प्रज्ज्वल शास्त्री

मेरा जन्म स्पुतनिक उपग्रह प्रक्षेपण (Sputnik satellite launch) के एक साल बाद हुआ था। बचपन मैंगलोर के पास के एक छोटे कस्बे में बीता। बचपन की सबसे मीठी यादों में से एक है – बगीचे में चटाई पर लेटकर रात के आसमान (night sky) को निहारना। उन दिनों आकाशगंगा (मिल्की-वे – Milky Way galaxy) साफ दिखाई देती थी, उल्कापात (‘टूटते तारे’), और तारों के बीच कृत्रिम उपग्रह धीरे-धीरे आगे बढ़ते नज़र आते थे। एक बार मैंने एक धूमकेतु (comet) भी देखा था, जिसे मैंने घंटों तक निहारा और आम के पेड़ के साथ उसकी तस्वीर भी बनाई। ब्रह्मांड की ये झलकियां मुझे रोमांचित करती थीं। सात साल की उम्र में इस बात का दुख हुआ कि इंसान अब तक चंद्रमा पर नहीं पहुंचा था। बहरहाल, यूरी गागरिन (Yuri Gagarin) मेरे बचपन के हीरो बन गए, और वेलेंटीना तेरेश्कोवा का नाम तो हर किसी की ज़ुबान पर था। मैं अक्सर कल्पना करती कि एक दिन मैं भी अंतरिक्ष यान में काम करने वाली वैज्ञानिक बनूंगी।
मेरे तर्कवादी अभिभावकों ने मुझे विज्ञान की कई रोचक किताबें लाकर दीं। उनमें से एक किताब थी एटम्स, जिसमें रदरफोर्ड के मशहूर प्रयोग (Rutherford experiment) का सुंदर चित्रण था। इसमें सोने के पतले पतरे पर अल्फा-कणों की बौछार की गई थी, और उनमें से कुछ ही कण टकराकर वापस लौटे थे। इसका मतलब था कि वास्तविक परमाणु बहुत छोटा होता है और परमाणु का अधिकांश भाग खाली होता है। इस प्रयोग की खूबसूरती ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला।
जब मैं ग्यारह साल की थी, तब मेरे पिता ने मुझे इवान येफ्रेमोव लिखित एक विज्ञान-कथा उपन्यास एंड्रोमेडा (Andromeda) पढ़ने के लिए दिया। यह अंतरिक्ष अन्वेषण (space exploration), ग्रहों के बीच संपर्क और विभिन्न जीवन रूपों की एक रोमांचक कहानी है, जिसमें एक नई ‘सामाजिकता’ का भी चित्रण किया गया है: जेंडर से परे लोगों के बीच घनिष्ठ और स्वच्छंद रिश्ते, निश्छल विज्ञान और प्रौद्योगिकी (science and technology) की शक्ति पर विश्वास, साथ ही सभी लोगों के लिए समानता। एंड्रोमेडा ने मेरे लिए एक आदर्श संसार का निर्माण किया था।
किशोरावस्था में प्रवेश करने पर मेरी मां ने मुझे ईव क्यूरी द्वारा लिखित मारिया स्क्लोदोव्स्का क्यूरी (मैरी क्यूरी – Marie Curie) की जीवनी पढ़ने को दी, जिसमें पियरे क्यूरी के साथ उनकी बौद्धिक और भावनात्मक साझेदारी का वर्णन था। मुझे नहीं मालूम कि इस किताब ने मेरे करियर के चुनाव पर कोई प्रभाव डाला या नहीं, लेकिन मैरी क्यूरी का अपनी विज्ञान कक्षा में एक महिला (woman scientist) के रूप में अलग दिखना मेरे लिए चौंकाने वाला था। शायद यह मेरे लिए वैज्ञानिक दुनिया में लिंग भेदभाव (gender bias in science) का पहला एहसास था।
मेरे स्कूल में कई शिक्षक थे जिन्होंने अपनी सूझबूझ और निष्ठा के साथ मुझे शिक्षा का आनंद दिया, चाहे वह इतिहास की कहानी हो, कन्नड़ व्याकरण की जटिल पहेलियां हो, या फिर गणितीय तर्क (mathematical reasoning)। कॉलेज ने मुझे चुनने की ज़रूरत का एहसास कराया : विज्ञान और गणित बनाम इतिहास और राजनीति विज्ञान। मैं दोनों संकाय पढ़ना चाहती थी। अंतत: मैंने विज्ञान और गणित (science and mathematics) को चुना, क्योंकि इसमें मुझे बाद में विषय बदलने का मौका था, जबकि दूसरा विकल्प चुनने पर मैं ऐसा नहीं कर पाती!
