
दुनिया भर में इंटरनेट की मांग (internet demand) बढ़ने के कारण हज़ारों नए उपग्रह छोड़े जा रहे हैं। खगोलविद इन इंटरनेट उपग्रहों से काफी चिंतित हैं। दरअसल, ये उपग्रह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं और ऐसी रेडियो तरंगें (radio waves) छोड़ते हैं जो संवेदनशील दूरबीनों के लिए बाधा बन रही हैं।
एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2040 तक लगभग पांच लाख उपग्रह (satellite mega-constellation) पृथ्वी की कक्षा में होंगे। इतनी बड़ी संख्या में उपग्रह उन्नत अंतरिक्ष दूरबीनों की तस्वीरों को बिगाड़ सकते हैं। नासा (NASA) के सिमुलेशन से पता चला है कि उपग्रहों का महाजाल चार प्रमुख दूरबीनों – हबल, Xuntian, SPHEREx, और ARRAKIHS – पर क्या असर डालेगा। परिणाम चिंताजनक हैं।
खगोलविदों को उम्मीद थी कि यदि दूरबीनों को पृथ्वी की सतह (Earth surface) से दूर अंतरिक्ष में रखा जाए, तो वे उपग्रहों की चमकीली लकीरों (satellite streaks) से बच सकेंगे। लेकिन एक नए अध्ययन से पता चला है कि यह उम्मीद बेमानी थी। भविष्य में 540 कि.मी. की ऊंचाई पर स्थापित हबल दूरबीन (Hubble Space Telescope) की हर तीन में से एक तस्वीर में उपग्रह का खलल दिखाई देगा। विस्तृत परास वाली अंतरिक्ष दूरबीनों की हालत इससे भी बुरी होगी – SPHEREx और ARRAKIHS की लगभग हर तस्वीर में कम से कम एक चमकीली लकीर होगी। और, 2026 में लॉन्च होने वाली Xuntian दूरबीन की एक तस्वीर में 90 से अधिक उपग्रह लकीरें दिखने की संभावना है।
इस समस्या से बचना इसलिए लगभग असंभव है क्योंकि अधिकतर उपग्रह 500 से 700 कि.मी. की ऊंचाई (Low Earth Orbit – LEO) पर परिक्रमा करते हैं; कुछ तो 8000 कि.मी. तक भी स्थापित किए जाते हैं। यानी ये उपग्रह निचली कक्षा में मौजूद हर दूरबीन की तस्वीरों में डैटा (astronomical data) को नुकसान पहुंचाएंगे।
हालांकि, कंपनियों ने इन्हें थोड़ा ‘डार्क’ (dark satellite) बनाने की कोशिश की है, लेकिन समस्या हल नहीं हुई। कई उपग्रह अभी भी काफी चमकीले (optical brightness) हैं। इसके अलावा इनके रेडियो सिग्नल (radio interference) दूर-दूर तक रेडियो दूरबीनों के काम में बाधा डाल रहे हैं।
तस्वीरों से उपग्रह की लकीरों को हटाने वाला सॉफ्टवेयर (image processing software) भी पूरा समाधान नहीं दे पाता है। कई बार वह सही काम नहीं करता, और जब करता है, तो तस्वीरों में ‘शोर’ बढ़ जाता है और माप में अनिश्चितता (measurement uncertainty) आ जाती है।
नासा के सिमुलेशन मॉडल (simulation models) के अनुसार अंतरिक्ष में मौजूद दूरबीनें भी उपग्रहों की लकीरों से प्रभावित होंगी। उपग्रहों का असर दो बातों पर निर्भर करता है: एक, दूरबीन की ऊंचाई (orbital altitude) पर – जितनी ऊंचाई पर दूरबीन होगी उस पर उपग्रहों का असर उतना ही कम होगा। दूसरी, दूरबीन के दृश्य क्षेत्र (field of view) पर। जितना बड़ा दृश्य क्षेत्र होगा, उतनी ही ज़्यादा उपग्रह लकीरें दिखेंगी।
इस स्थिति में Xuntian (450 कि.मी. की कक्षा) बहुत अधिक संवेदनशील होगा। इसका दृश्य क्षेत्र हबल से 300 गुना बड़ा (wide field telescope) है, इसलिए इसकी लगभग हर तस्वीर में उपग्रह लकीरें दिखेगी। पूरे आकाश का अवरक्त सर्वे (infrared sky survey) करने वाला SPHEREx एक फ्रेम में चांद से 200 गुना बड़ा क्षेत्र कैप्चर करता है, इसलिए इसकी लगभग हर तस्वीर में उपग्रह लकीरें होंगी।
हालांकि, कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि स्थिति हर जगह इतनी भयावह नहीं होगी। उदाहरण के लिए ARRAKIHS दूरबीन ज़्यादातर ‘सीधे ऊपर’ देखेगी, इसलिए उसकी कुछ तस्वीरों में लकीरें कम हो सकती हैं। फिर भी अनुमान बताते हैं कि लगभग 96 प्रतिशत तस्वीरें किसी न किसी स्तर पर प्रभावित (affected observations) होंगी।
इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक ने कुछ संभावित उपाय सुझाए हैं:
- उपग्रहों की ऊंचाई (satellite altitude) सीमित की जाए, ताकि अंतरिक्ष दूरबीनें उनसे ऊपर की कक्षा में रखी जा सकें।
- उपग्रहों की ट्रैकिंग (satellite tracking) को अधिक सटीक बनाया जाए, ताकि दूरबीनें उन्हें पहचानकर बच सकें या बाद में लकीरों को हटाया जा सके।
- उपग्रहों को और अधिक ‘डार्क’ बनाया जाए, ताकि वे कम चमकें (low reflectivity)।
ये सारे उपाय कहने में आसान हैं लेकिन उपग्रहों का यह जाल चिंताजनक है। जो आकाश कभी प्राकृतिक प्रयोगशाला (natural laboratory) था, वह अब एक औद्योगिक क्षेत्र बनता जा रहा है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://ichef.bbci.co.uk/ace/standard/640/cpsprodpb/15993/production/_84676488_s8000040-space_debris,_artwork-spl.jpg