डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

कार्मेलो विकारियो एवं उनके साथियों ने फ्रंटियर्स इन साइकोलॉजी पत्रिका (Frontiers in Psychology) के जुलाई 2025 के अंक में एक शोधपत्र प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक था ‘Timing Matters! Academic assessment changes throughout the day’ (समय मायने रखता है! शैक्षणिक मूल्यांकन दिन भर बदलता रहता है)।
इस अध्ययन में उन्होंने संपूर्ण इटली के 1,04,552 विद्यार्थियों के शैक्षणिक प्रदर्शन का विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जो कहता है कि परीक्षा का समय मायने रखता है। अध्ययन में पाया गया कि सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच आयोजित परीक्षाओं के परिणाम (exam results) बहुत अच्छे आए थे, और उनमें मध्यान्ह (12 बजे) के आसपास आयोजित परीक्षाएं सबसे अच्छी रहीं। जबकि सुबह 8 से 9 बजे के बीच और दोपहर 2 से 5 बजे के बीच आयोजित परीक्षाओं के परिणाम खराब रहे।
यानी नतीजों पर इस बात का असर पड़ता है कि महत्वपूर्ण निर्णय दिन के किस समय लिए गए हैं। ग्राफ पर परीक्षा में सफलता दर (success rate) घंटाकार वक्र रेखा के रूप में प्रदर्शित हुई थी, जिसके शिखर पर मध्यान्ह (12 बजे) का समय था। अर्थात, यदि सुबह 11 बजे या दोपहर 1 बजे परीक्षा हो तो उत्तीर्ण होने की संभावना में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन यदि परीक्षा सुबह 8-9 बजे या दोपहर 3-4 बजे ली जाती है तो उत्तीर्ण होने की संभावना अपेक्षाकृत कम हो जाएगी। उत्तीर्ण होने की संभावना सुबह और देर दोपहर में बराबर थी।
इस अध्ययन के एक सह लेखक बोलोग्ना विश्वविद्यालय के प्रोफसर एलेसियो एवेनंती का कहना है कि “इन निष्कर्षों के व्यापक निहितार्थ हैं। ये नतीजे इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे जैविक लय (biological rhythms) महत्वपूर्ण मूल्यांकन परिणाम (assessment results) को सूक्ष्म रूप से लेकिन काफी प्रभावित कर सकती है जबकि इस बात को अक्सर निर्णय लेने के संदर्भ में अनदेखा कर दिया जाता है।”
हालांकि अध्ययन में इस पैटर्न के पीछे के क्रियाविधि का खुलासा नहीं किया गया है; लेकिन दोपहर के समय उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों की संख्या में अधिकता इस बात के प्रमाण के समान है कि संज्ञानात्मक प्रदर्शन (cognitive performance) सुबह के दौरान बेहतर होने लगता है और दोपहर के दौरान कम होता जाता है। देर-दोपहर में विद्यार्थियों के ऊर्जा स्तर में गिरावट के कारण उनकी एकाग्रता कम हो सकती है, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। प्रोफेसर/शिक्षक भी (जांच के दौरान) निर्णय लेने में थकान का अनुभव कर सकते हैं, जिसके कारण उत्तरों मूल्यांकन प्रभावित हो सकता है।
वहीं, सुबह के समय में खराब परिणाम क्रोनोटाइप (chronotype) या जैविक घड़ी की विविधता के कारण हो सकते हैं। 20 की उम्र के लोग आम तौर पर रात में जागने वाले होते हैं, जबकि 40 या उससे ज़्यादा उम्र के लोग सुबह जल्दी उठने वाले होते हैं। यानी जब प्रोफेसर/शिक्षक सबसे ज़्यादा चेतन/फुर्तीले हैं तब विद्यार्थी उनींदे से होते हैं: नतीजा होता है संज्ञानात्मक प्रदर्शन में गिरावट।
इटली के मेसिना विश्वविद्यालय के डॉ. विकारियो का सुझाव है कि दिन के समय के प्रभावों (time of day effect) का मुकाबला करने के लिए, विद्यार्थियों को अच्छी नींद लेना चाहिए, दिन के जिस समय वे खुद को सबसे कम ऊर्जावान महसूस करते हैं उस दौरान महत्वपूर्ण परीक्षाओं/साक्षात्कार रखने से बचना चाहिए, परीक्षा से पहले दिमाग को आराम देने जैसी रणनीतियां अपनाना चाहिए; और संस्थानों द्वारा सत्र देर-सुबह शुरू करने या प्रमुख मूल्यांकन देर-सुबह रखने से परिणाम में सुधार हो सकता है।
लेकिन शैक्षणिक प्रदर्शन (student performance) पर दिन के समय के प्रभाव को पूरी तरह से समझने और वाजिब मूल्यांकन सुनिश्चित करने के तरीके विकसित करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है।
शोध पत्र के वरिष्ठ लेखक मेस्सिना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मासिमो मुच्चियार्डी का कहना है कि अध्ययन में “हम अन्य कारकों को पूरी तरह से शामिल नहीं कर पाए हैं। जैसे हम विद्यार्थियों या परीक्षकों के विस्तृत डैटा (जैसे सोने-जागने की आदतें, तनाव या जैविक लय सम्बंधी जानकारी) (student data) नहीं हासिल कर पाए। यही कारण है कि हम अंतर्निहित तंत्रों को उजागर करने के लिए शारीरिक या व्यवहारिक कारकों को शामिल कर आगे के अध्ययनों का सुझाव देते हैं।”
हालांकि यह शोध इटली में हुआ है, लेकिन इसके निष्कर्ष भारत (India study relevance) में भी भलीभांति लागू हो सकते हैं। भारत में भी कई प्रवेश परीक्षाएं आम तौर पर सुबह और दोपहर के समय में आयोजित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, कॉमन युनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET exam) दो स्लॉट में आयोजित किया जाता है – सुबह 9-12 बजे और दोपहर 3-6 बजे। यदि हम उपरोक्त इतालवी अध्ययन को देखें, तो स्लॉट सुबह 9-11 बजे और दोपहर 12-2 बजे के बीच रखना बेहतर परिणाम दे सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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