मेरे कॉलेज के हर शिक्षक अपने विषय के प्रति जोश से भरे हुए थे, जिन्होंने हमेशा परिणाम की बजाय प्रक्रिया को अधिक महत्व दिया, चाहे वह गणित की कोई समस्या को हल करना हो, पौधों का वर्गीकरण करना हो, सोडियम की दोहरी वर्णक्रम रेखाओं (सोडियम डबलेट) की माप लेना हो या तिलचट्टे का विच्छेदन करना हो। मैंने अपने छोटे शहर के कॉलेज में जिस तरह से सैद्धांतिक कार्य के बराबर महत्व अनुभवजन्य/प्रायोगिक काम को देना सीखा, वैसा माहौल बाद में मुझे बड़े संस्थानों में नहीं मिला।
तब तक मुझे यह स्पष्ट हो गया था कि मुझे भौतिकी (physics) में आगे बढ़ना है। गणित की भाषा में व्यक्त होता बुनियादी विज्ञान, भौतिकी, मेरा पसंदीदा था, और जिसे प्रयोगशाला (laboratory) नामक ‘बहुत मज़ेदार जगह’ में परखा भी जा सकता था। बचपन का अंतरिक्ष यान पर सवार वैज्ञानिक बनने का जो मासूम सपना था, वह अब धुंधला हो गया था। क्योंकि अव्वल तो, हम (भारत) बमुश्किल ही अंतरिक्ष में कोई अंतरिक्ष यान भेज रहे थे! और दूसरा, अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए वायुसेना की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता, जो मुझे थोड़ा कठिन लगता था।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (IIT Bombay) में मास्टर डिग्री के लिए भौतिकी कार्यक्रम में प्रवेश करना काफी रोमांचक था। एकमात्र महिला हॉस्टल में रहते हुए मुझे बहुत सी ऐसी महिलाएं मिलीं, जो भौतिकी या विज्ञान के प्रति मेरी तरह का उत्साह रखती थीं। आईआईटी के भौतिकी समूह में शामिल होकर, पी.एचडी. (PhD in Physics) करना एक स्वाभाविक अगला कदम था।
मैं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में प्रवेश करके परमाणु भौतिकी (nuclear physics) में प्रयोग करना चाहती थी। इसकी प्रेरणा मुझे आईआईटी के पसंदीदा शिक्षक पी. पी. काने से मिली। उन्होंने मुझे शोध की दुनिया से परिचित कराया, और उनका यह विचार मुझे बहुत आकर्षक लगा कि प्रयोगशाला में समीकरणों को लागू करना न केवल मज़ेदार है, बल्कि इससे कुछ ऐसा भी खोजा जा सकता था जो अब तक अज्ञात है। हालांकि, टीआईएफआर के अनुभव ने मुझे यह महसूस कराया कि खगोल भौतिकी (astrophysics) ही मेरे लिए सबसे उपयुक्त विकल्प है। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि एक शौक कभी एक पेशा बन जाएगा! एक ओर, इसमें अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करके ब्रह्मांड की खोजबीन की जाती है – जो उस आसमान की छवि में कई आयाम जोड़ती है, जिसे मैं बगीचे में चटाई पर लेटकर देखा करती थी। दूसरी ओर, आकाश देखने में तो बहुत जटिल लगता था, फिर भी उसे भौतिकी के नियमों के अनुसार समझा जा सकता था। मैं पूरी तरह से इन सब से हैरान थी।
विजय कपाही को मेंटर (mentor) के रूप में पाना सबसे बेहतरीन अनुभवों में से एक था। उन्होंने सक्रिय निहारकाओं (active galaxies) की कार्यप्रणाली में मेरी रुचि जगाई। ये ब्रह्मांड की सबसे शक्तिशाली शय होती हैं, और अत्यंत विशाल ब्लैक होल्स (supermassive black holes) की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से संचालित होती हैं। विजय ने निहारिकाओं के रहस्यों को जज़्बे और मस्ती के साथ हल किया, जो एक प्रेरणादायक नज़रिया था। वे शोधार्थियों और सहकर्मियों के साथ पूरी तरह से लिंग-निरपेक्ष थे, ऐसा नज़रिया तब भी बिरला था और आज भी दुर्लभ है।
