
अनगिनत जलवायु सम्मेलनों और चर्चाओं के बाद भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन (greenhouse gas emission) निरंतर बढ़ रहा है। इस साल भी जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण (fossil fuel pollution) एक नया रिकॉर्ड बना सकता है। यह जानकारी ब्राज़ील के बेलेम शहर में आयोजित COP30 जलवायु सम्मेलन (COP30 climate summit) से मिली है। लेकिन इस बुरी खबर के बीच वैज्ञानिकों को कुछ सकारात्मक संकेत भी दिख रहे हैं। शायद दुनिया अब उस मोड़ के करीब है जहां उत्सर्जन चरम पर पहुंचकर नीचे आना शुरू हो सकता है।
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के अनुसार, जीवाश्म ईंधनों और सीमेंट उत्पादन से होने वाला कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन लगभग 1.1 प्रतिशत बढ़कर इस वर्ष 38.1 अरब टन पहुंचने की आशंका है जो अब तक का सबसे अधिक होगा (CO2 emission record)। अगर वनों की कटाई और भूमि-उपयोग में परिवर्तन में कमी को ध्यान में रखें, तो कुल वैश्विक उत्सर्जन पिछले साल जैसा ही रह सकता है या थोड़ा कम भी हो सकता है। लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार इस छोटे से बदलाव यह नहीं कहा जा सकता कि दुनिया सचमुच जीवाश्म ईंधनों से मुक्त होने की शुरुआत कर चुकी है।
पेरिस जलवायु समझौते (Paris Agreement) के लगभग दस साल बाद भी वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2015 की तुलना में करीब 10 प्रतिशत ज़्यादा है। पिछले दो दशकों में अनेक विकसित देशों ने अपने उत्सर्जन कम किए हैं, लेकिन अधिकांश विकासशील देशों में प्रदूषण (developing countries emissions) लगातार बढ़ रहा है। भारत और चीन पर अक्सर सबसे ज़्यादा ध्यान जाता है क्योंकि उनकी आबादी अधिक है और अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। लेकिन सच यह है कि ऊर्जा की ज़रूरतों और आर्थिक विकास को पूरा करने की कोशिश में कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भी उत्सर्जन बढ़ रहा है।
पिछले बीस वर्षों से चीन अकेले ही वैश्विक उत्सर्जन वृद्धि (China emissions) का सबसे बड़ा कारण रहा है। दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक-तिहाई चीन से आता है। इसका मुख्य कारण है वहां स्थापित विशाल कोयला-आधारित बिजली संयंत्र, जिनमें 2023 में करीब 2.3 अरब टन कोयला जलाया गया।
इसके बावजूद, चीन दुनिया में सबसे तेज़ी से स्वच्छ ऊर्जा (clean energy transition)अपनाने वाले देशों में भी शामिल है। वह इलेक्ट्रिक वाहन, सोलर पैनल और पवन ऊर्जा उत्पादन में दुनिया का अग्रणी देश बन चुका है। चीन का संकल्प है कि वह 2035 तक अपने उत्सर्जन को अधिकतम स्तर से कम से कम 7 प्रतिशत घटाएगा। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जब चीन का उत्सर्जन चरम पर पहुंचकर कम होना शुरू होगा तब विश्व के कुल उत्सर्जन में भी गिरावट होगी।
कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि चीन में कार्बन उत्सर्जन पहले ही कम होना शुरू हो गया है (carbon reduction trend)। कार्बन मॉनीटर नामक संस्था के मुताबिक चीन का कार्बन उत्सर्जन 2024 में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका था, और इस साल यह लगभग 1.2 प्रतिशत कम हो सकता है। स्वच्छ ऊर्जा पर काम करने वाला समूह CREA भी इसी तरह के घटते रुझान की ओर इशारा करता है।
हालांकि, इस गिरावट का एक बड़ा कारण चीन के रियल-एस्टेट क्षेत्र में मंदी (real estate slowdown) है। मकान-बनाने की गति कम होने से स्टील और सीमेंट की मांग घट गई है और इन्हीं दोनों से बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है।
फिर भी, कई शोधकर्ताओं का मानना है कि चीन का उत्सर्जन अपने चरम पर पहुंच चुका है, क्योंकि वहां स्वच्छ ऊर्जा बहुत तेज़ी से बढ़ रही है और चीन ने अपने जलवायु लक्ष्य (climate targets) भी तय किए हुए हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि यदि कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन कम होना शुरू हो गया है, तो क्या अन्य ग्रीनहाउस गैसें — जैसे मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य औद्योगिक गैसें (methane emissions) — भी जल्द ही घटने लगेंगी?
अभी के लिए दुनिया का उत्सर्जन-ग्राफ ‘ऊपर चढ़ती’ हुई स्थिति में है। लेकिन उत्सर्जन में लंबे समय से जिस टर्निंग पॉइंट का इंतज़ार था उसके शुरूआती संकेत (global emission trends) दिखने लगे हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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