
हर साल ज़हरीले सांपों (snake bite deaths) के काटने से एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है, और कई लाख लोग अपंग हो जाते हैं। WHO ने इसे एक ‘उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी’ (neglected tropical disease) कहा है। इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब और ग्रामीण इलाकों के लोग होते हैं, जहां सही इलाज की सुविधा नहीं होती। और मौजूदा एंटीवेनम (antivenom treatment) की प्रभाविता की सीमा आ चुकी है।
गौरतलब है कि पारंपरिक एंटीवेनम दवाएं घोड़ों या भेड़ों जैसे जीवों को थोड़ी मात्रा में सांप का ज़हर देकर तैयार की जाती हैं। इन जीवों के शरीर में ज़हर के खिलाफ बनी एंटीबॉडी (antibody therapy) का उपयोग इंसानों के इलाज में किया जाता है। लेकिन यह प्रक्रिया महंगी है और हर बार एक जैसी गुणवत्ता भी नहीं मिलती। हर बैच में कुछ एंटीबॉडी असरदार होती हैं, कुछ नहीं। इसलिए एक ही मरीज़ को ठीक करने के लिए कई खुराकें देनी पड़ती हैं। इसके अलावा, घोड़े से बनी एंटीबॉडी कई बार गंभीर एलर्जिक रिएक्शन (allergic reaction risk) पैदा कर देती हैं, जो कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती है। इस डर से कई डॉक्टर दवा देने में झिझकते हैं।
बेहतर इलाज (effective snakebite cure) की तलाश में, डेनमार्क की टेक्निकल युनिवर्सिटी (Technical University of Denmark) के एंड्रियास लाउस्टसेन-कील और उनकी टीम ने लामा व अलपाका जीवों की ओर रुख किया। ये जीव बहुत छोटी और सरल एंटीबॉडी बनाते हैं, जिन्हें नैनोबॉडीज़ (nanobodies research) कहा जाता है। ये नैनोबॉडीज़ ज़हरीले तत्वों को बहुत सटीकता से पकड़ लेती हैं।
टीम ने अफ्रीका की 18 अलग-अलग सांप प्रजातियों (snake venom species) (जैसे कोबरा, माम्बा और रिंकहॉल) के ज़हर को लामा और अलपाका में इंजेक्ट किया ताकि वे नैनोबॉडीज़ बना सकें। इसके बाद, उन्होंने इन नैनोबॉडीज़ के डीएनए को ई.कोली बैक्टीरिया (E. coli bacteria) के जीनोम में जोड़ा, जिससे ये सूक्ष्मजीव प्रयोगशाला में नैनोबॉडीज़ बनाने की ‘फैक्टरी’ बन गए।
हज़ारों नमूनों की जांच के बाद, वैज्ञानिकों ने आठ ऐसी नैनोबॉडीज़ चुनीं जो ज़हर को निष्क्रिय करने में सबसे प्रभावी थीं। जब चूहों को जानलेवा मात्रा में सांप का ज़हर देने के बाद ये नैनोबॉडीज़ दी गईं, तो वे लगभग सभी सांपों (सिवाय ईस्टर्न ग्रीन माम्बा) के ज़हर से बच गए।
मौजूदा प्रमुख एंटीवेनम Inoserp PAN-AFRICA की तुलना में, इस नए मिश्रण (new antivenom formula) ने ज़्यादा चूहों की जान बचाई और ऊतकों को कम नुकसान पहुंचाया। वैज्ञानिकों का मानना है कि बहुत छोटी होने के कारण ये नैनोबॉडीज़ शरीर के अंदर गहराई तक पहुंचकर ज़हर के फैलाव को अधिक प्रभावी ढंग से रोक सकती हैं।
इस तकनीक (biotech innovation) से लागत भी काफी कम हो सकती है। घोड़ों या भेड़ों की अपेक्षा बैक्टीरिया की मदद से नैनोबॉडीज़ तैयार करना सस्ता (low-cost biotech production) है। और यदि यह कम मात्रा में ज़्यादा कारगर हो, तो यह किफायती और ज़्यादा लोगों तक पहुंचने योग्य बन सकता है। एक और बड़ी बात यह है कि इसमें एलर्जी या सेप्टिक शॉक का खतरा बहुत कम है।
वैज्ञानिक अब कुछ और सांपों के ज़हर शामिल करके फार्मूले को और बेहतर बनाने में लगे हैं। अगर यह प्रयास सफल रहा, तो यह खोज अफ्रीका, एशिया और अन्य देशों में सांप के काटने के इलाज (global snakebite treatment) को पूरी तरह बदल सकती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.zw5mng9/abs/_20251030_nid_snake_antivenom.jpg