डॉ. नवनीत कुमार गुप्ता

डॉ. मलूर रामस्वामी श्रीनिवासन (malur ramasamy srinivasan) भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम (India’s Nuclear Energy Program) के प्रमुख स्तंभ, वैज्ञानिक (Nuclear Scientist) और नीति निर्माता थे। उन्होंने न केवल देश के वैज्ञानिक आधार को सुदृढ़ किया बल्कि भारत को आत्मनिर्भरता और ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security in India) की राह पर अग्रसर किया।
डॉ. श्रीनिवासन का जन्म 5 जनवरी 1930 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता एक शिक्षक थे और उनका परिवार शिक्षा में दृढ़ विश्वास रखता था। बचपन से ही श्रीनिवासन गणित और विज्ञान में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मैसूर से प्राप्त की और आगे की पढ़ाई कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलुरू (अब विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग) से की। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले (University of California, Berkeley) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
वैज्ञानिक जीवन यात्रा
डॉ. श्रीनिवासन ने 1956 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Centre – BARC) में अपने वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत की। उस समय भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम अपने आरंभिक चरण में था और डॉ. होमी जहांगीर भाभा (Homi J. Bhabha) के नेतृत्व में आकार ले रहा था। डॉ. श्रीनिवासन ने भारत के परमाणु रिएक्टरों (Nuclear Reactors in India) के स्वदेशी डिज़ाइन और निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने देश की पहली दाबयुक्त भारी पानी (पीएचडब्ल्यूआर) (Pressurized Heavy Water Reactor – PHWR) तकनीक को विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभाई, जो आज भी भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन प्रणाली की रीढ़ है।
1979 में डॉ. श्रीनिवासन को परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission of India) का सदस्य बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि, वैज्ञानिक अनुसंधान (Scientific Research in India) और मानव संसाधन विकास को प्राथमिकता दी। 1987 से 1990 तक वे परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल में कई परमाणु बिजलीघरों (Nuclear Power Plants) की स्थापना हुई।
उन्होंने न केवल तकनीकी मामलों को देखा बल्कि परमाणु नीति निर्धारण (Nuclear Policy of India) में भी निर्णायक भूमिका निभाई। उनकी रणनीतियों के कारण भारत ने विदेशी दबावों के बावजूद अपने परमाणु कार्यक्रम को निर्बाध रूप से आगे बढ़ाया।
डॉ. श्रीनिवासन मानते थे कि ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (Energy Independence) राष्ट्रीय संप्रभुता की कुंजी है। इसके लिए उन्होंने स्थानीय उद्योगों को परमाणु क्षेत्र में जोड़ने के लिए कई योजनाएं बनाईं। भारतीय कंपनियों को परमाणु संयंत्रों के लिए उपकरण निर्माण में शामिल करने की उनकी नीति से घरेलू विनिर्माण क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मौजूदगी
डॉ. श्रीनिवासन ने भारत का प्रतिनिधित्व कई वैश्विक मंचों पर किया, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency – IAEA) और अन्य तकनीकी निकाय शामिल हैं। उन्होंने परमाणु सुरक्षा (Nuclear Safety), विकिरण नियंत्रण और परमाणु अप्रसार (Nuclear Non-Proliferation) जैसे विषयों पर भारत की नीतियों को स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उनके तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विश्व समुदाय में व्यापक सराहना मिली।
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. श्रीनिवासन के अभूतपूर्व योगदान को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया। इनमें प्रमुख हैं: पद्म भूषण (1990), पद्म विभूषण (2015), एनर्जी ग्लोब अवॉर्ड (Energy Globe Award), डॉ. होमी भाभा विज्ञान पुरस्कार एवं भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (Indian National Science Academy) की सदस्यता।
साहित्यिक योगदान
डॉ. श्रीनिवासन न केवल वैज्ञानिक थे, बल्कि एक कुशल लेखक और विचारक भी थे। उन्होंने लेखों और व्याख्यानों के माध्यम से आम जनमानस को परमाणु ऊर्जा की उपयोगिता और सुरक्षा (Uses of Nuclear Energy) के बारे में जागरूक किया। उन्होंने फ्रॉम फिज़न टू फ्यूज़न: दी स्टोरी ऑफ इंडिया‘ज़ न्यूक्लियर पॉवर प्रोग्राम (From Fission to Fusion: The Story of India’s Nuclear Power Program) नामक पुस्तक लिखी, जो भारत की परमाणु यात्रा (India’s Nuclear Journey) के बारे में बात करती है।
जाते–जाते डॉ. श्रीनिवासन ने 20 मई 2025 को बेंगलुरु में अंतिम सांस लीं। लेकिन वे जीवन के अंतिम दिनों तक सक्रिय रहे। वे नीति सलाहकार, व्याख्याता और लेखक के रूप में निरंतर योगदान देते रहे। वे हमेशा कहते थे, “भारत का भविष्य उसकी प्रयोगशालाओं और कक्षाओं (Science Education in India) में पल रहा है।” (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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