
वर्ष 2015 में, सभी देशों ने पेरिस समझौते (Paris agreement ) को स्वीकारा था, जिसका लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन (carbon emission) कम करना, नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) बढ़ाना, इलेक्ट्रिक परिवहन को अपनाना और तकनीक के ज़रिए संसाधनों की खपत घटाना था। यह समाधान लगता आसान था, लेकिन इसे लागू करना उतना आसान साबित नहीं हुआ।
इस संदर्भ में राजनीति वैज्ञानिक थीआ रियोफ्रांकोस ने अपनी किताब एक्सट्रैक्शन (Extraction) में इस बदलाव के एक अहम पहलू लीथियम (lithium mining) पर ध्यान दिया है। बैटरियों और कई नवीकरणीय तकनीकों के लिए ज़रूरी लीथियम ग्रीन अर्थव्यवस्था (green economy) का केंद्र है। रियोफ्रांकोस के अनुसार इस धातु की वैश्विक होड़़ ने नैतिक और सामाजिक समस्याएं पैदा की हैं। केवल उत्सर्जन घटाने पर ध्यान देने से देशों और कंपनियों ने खनन से जुड़ी मानव और पर्यावरणीय लागत को नज़रअंदाज़ कर दिया है, जिससे ‘कार्बन रहित पूंजीवाद’ की भ्रामक धारणा बनी।
रियोफ्रांकोस ने व्यापक फील्डवर्क में स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर लीथियम खनन के प्रभावों को देखा है। उदाहरण के तौर पर चिली का अटाकामा रेगिस्तान (Atacama desert) लीथियम से भरपूर है और 12,000 साल से लोग यहां रहते आए हैं। सदियों तक यहां के लोग समृद्ध व्यापार नेटवर्क बनाए रखते थे, लेकिन उपनिवेशीकरण और बाद में औद्योगिक कंपनियों ने इसे बंजर ज़मीन दिखाकर खनन को सही ठहराया। आज भी बहुराष्ट्रीय कंपनियां स्थानीय अधिकारों और पर्यावरण संरक्षण (Environmental protection) के नियमों को चुनौती देती हैं।
रियोफ्रांकोस की खोजों से पता चलता है कि केवल कार्बन उत्सर्जन घटाने पर ध्यान देना खतरनाक हो सकता है। रियोफ्रांकोस का मानना है कि ‘नेट-ज़ीरो’ (net zero goals) पर सिर्फ एक तरह से काम करने के बजाय कई उपाय अपनाए जाएं – जैसे बेहतर सार्वजनिक परिवहन (public transport), पैदल और साइकिल से चलने वालों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, अधिक घनी आबादी वाले शहर, कम कारें और अधिक रिसायक्लिंग (recycling)। इन उपायों से जलवायु लक्ष्यों के साथ सामाजिक समता और पर्यावरण संरक्षण का संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर, लीथियम की दौड़ भू-राजनीति को भी प्रभावित करती है। इलेक्ट्रिक वाहनों (EV market) और नवीकरणीय ऊर्जा में चीन (china supply chain) की तेज़ बढ़त ने अमेरिका और युरोप को अपनी सप्लाई चेन को बदलने पर मजबूर किया है, ताकि वे ज़रूरी खनिजों पर नियंत्रण पा सकें। इस प्रतिस्पर्धा से तनाव बढ़ता है, वैश्विक सहयोग प्रभावित होता है, और संसाधन-समृद्ध क्षेत्र नए शोषण (resource exploitation) के केंद्र बन सकते हैं।
रियोफ्रांकोस चेतावनी देती हैं कि हरित ऊर्जा की ओर बदलाव अपने आप में न्यायसंगत नहीं है। कार्बन उत्सर्जन घटाना (Carbon Reduction) केवल एक हिस्सा है; न्याय सुनिश्चित करना, आदिवासी अधिकारों (indigenous rights) की रक्षा करना और पारिस्थितिकी की सुरक्षा (ecology protection) करना भी उतना ही ज़रूरी है। इन बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए, जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर जाना असमानता और पर्यावरणीय नुकसान को दोहरा सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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