्क्रिप्स रिसर्च के स्टोन वू और रयान शेनवी द्वारा नेचर पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। दक्षिण प्रशांत में पापुआ न्यू गिनी द्वीप पर गलबुलिमिमा पेड़ की छाल का उपयोग लंबे समय तक दर्द और बुखार के इलाज में किया जाता था। चूंकि यह भ्रांतिजनक भी है, इसका उपयोग अनुष्ठानों में भी किया जाता है। जब इसे होमालोमेना झाड़ी की पत्तियों के साथ लिया जाता है तो यह मदहोशी पैदा करता है, एक शांत स्वप्न जैसी अवस्था को लाता है जिसके बाद सुखद नींद आती है। होमलोमेना (हिंदी में सुगंधमंत्री) भारत में पाई जाती है, और पारंपरिक रूप से कई बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता रहा है। गलबुलिमिमा ने दशकों से औषधीय रसायनज्ञों को आकर्षित किया है। इस पेड़ के अर्क में 40 अद्वितीय अल्केलॉइड पहचाने गए हैं। अल्केलॉइड कुनैन और निकोटीन जैसे नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक हैं जो कई पौधों में पाए जाते हैं।

वू और शेनवी ने जटिल ज्यामितीय संरचना वाले अल्केलॉइड GB18 के संश्लेषण करने का एक कार्यक्षम तरीका खोज निकाला है। उनकी विधि से GB18 का कुछ ग्राम में उत्पादन किया जा सकता है। छाल में इसकी उपस्थिति मात्र अंश प्रति मिलियन (पीपीएम) होती है। परीक्षणों में पता चला है कि यह ओपिऑइड (अफीमी औषधि) ग्राहियों का रोधी है।

मानव शरीर में ओपिऑइड ग्राही तंत्रिका तंत्र और पाचन तंत्र में पाए जाते हैं। हमारे शरीर में एंडॉर्फिन जैसे ओपिऑइड बनते हैं, जो इन ग्राहियों से जुड़ जाते हैं और दर्द संकेतों के संचरण को कम करते हैं। एंडॉर्फिन में मॉर्फिन जैसे दर्दनाशक गुण होते हैं। एंडॉर्फिन आनंद की अनुभूति भी कराते हैं। इन दोनों बातों से समझ में आता है कि ओपिऑइड ग्राहियों को सक्रिय करने वाले पदार्थों की लत क्यों लगती है।

GB18 दर्द की अनुभूति को प्रभावित नहीं करता है लेकिन इसका संज्ञानात्मक प्रभाव पड़ता है – चूहे अपने बालों और मूंछों को संवारने जैसे व्यवहारों में कम समय व्यतीत करने लगते हैं।

ओपिऑइड ग्राहियों का अंतिम रोधी नाल्ट्रेक्सोन था जिसे 35 साल पहले खोजा गया था। भारत में यह नोडिक्ट और नलटिमा जैसे ब्रांड नामों से बिकता है और इसका उपयोग अफीमी दवाओं के साथ-साथ शराब की लत के प्रबंधन में किया जाता है। और चूंकि अफीमी औषधियों के ग्राही पाचन तंत्र में पाए जाते हैं, नाल्ट्रेक्सोन मोटे लोगों में वज़न घटाने में भी मदद करता है।

GB18 और इससे निर्मित कई संभावित अणुओं के उपयोग क्या होंगे? आगे बहुत काम किया जाना बाकी है, और कई रोमांचक चिकित्सकीय संभावनाएं नज़र आ रही हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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