चंद्रमा की उम्र लगभग पृथ्वी के बराबर है!

हाल में प्रस्तुत एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि पृथ्वी (Earth) के अस्तित्व में आने के थोड़े समय बाद से ही चंद्रमा (Moon) उसका साथी रहा है। यह नया शोध बताता है कि चंद्रमा का जन्म सौर मंडल (Solar System) बनने के महज 6.5 करोड़ साल बाद ही हो गया था। यानी चंद्रमा की उम्र करीब 4.5 अरब साल है, जो पहले के अनुमानों से अधिक है।

ल्यूनर एंड प्लैनेटरी साइंस कॉन्फ्रेंस (LPSC) में प्रस्तुत इस शोध में बताया गया है कि चंद्रमा का निर्माण पृथ्वी के बनने के तुरंत बाद हुआ था, जब मंगल ग्रह (Mars) के साइज़ जितना एक प्रोटो-प्लैनेट (Proto-planet) ‘थीया’ (Theia) पृथ्वी से टकराया था।

गौरतलब है कि सौर मंडल (Solar System) का निर्माण लगभग 4.56 अरब वर्ष पहले शुरू हुआ, और इसके 2-3 करोड़ साल बाद पृथ्वी आकार लेने लगी। उस समय अंतरिक्ष (Space) में भारी हलचल थी और बड़े-बड़े खगोलीय पिंडों की टक्कर एक आम बात थी। इन्हीं में से एक टक्कर युवा पृथ्वी से थीया नामक पिंड के टकराने की थी। यह टक्कर इतनी भीषण थी कि पृथ्वी से भारी मात्रा में पिघली हुई चट्टान और मलबा अंतरिक्ष में उछला, जो बाद में संघनित होकर चंद्रमा बना।

यह घटना पृथ्वी के विकास में भी महत्वपूर्ण रही। इस टक्कर से पृथ्वी की सतह पिघलकर खौलते मैग्मा के महासागर में बदल गई और इसने पृथ्वी के घूर्णन और झुकाव को स्थिर करने में मदद की। इसलिए चंद्रमा के निर्माण का सटीक समय जानकर वैज्ञानिक यह समझ सकते हैं कि पृथ्वी अपने वर्तमान रूप में कब आई।

चंद्रमा की उम्र कैसे तय की?

कई वर्षों से वैज्ञानिक अपोलो मिशनों (Apollo Missions) द्वारा लाई गईं चंद्रमा की चट्टानों (Lunar Rocks) का अध्ययन करते आ रहे हैं। पूर्व में, जब वैज्ञानिकों ने चट्टानों का अध्ययन किया था तो पता चला था कि चंद्रमा की सतह से प्राप्त चट्टानें लगभग 4.35 अरब साल पुरानी थीं और ये चट्टानें चांद के अपने मैग्मा (Lunar Magma) से बनी थीं। तो माना गया कि चांद की उम्र लगभग उतनी ही है। लेकिन इतना युवा चंद्रमा बाकी प्रमाणों से मेल नहीं खाता।

इस पहेली को सुलझाने में बड़ी सफलता तब मिली जब वैज्ञानिकों ने चंद्रमा से मिले ज़िरकॉन क्रिस्टलों (Zircon Crystals) का अध्ययन किया। इन क्रिस्टल के रेडियोधर्मी तत्वों के विघटन से उनकी सही उम्र का पता लगाया जा सकता है। 2017 में, भू-रसायन वैज्ञानिक मेलानी बारबोनी ने आठ ज़िरकॉन रवों का विश्लेषण करके यह देखा कि इनमें मौजूद युरेनियम (Uranium) के विघटन से कितना लेड (Lead) बन चुका है। इस मापन के आधार पर बारबोनी ने निष्कर्ष निकाला कि चंद्रमा 4.51 अरब साल पुराना है।

2019 में, वैज्ञानिकों को चंद्रमा की चट्टानों में टंगस्टन (Tungsten) के हल्के आइसोटोप मिले। उस अध्ययन के मुखिया मैक्सवेल थीमेन्स ने अनुमान लगाया कि ये आइसोटोप तत्व हाफ्नियम (Hafnium) के अब विलुप्त हो चुके आइसोटोप से बने होंगे। और हाफ्नियम का यह आइसोटोप सौर मंडल के शुरू के 6 करोड़ वर्षों में ही उपस्थित था। इस खोज ने बारबोनी के निष्कर्षों को मज़बूती दी। यानी चंद्रमा उन वर्षों में बना होगा।

