मलेरिया आज भी एक बड़ी वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती है। इससे हर वर्ष पांच लाख से अधिक मौतें होती हैं जिसमें अधिकांश 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे होते हैं। मच्छरों में कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध पैदा हो जाता है और टीकाकरण आंशिक सुरक्षा ही प्रदान करता है। इनके चलते नियंत्रण के प्रयास विफल रहे हैं। अब, वैज्ञानिकों ने मलेरिया की रोकथाम के लिए एक नया तरीका खोज निकाला है। यदि मच्छरों को एक कुदरती बैक्टीरिया खिलाया जाए तो उनकी आंतों में मलेरिया परजीवी (प्लाज़्मोडियम) के विकास को रोका जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने पहले भी मच्छर जनित बीमारियों से निपटने के लिए रोगाणुओं की क्षमता पर प्रयोग किए हैं। इस दौरान वोल्बाचिया पिपिएंटिस बैक्टीरिया ने डेंगू बुखार के विरुद्ध सकारात्मक परिणाम दिए हैं। मलेरिया परजीवी प्लाज़्मोडियम को रोकने के लिए अक्सर आनुवंशिक रूप से संशोधित बैक्टीरिया पर काम हुआ है। लेकिन नियामक अनुमोदन की अड़चनें और पारिस्थितिक प्रभाव इस प्रकार के संशोधन के मार्ग में बाधा बन जाते हैं।
हाल ही में साइंस में प्रकाशित अध्ययन ने आशाजनक विकल्प प्रस्तुत किया है। शोधकर्ताओं को संयोगवश एक प्राकृतिक बैक्टीरिया डेल्फ्टिया सुरुहेटेंसिस टीसी1 का पता चला जो मच्छरों में मलेरिया परजीवी के विकास को रोकता है। गौरतलब है कि इस बैक्टीरिया का प्रभाव जेनेटिक परिवर्तन के बिना होता है। मच्छरों की आंत में उपस्थित डी. सुरुहेटेंसिस टीसी1 बैक्टीरिया प्लाज़्मोडियम का विकास रोकता है और इसके अंडों की संख्या को 75 प्रतिशत तक कम कर देता है। इसका परीक्षण करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि डी. सुरुहेटेंसिस टीसी1 बैक्टीरियम संक्रमित मच्छरों के दंश से ग्रस्त चूहों में सिर्फ तिहाई ही मलेरिया से पीड़ित हुए जबकि सामान्य मच्छरों द्वारा काटे गए सभी चूहे मलेरिया से संक्रमित हुए।
चूंकि यह बैक्टीरिया मच्छर या उसकी संतानों के जीवित रहने पर प्रभाव नहीं डालता इसलिए मच्छरों में इसके खिलाफ प्रतिरोध विकसित होने की संभावना कम है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि यह बैक्टीरिया हारमैन नामक एक अणु भी मुक्त करता है। यह अणु पौधों में भी पाया जाता है जिसका उपयोग कहीं-कहीं परंपरागत चिकित्सा में होता है। यह अणु प्लाज़्मोडियम की विकास प्रक्रिया को रोकता है।
मच्छरों के शरीर में हारमैन किसी सतह से भी आ सकता है। इसका एक मतलब यह भी है कि हारमैन का उपयोग मच्छरों में प्लाज़्मोडियम का विकास रोकने में किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने बुर्किना फासो में इसका परीक्षण भी किया। उन्होंने पहले तो मच्छरों को डी. सुरुहेटेंसिस टीसी1 खाने पर मजबूर किया। इन मच्छरों ने संक्रमित व्यक्तियों का खून पीया तो इनके शरीर में परजीवी का विकास प्रभावी ढंग से अवरुद्ध हो गया।
शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण बात यह बताई है कि यह बैक्टीरिया एक से दूसरे मच्छर में नहीं पहुंचता जो एक अच्छी बात है। संभवत: जल्द ही हमारे पास बैक्टीरिया के चूर्ण या हारमैन के रूप में कोई मलेरिया-रोधी उत्पाद होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.adk1267/full/_20230803_on_malaria_mosquito-1691091204580.jpg