
कल्पना कीजिए एक धातु की चादर (metal sheet) की जो मात्र प्रकाश की शक्ति (light energy) से उड़ती जा रही है। कल्पना की उड़ान थोड़ी ज़्यादा ही लगती है लेकिन वैज्ञानिकों ने हथेली की साइज़ की एक छिद्रमय झिल्ली बनाई है जो ऊपरी वायुमंडल (upper atmosphere) में लगातार उड़ती रह सकती है। इसकी उड़ान का राज़ है इसकी दोनों सतहों पर तापमान का अंतर। इसका खुलासा नेचर के हालिया अंक में किया गया है।
दरअसल, हारवर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के मटेरियल्स इंजीनियर बेन शेफर ऐसे उपकरण की तलाश में थे जो पृथ्वी के वायुमंडल के 50 से 80 किलोमीटर ऊंचाई वाले हिस्से की तहकीकात कर सके। इस परत को मीसोस्फीयर (मध्यमंडल – (mesosphere)) कहते हैं। मीसोस्फीयर में वायुमंडल इतना घना है कि वहां कृत्रिम उपग्रह (artificial satellites) नहीं रह सकते लेकिन इतना घना भी नहीं है कि हवाई जहाज़ उड़ सकें।
कुछ साल पहले पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय (Pennsylvania University) के इंजीनियर आइगॉर बार्गेटिन के दल ने इस समस्या के समाधान के लिए एक विचार प्रस्तुत किया था। इसमें फोटोफोरेसिस (photophoresis) नामक एक भौतिक प्रभाव के उपयोग की बात थी। पोटोफोरेसिस का मतलब होता है प्रकाश-प्रेरित गति (light induced motion)। इसका सबसे बढ़िया प्रदर्शन क्रुक्स रेडियोमीटर (Crookes radiometer) में दिखता है (देखने के लिए: https://en.wikipedia.org/wiki/Crookes_radiometer#/media/File:Radiometer_9965_Nevit.gif)। कांच के एक खोखले गोले में लगभग निर्वात की स्थिति पैदा की जाती है और अंदर एक चकरी लगी होती है, जिसकी चारों भुजाओं पर एक पतली चादर लगी होती है। इनके आसपास प्रकाश के ज़रिए तापमान में फर्क पैदा करने पर चकरी को घुमाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाता है। बार्गेटिन ने बताया था कि उन्होंने ऐसे फोटोफोरेटिक उड़ान में समर्थ एक छोटा-सा यंत्र बना लिया है। लेकिन वह बहुत ही छोटा था।
शेफर की टीम ने जो यंत्र (device) बनाया है उसमें एल्युमिनियम ऑक्साइड (aluminium oxide) की दो छिद्रित चादरों को बीच में खूंटे लगाकर आपस में जोड़ दिया गया है। ये दोहरी चादरें एक ओर प्रकाश अवशोषित करती हैं जबकि दूसरी सतह से उसे उत्सर्जित कर देती हैं। इसके चलते तापमान में जो अंतर पैदा होता है वह ऊपरी वायुमंडल में विरल हवा में धाराएं उत्पन्न कर सकता है और यंत्र तैरता रहता है। लगता है कि मीसोस्फीयर इसकी उड़ान (flight experiment) के लिए अनुकूल है; वहां सूर्य की रोशनी पर्याप्त होती है तथा हवा भी एकदम सही मात्रा में है।
अभी तो टीम ने इसे प्रयोगशाला (laboratory test) में मीसोस्फीयर जैसा वातावरण तैयार करके आज़माया है। अभी उनके यंत्र का व्यास करीब 6 से.मी. है। टीम का कहना है कि उनका यंत्र ध्रुवीय अक्षांशों पर तो दिन-रात काम कर सकता है लेकिन भूमध्य रेखा के आसपास सिर्फ दिन में। फिलहाल यह यंत्र मात्र 10 मिलीग्राम का वज़न ढो सकता है। फिर भी बताते हैं कि यह लघु दूरसंचार व्यवस्था (telecommunication system), जलवायु संवेदी यंत्रों और छोटे सौर पैनल (solar panel) के लिए पर्याप्त होगा। हज़ारों ऐसे यंत्र उड़ाए जाएं तो मौसम भविष्यवाणी (weather prediction) में सहायक हो सकते हैं। विचार तो इन्हें मंगल (Mars mission) के अवलोकन के लिए भेजने का भी है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://res.cloudinary.com/tbmg/c_scale,w_700,f_auto,q_auto/v1756224739/sites/tb/articles/2025/blog/082725-TB-blog_photophoresis.jpg