इंजीनियर से पर्यावरण वैज्ञानिक बने मेरे जीवनसाथी ने हमें एक साथ बढ़ने और नए दृष्टिकोणों की खोज करने का मौका दिया। इस अनुभव से मुझे विज्ञान को लेकर बचपन की समझ से आगे बढ़कर कहीं अधिक समालोचनात्मक समझ मिली। हाल ही में एक पुराने कॉलेज मित्र ने मुझे 1974 में भारत के पहले परमाणु ‘अंत:स्फोट’ को लेकर मेरा उत्साह याद दिलाया – और यह एहसास दिलाया कि तब मैंने ‘परमाणु के शांतिपूर्ण उपयोग’ पर कितनी मासूमियत से विश्वास कर लिया था। मैं यह मानती थी कि विज्ञान और वैज्ञानिक मानवता को समृद्धि और समानता की ओर ले जाएंगे। लेकिन अंतत: विज्ञान एक मानवीय उद्यम है, जो सामाजिक प्रक्रियाओं से आकार लेता है, और इसके कामकाज में सभी मानवीय दोष शामिल होते हैं। ‘वस्तुनिष्ठता’ पर गर्व करने वाले इस उद्यम में महिला वैज्ञानिकों की अत्यधिक कम संख्या, इस तथ्य का एक क्लासिक उदाहरण है। मेरे लिए, यह मानना कितना स्वाभाविक और सामान्य है कि अन्य महिलाएं भौतिकी के प्रति उत्साही हैं! लेकिन कैसे मेरे सहकर्मियों के लिए भी यह मानना उतना ही स्वाभाविक होता है कि भौतिकी करने वाली महिला जीवनसाथी मिलने तक यह सब ‘टाइमपास’ के लिए करती हैं!! मैं उस दिन के इंतज़ार में हूं जब मेरा (या किसी का भी) जेंडर केवल उतना ही महत्वपूर्ण रहेगा जितना कि उसकी पसंदीदा किताबें। कोई आश्चर्य नहीं कि मैं एंड्रोमेडा पुस्तक के आदर्शलोक के बारे में सोचती हूं, जहां लोगों के बीच लिंग की परवाह किए बिना स्वस्थ और उन्मुक्त रिश्ते हों।
फिर भी, आकाशगंगाओं (galaxies) के केंद्रों में विशाल ब्लैक होल (black hole) के चारों ओर पदार्थों का नृत्य, निहित चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) और आग की लपटें, जो लगभग प्रकाश की गति (speed of light) से निकलती हैं, मुझे मुग्ध करते रहते हैं। ये प्रक्रियाएं वर्णक्रम की हर तरंगदैर्घ्य में प्रकट होती हैं। इसका मतलब है कि इसमें कई उपविषयों के भौतिक सिद्धांत काम में आते हैं। अर्थात जैसा कि टेर हार ने कहा है, खगोलभौतिकी “सामान्यतावादी का आखिरी ठिकाना” है। इसका मतलब यह भी है कि आपको पृथ्वी और अंतरिक्ष दोनों पर दूरबीन के साथ काम करना पड़ता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग होता है और आप एक वैश्विक और सम्बद्ध समुदाय का हिस्सा बन जाते हैं। परिकल्पनाओं का परीक्षण करने के लिए नियंत्रित प्रयोगों की कमी भी रोमांच को बढ़ाती है। असली मज़ा उन आधुनिक उपकरणों और जटिल गणितीय तकनीकों का उपयोग करने में है, जो ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने में मदद करते हैं। सुंदर छवियां जनमानस की कल्पना को आकर्षित करती हैं, जिससे खगोलभौतिकी वैज्ञानिक मानसिकता को बढ़ावा देने का एक शानदार उपकरण बन जाता है। खगोलभौतिकी जीवन को समझने का भी एक प्यारा तरीका है – यह हमें लगातार याद दिलाता है कि हम वैज्ञानिक और प्रकृति प्रेमी हैं जो उसकी सुंदरता को समझने की कोशिश करते हैं। अंतत:, बगीचे में चटाई पर रात का आकाश (night sky observation) देखने का आकर्षण उस समय और बढ़ जाता है जब हम उसकी कार्यप्रणाली को समझ पाते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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