
पांच साल के लिए शुरू किए गए MethaneSAT मिशन को अभी 15 महीने ही हुए थे कि अचानक 20 जून को धरती से इसका संपर्क टूट गया। इस उपग्रह को धरती पर हो रहे मीथेन (methane emissions) उत्सर्जन का पता लगाने के लिए बनाया गया था, लेकिन अब इसके खामोश हो जाने से जलवायु (climate monitoring) पर नज़र रखने की वैश्विक कोशिशों को एक बड़ा झटका लगा है। इस उपग्रह को एनवायरनमेंटल डिफेंस फंड (EDF) नामक गैर-मुनाफा संस्था (non-profit organization) ने 754 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया था।
गौरतलब है कि मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस (greenhouse gas) है, जिसका तापमान बढ़ाने वाला असर पिछले 20 वर्षों में बराबर मात्रा की कार्बन डाईऑक्साइड से 80 गुना अधिक पाया गया है। आम तौर पर मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत दलदली क्षेत्र हैं, लेकिन सबसे अधिक उत्सर्जन तेल और गैस की रिसती पाइपलाइनों (leaking oil and gas pipelines) से होता है। इन रिसन को रोकना ग्लोबल वॉर्मिंग (global warming) को धीमा करने का तेज़ और सस्ता तरीका माना जाता है, और MethaneSAT इन्हीं रिसावों को पहचानने के लिए अंतरिक्ष में भेजा गया था।
आम तौर पर मौजूदा उपग्रह या तो बहुत बड़े इलाके पर मोटी-मोटी नज़र रखते हैं, या फिर केवल बड़े और स्पष्ट गैस रिसाव (major gas leaks) को पकड़ पाते हैं। लेकिन MethaneSAT समस्त तेल और गैस फील्ड को इतनी बारीकी (अच्छे रिज़ॉल्यूशन – high resolution imaging) से स्कैन करने में सक्षम था कि वह बहुत छोटे उत्सर्जन (minor methane leaks) को भी पकड़ सकता था। यह 2 पार्ट प्रति बिलियन जितनी कम मीथेन सांद्रता को भी भांप सकता था।
इस उपग्रह की एक और खास बात यह थी कि यह सरकारी या निजी कंपनी की बजाय एक गैर-मुनाफा संस्था (NGO) (EDF) द्वारा संचालित किया जा रहा था। वैज्ञानिकों ने इसे जनहित में अंतरिक्ष विज्ञान (space-based climate tracking) का एक नया मॉडल बताया था। हालांकि यह उपग्रह कम समय में बंद हो गया लेकिन इसके पहले वर्ष के डैटा (satellite data analysis) का विश्लेषण अभी जारी है और इससे नए उत्सर्जन सामने आने की संभावना है, जिन पर पहले ध्यान नहीं गया था।
सबसे अहम बात यह है कि MethaneSAT से मिले डैटा को समझने के लिए विकसित उपकरण और एल्गोरिद्म (AI-based detection tools) भविष्य के मिशनों में काम आ सकते हैं। जैसे कि जापान का नया उपग्रह GOSAT-GW, जिसे हाल ही में लॉन्च किया गया है, इन तकनीकों का फायदा उठा सकता है। इसी तरह, कार्बन मैपर (Carbon Mapper satellite) जैसी संस्थाएं भी मीथेन पर निगरानी (methane surveillance) के काम को आगे बढ़ा रही हैं, हालांकि उनके उपग्रहों में MethaneSAT जैसी बड़ी रेंज की क्षमता नहीं है।
फिलहाल EDF टीम थोड़ा समय लेकर दोबारा ऐसा मिशन शुरू करने की योजना पर विचार कर रही है। बहरहाल, MethaneSAT एक प्रेरणा का स्रोत (inspirational satellite mission) है और उसके द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचनाएं अब भी अंतरिक्ष से जलवायु निगरानी (space climate observation) के भविष्य को दिशा दे सकती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://c.files.bbci.co.uk/f998/live/56ea7ff0-581d-11f0-960d-e9f1088a89fe.jpg