अब, वैज्ञानिकों ने रुबिडियम(rubidium) के स्ट्रॉन्शियम(strontium) में विघटन को मापने की एक नई विधि से इस निष्कर्ष  की पुष्टि की है। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के थॉर्स्टन क्लाइन और उनकी टीम ने गणना की कि चंद्रमा लगभग 4.5 अरब साल पहले बना था। ये नतीजे पिछले शोधों को पुख्ता करते हैं और चंद्रमा के जन्म की एक सुसंगत समयरेखा देते हैं।

चंद्रमा बनने के बाद भी यह कोई शांत खगोलीय पिंड नहीं था। आरंभ में इसकी पूरी सतह पिघले हुए लावा के महासागर (lava ocean) से ढंकी थी, जो धीरे-धीरे ठंडी होकर ठोस बन गई। लेकिन शोध बताते हैं कि पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव ने इसकी सतह को दोबारा गर्म कर दिया, ठीक वैसे ही जैसे बृहस्पति (Jupiter) के असर से उसके चंद्रमा ‘आयो’(Io) पर भीषण ज्वालामुखीय गतिविधि देखी जाती है। एक अन्य सिद्धांत के अनुसार, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव (lunar south pole) पर किसी विशाल उल्कापिंड की टक्कर (asteroid impact) ने इसकी सतह को नया रूप दिया होगा। इनमें से किसी एक वज़ह से चंद्रमा की उम्र का सही अनुमान लगाना जटिल हो गया। अपोलो द्वारा लाए गए नमूनों को इस नए दृष्टिकोण से देखने की ज़रूरत है। हो सकता है कि वे पिघलकर वापिस ठोस बन गए चंद्रमा के होंगे, मूल रूप में निर्मित चंद्रमा के नहीं।

चीन का चांग’ई-6 मिशन (Chang’e 6 Mission), जो चंद्रमा की दूरस्थ सतह से लगभग 2 किलोग्राम चट्टानें लेकर लौटा है, इस रहस्य पर और प्रकाश डाल सकता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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चट्टानों में हवा के बुलबुलों में छिपा पृथ्वी का अतीत

रबों  वर्षों में पृथ्वी के वातावरण (Earth’s atmosphere) में काफी परिवर्तन हुए हैं, जिससे जीवन (life evolution) के विकास की दिशा तय हुई। वैज्ञानिकों (scientists) ने ध्रुवों पर जमा बर्फ की परतों से पिछले 60 लाख वर्षों का वायुमंडलीय डैटा (atmospheric data) निकाला है, लेकिन यह डैटा पृथ्वी (Earth) के 4.5 अरब साल के इतिहास का बहुत छोटा हिस्सा है।

प्राचीन समय में वायु में कौन-से घटक कितनी मात्रा में थे, इसका पता वैज्ञानिक केवल चट्टानों (rocks) और खनिजों (minerals) में छिपे अप्रत्यक्ष प्रमाणों से लगाते आए हैं। लेकिन अब, एक नई तकनीक (new technique) से अधिक सटीक जानकारी मिल रही है – प्राचीन चट्टानों, लवणों और लावा (lava) में फंसे सूक्ष्म वायु बुलबुलों (air bubbles) का विश्लेषण। 

वैज्ञानिक यह जानते हैं कि 4.5 अरब वर्ष पूर्व जब पृथ्वी का निर्माण (Earth formation) हुआ, तब उसकी सतह पिघली हुई चट्टानों (magma) से ढंकी थी। इस मैग्मा से रिसी गैसों, और आगे चलकर ज्वालामुखी विस्फोटों (volcanic eruptions), क्षुद्रग्रहों (asteroids) की बौछार के कारण मुक्त गैसों ने एक प्रारंभिक वातावरण (early atmosphere) बनाया। समय के साथ, नाइट्रोजन (nitrogen) अपनी स्थिरता के कारण मुख्य गैस बन गई, जबकि हाइड्रोजन (hydrogen) और हीलियम (helium) जैसी हल्की गैसें अंतरिक्ष में विलीन हो गईं। ऑक्सीजन (oxygen) लगभग न के बराबर थी, जब तक कि लगभग 3 अरब साल पूर्व प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis) करने वाले सूक्ष्मजीवों ने इसे धीरे-धीरे वातावरण में छोड़ना शुरू नहीं किया।

