वायरस बनने की राह पर एक सूक्ष्मजीव

क दो-चाबुकी (डायनोफ्लेजिलेट) जीव है सिथारिस्टिस रेजियस (Citharistes regius)। डायनोफ्लेजिलेट एककोशिकीय जीव होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) करके अपना भोजन खुद बना सकते हैं। ये दो चाबुकनुमा तंतुओं से लैस होते हैं जो उन्हें चलने-फिरने में मदद करते हैं।

रोचक बात यह है कि त्सुकुबा विश्वविद्यालय के ताकरुप नाकायामा और उनके साथियों ने इस एककोशिकीय जीव के अंदर एक विचित्र परजीवी (parasite discovery) खोजा है। इसे सुकुमार्चियम नाम दिया है और अभी यह सिर्फ अपने जीनोम (genome sequencing) के आधार पर पहचाना गया है।

तो, जीनोम के विश्लेषण से वैज्ञानिकों ने बताया है कि यह एक परजीवी है जो अपने एककोशिकीय मेज़बान (host cell) को कुछ नहीं देता। सुकुमार्चियम में कुल मिलाकर 189 प्रोटीन बनाने वाले 189 जीन्स हैं। ये सभी सिर्फ एक काम पर केंद्रित हैं – अपने जीनोम की प्रतिलिपि बनाना (genetic replication)। इस काम को अंजाम देने के लिए बाकी सारी सामग्री यह अपने मेज़बान से लूटता है। और विचित्रताएं अभी बाकी हैं…

जैसे, इस सूक्ष्मजीव की जेनेटिक शृंखला का कुछ हिस्सा ऐसा है जैसे यह एक आर्किया जीव (archaea) हो। आर्किया बैक्टीरिया की अपेक्षा हमारे जैसे जटिल जीवों (complex life forms) की तरह अधिक होते हैं। लेकिन सुकुमार्चियम की जीवन शैली वायरस के काफी मिलती-जुलती है और लगता है कि यह वायरस और एक-कोशिकीय जीवों के बीच की कड़ी (virus evolution link) है।

दरअसल, सुकुमार्चियम की खोज संयोग से ही हुई थी। शोधकर्ता सिथारिस्टिस रेजियस के अंदर उपस्थित समस्त डीएनए का अनुक्रमण (DNA sequencing) करने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि यह तो पता ही था कि इसके अंदर सायनोबैक्टीरिया (cyanobacteria) पलते हैं। जब विश्लेषण किया तो स्वयं सिथारिस्टिस रेजियस और अपेक्षित बैक्टीरिया परजीवी के अलावा उन्हें डीएनए का अजीब-सा वृत्त मिला। इसमें मात्र 2 लाख 38 हज़ार क्षार जोड़ियां थीं, जिसकी लंबाई . कोली बैक्टीरिया के डीएनए (E. coli DNA) की मात्र 5 प्रतिशत थी। पहले लगा कि शायद यह प्रयोग के दौरान मिलावट का परिणाम होगा लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब वह बना रहा तो उन्हें मानना पड़ा कि यह एक नया जीव (new organism) है जो सिथारिस्टिस रेजियस के अंदर रहता है।

सुकुमार्चियम के पास चयापचय (metabolism) के लिए कोई जीन नहीं है, यानी यह शायद अमीनो एसिड (amino acids), प्रोटीन या न्यूक्लियोटाइड जैसे कोई अनिवार्य अणु नहीं बना पाता है। दरअसल, किसी वायरस की तरह यह अपनी प्रतिलिपि बनाने के अलावा बाकी हर काम के लिए मेज़बान पर आश्रित (host-dependent parasite) है।

तो क्या यह जीव वायरस बनने की राह पर है (virus evolution theory)? वायरस की उत्पत्ति के बारे में दो धारणाएं प्रचलित हैं। पहली, ये बैक्टीरिया वगैरह जैसे संपूर्ण कोशिका थे और धीरे-धीरे इनमें से रचनाएं व उनके बनने के लिए ज़िम्मेदार जीन्स कम होते गए और अंतत: सिर्फ वह हिस्सा बचा जो स्वयं की प्रतिलिपि बनाने में कारगर है। दूसरी, ये जीवों के विकास की शुरुआती अवस्था (primitive life form) हैं और धीरे-धीरे विभिन्न घटक जुड़ते जाएंगे। सुकुमार्चियम इस मार्ग पर कहीं है मगर किस दिशा में जा रहा है, स्पष्ट नहीं है। जब तक स्वतंत्र जीव नहीं मिलता तब तक कुछ कह नहीं सकते। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.z7ekqxv/full/_20250611_on_mostviruslikeorganism-1750188390777.jpg

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