फिर, वैज्ञानिक यह भी जानते थे कि चट्टानों में प्राचीन वायु (ancient air) कैद हो सकती है, लेकिन इन गैसों को निकालना और विश्लेषण (gas analysis) करना बेहद कठिन था। अब, वैज्ञानिक एक वैक्यूम-सील प्रेस (vacuum-sealed press) में प्राचीन चट्टानों को धीरे-धीरे दाब बढ़ाते हुए कुचलते हैं, जिससे उसमें फंसी हुई गैस निकलती है। इस गैस का विश्लेषण मास स्पेक्ट्रोमीटर (mass spectrometer) से किया जाता है।

सर्वप्रथम भू-रसायनविद (geochemist) बर्नार्ड मार्टी ने 2010 के दशक में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया (Western Australia) के क्वार्ट्ज़ (quartz) और बैराइट भंडारों में फंसी गैस का विश्लेषण किया था। और पहली बार 3 अरब साल से भी अधिक पुराने वायुमंडलीय नमूने (atmospheric samples) उपलब्ध कराए। उसके बाद से इस तकनीक के इस्तेमाल से कई अध्ययन (research studies) हुए हैं। 

ऑक्सीजन की उपस्थिति : पहले वैज्ञानिक मानते थे कि लगभग 80 करोड़ साल पहले तक पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन बहुत कम थी, और तभी इसके स्तर में अचानक वृद्धि हुई, जिससे जंतुओं (animals) का विकास संभव हुआ। लेकिन विभिन्न अध्ययन (scientific studies) अलग-अलग निष्कर्ष देते हैं।

बोरिंग बिलियन: वैज्ञानिक 1.8 अरब से 80 करोड़ साल पहले के कालखंड को “बोरिंग बिलियन” (Boring Billion) कहते हैं, क्योंकि इस दौरान जलवायु (climate), टेक्टोनिक्स (tectonics) और जैव विकास (biological evolution) में कोई खास बदलाव नहीं दिखता था। लेकिन 1.4 अरब साल पुराने लवण (ancient salts) के क्रिस्टलों से पता चला है कि उस समय ऑक्सीजन स्तर अपेक्षा से अधिक था। इससे यह संकेत मिलता है कि जटिल जीवन (complex life) के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां उस समय मौजूद रही होंगी।

नोबल गैसें : नोबल गैसें (noble gases), जैसे आर्गन (argon), नीऑन (neon) और ज़ीनॉन (xenon), रासायनिक रूप से अन्य तत्वों के साथ अभिक्रिया नहीं करतीं। इसलिए वे पृथ्वी के वायुमंडलीय परिवर्तनों (atmospheric changes) को समझने में उपयोगी होती हैं।

भारत में 2 अरब साल पुराने उल्कापिंड टकराव स्थल (meteorite impact site) के अध्ययन से पता चला है कि उस समय ज्वालामुखीय गतिविधि (volcanic activity) कई करोड़ वर्षों तक धीमी हो गई थी, जिससे पृथ्वी के आंतरिक भाग से गैसों का उत्सर्जन (gas emissions) भी कम हुआ। इसी प्रकार, ग्रीनलैंड (Greenland) की 3 अरब साल पुरानी चट्टानों में फंसी गैसों के अध्ययन से यह संकेत मिला कि ये गैसें प्राचीन पृथ्वी के मेंटल (Earth’s mantle) और समुद्री जल (ocean water) से आई थीं। ये खोजें (discoveries) हमें यह समझने में मदद करती हैं कि पृथ्वी का वायुमंडल (Earth’s atmosphere) कैसे बना और विकसित हुआ। इन खोजों के बावजूद, वैज्ञानिकों ने अभी केवल सतह को ही कुरेदा है। भविष्य की संभावनाएं (future possibilities) कई हैं। वे और भी प्राचीन चट्टानों के नमूने (ancient rock samples) इकट्ठा करेंगे, गैस निकालने की तकनीकों (gas extraction techniques) में सुधार करेंगे और यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या ये वायुमंडलीय सुराग (atmospheric clues) जीवन की उत्पत्ति (origin of life) को समझने में मदद कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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